अल्जाइमर के पनाह में जा रही एक माँ
तल्खी-ए-हालात का आलम खो गया सुकून
न की ख़ुद से दोस्ती ढूंढती रही ख़ुदा
होती रही ख़ुद से जुदा खोती रही सुकुन
उसे क्या चाहिए था , कुछ ज्यादा
लफ्ज हो प्यारे तन्हाई के लम्हात सुकून
देखी चेहरे पे लिखी सवाली इल्ज़ाम
खोई चैन आंखों की दिल का सुकून
कलम पकड़ी उंगुली होती है नंगी
सोचता नंगा दिमाग छिनता सुकून
अल्जाइमर बहुत ही कष्टपूर्ण बीमारी ...
ReplyDeleteनमस्कार आपकी यह रचना आज शुक्रवार (06-09-2013) को निर्झर टाइम्स पर लिंक की गई है कृपया पधारें.
ReplyDeleteबहुत बढिया..
ReplyDeleteजीने वाला ही जनता है ये पीड़ा
ReplyDelete*जानता
ReplyDeleteपीड़ा जो सहे वही कहे...
ReplyDeleteउसे क्या चाहिए था , कुछ ज्यादा
ReplyDeleteलफ्ज हो प्यारे तन्हाई के लम्हात सुकून
MAARMIK RACHNA ,, SACH HAI BIMARI BUDHAPA EKELEPAN SE JUJHTE LOGO KO KYA CHAHIYE KEVL KUCHH PAL PYAR KE :)
,बहुत सुन्दर
ReplyDeletelatest post: सब्सिडी बनाम टैक्स कन्सेसन !
sach mey...jis par betti hai wahi samjhta hai....par ghar wale agar samjh kar saath dey tho baat bane...
ReplyDeleteबहुत बढ़िया..
ReplyDeleteअच्छी बात है की इस रोग के निदान के लिए किये जा रहे शोध में अच्छी प्रगति है.
ReplyDeleteतो कोई भी तकलीफदेह होती है , और फिर स्वयं को खोते देखना और भी !!
ReplyDeleteउसे क्या चाहिए था , कुछ ज्यादा
ReplyDeleteलफ्ज हो प्यारे तन्हाई के लम्हात सुकून
***
So true!
जिन स्मृतियों पर हमारा जीवन आधार टिका रहता हैं, वही खिसकने लगता है।
ReplyDeleteमर्मस्पर्शी ...
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति,आप को गणेश चतुर्थी पर मेरी हार्दिक शुभकामनायें ,श्री गणेश भगवान से मेरी प्रार्थना है कि वे आप के सम्पुर्ण दु;खों का नाश करें,और अपनी कृपा सदा आप पर बनाये रहें...
ReplyDeletebade hi dardmay pal hote hain ....jab apnon ke chehre se aparichay jhalakta hai ...marmsparshi prastuti vibha jee ....
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