हमारी परीक्षा कब हो जाए कहना मुश्किल है ....
हमारी परीक्षा तब भी होती है .... जब हमारे अपने , हमारे परिचित ,
हमारे दोस्त-साथी परीक्षाओं की घड़ियों से गुजर रहे होते हैं ....
एक परिवार में .....
जब पिता रिटायर्ड हुये तो अपने तीन बेटों और एक बेटी से राय कर अपने सारे जमा-पूंजी लगा कर एक बना-बनाया मकान खरीदे ....सहयोग बच्चों की माँ का भी था ....
तीन बेटों में ....
बड़ा बेटा सरकारी ऑफिसर था और उनका तबादला अलग-अलग शहरो में होता रहता था ,छोटा बेटा प्राइवेट कंपनी में काम करता था , जो अलग-अलग राज्यों में भ्रमण करता रहता था .... मझला बेटा स्थायी रहता था .… क्यूँ कि वो निजी रोजगार करता था ....
इसलिए बहुमत से ,मकान उसी शहर में खरीदा गया जहां मझला बेटा रहता था .... सबकी सोच यही थी कि बुढ़ापे में स्थायी रहने वाला बेटा ही बूढ़े लाचार माता पिता का ख्याल रख सकेगा ..... माता-पिता जब तक शरीर से सक्षम थे ..... सब बच्चों के घर ..... रिश्तेदारो के घर ..... घूमने ..... तीर्थाटन करने जाते रहे .... जितने दिन भी , स्थायी घर में मझले बेटे के साथ रहते ,सुकून का पल नसीब नहीं होता था .... जब शरीर से अस्वस्थ्य रहने लगे तो निर्णय हुआ कि स्थायी घर में ही वे रहे क्यूँ कि उन्हे वही अपना लगता था ,क्यूँ कि सारे जाम-पूंजी लगा कर वे घर खरीदे थे .... लेकिन सुकून का पल न मिलना था न मिला .... वैसे भी ज्यादा दिन बूढ़ी माँ जिंदा नहीं रही .... उनकी मौत बहुत ही आसान हुई .... किसी को उनकी सेवा करने का मौका नहीं मिला .... माँ के नहीं रहने पर पिता बड़े बेटे से बोले कि मैं तुम्हारे साथ ही रहूँगा .... यहाँ नहीं रहूँगा .... बड़े बेटे को क्या आपत्ति हो सकती थी .... वो तो हमेशा चाहता था कि माता-पिता उसके साथ ही रहें .... लेकिन माँ के जिद के आगे लाचार हो जाता था .... माँ के श्राद्ध-कर्म के बाद ,जब वो अपने नौकरी पर लौटने लगा तो अपने पिता को अपने साथ लेता आया ....
लेकिन कुछ दिन , जितने दिन डॉ से दिखला कर सारे टेस्ट हुये .... पिता शांति से रहे .... फिर ....
अचानक से ज़ोर ज़ोर से रोने लगते कि मेरा यहाँ मन नहीं लग रहा है .... कोई बात करने वाला नहीं मिलता है .... घर में कैद सा लगता है ....
चुकि स्थायी घर बड़ा था , घर के आगे-पीछे खुला जमीन था .... घर के सामने आने - जाने वाले से दुआ-सलाम हो जाता था ....
और बेटे का घर अपार्टमेंट में , घर में रहने वाले तीन प्राणी थे .... बड़ा बेटा को अपने सरकारी काम और दौरे से फुर्सत ही नहीं मिलती थी कि वो अपने पिता से गप्प लगाए और बहू को घर-बाहर का सारे काम करने होते थे .... फिर भी वो फुर्सत निकाल कर उन्हें टहलाती .... गप्प लगाती ..... सारे सेवा करती .... लेकिन पिता को तो आदत थी बेटा-बहू से लड़ने की .... बहुत शोर मचाते .... कहते कि अगर मुझे 10 साल जीना होगा तो 2 साल में ही मर जाऊंगा .... लेकिन बड़े बेटे के घर उचित देख-भाल ,समय पर खाने-पीने से पिता का स्वास्थ्य सुधरने लगा था .... ये देख कर कोई नहीं चाहता था कि पिता फिर से स्थायी घर मझले बेटे के साथ रहने जाएँ और मझला बेटा भी नहीं चाहता था कि पिता उसके पास आए .....
क्यूँ कि माँ के श्राद्ध -कर्म के दौरान बड़े+छोटे बेटे ने मझले बेटे को बहुत डांटे थे कि वो माता-पिता का ख्याल ठीक से रखा नहीं था .... श्राद्ध कर्म से लौटते समय बड़े+छोटे बेटे ने अपने+अपने हिस्से का कमरा में ताला लगा दिया था ....
लेकिन पिता का रोज-रोज का रोना बर्दाश्त भी नहीं किया जा सकता था .... एक दिन पिता को लेकर बड़ा बेटा स्थायी घर गया ,बड़ी बहू नहीं गई ..... क्यूँ कि वो राज़ी नहीं थी कि पिता वहाँ से स्थायी रूप से फिर उसी नरक में जाएँ .... बड़ा बेटा ,बहू को बोला कि ठीक है मैं घूमा कर ले आऊँगा .... जिस दिन भाई-पिता घर आए मझली बहू को ठीक नहीं लगा .... रात में जब बड़ा बेटा अपने कमरे में सोने चला गया तो पिता अपने पास बैठे पड़ोस के एक लड़के को बोले कि पहले ये देख लो कि बड़ा बेटा सो गया हो तो मझला बेटा-बहू को बुला कर ले आओ .... मझले बेटे बहू से पिता बोले कि बड़ा बेटा मुझे यहाँ नहीं रहने देगा लेकिन मैं यहाँ से जाना नहीं चाहता हूँ .... वहाँ मुझे कोई तकलीफ नहीं है ..... लेकिन मन नहीं लगता है .... तुमलोग मुझे जाने नहीं देना ....
सुबह जब बड़ा बेटा आने लगा तो वो अपने पिता को भी तैयार किया साथ लाने के लिए लेकिन पिता आने के लिए तैयार ही नहीं हुये .... मझला बेटा उन्हे पकड़ कर ,बड़े बेटा की गाड़ी में जबर्दस्ती बैठने लगा लेकिन पिता के हाथो में बाहर के ग्रिल पकड़ में आ जाने से कोई बैठा नहीं सका .... उनकी कातर निगाहों को देख कर बड़ा बेटा बोला कि ठीक है अभी रहने दो ,एक सप्ताह के बाद आकर ले जाऊंगा .... बे-मन से पिता को मझले बेटा-बहू को रखना पड़ा , उनके ही घर में .....
अगले सप्ताह बड़ा बेटा फिर गया .... पिता को लाने .... इस बार फिर बड़ी बहू नहीं गई कि वो जाएगी तो उसे वहीं रह कर ,पिता की सेवा करनी होगी क्यूँ कि पिता को बल मिल जाएगा वे जिद करेंगे कि यहीं रहा जाये .... बड़ी बहू को नहीं आया देख ,मझली बहू अपने जेठ के सामने ही चिल्लाने लगी कि केवल मेरी जिम्मेदारी है कि इनकी सेवा करूँ .... मझला बेटा भी बड़े बेटे से पूछा कि भाभी क्यूँ नहीं आई पिता की सेवा करने .... बड़ा बेटा बोला कि मैं पिता को ही ले जाऊंगा तो वे आई या नहीं आई .... क्या फर्क पड़ता है ....
लेकिन फिर उस बार भी पिता नहीं आए .... बड़ा बेटा अकेले लौट आया .... अगले सप्ताह फिर गया तो जब पिता नहीं आने के लिए तैयार हुये तो मझला बेटा बोला ,बड़े बेटा से कि घर के सारे कमरे खोलो .... इनके रहने , खाने पर जो खर्च आयेगा , घर के सारे कामो के लिए जितना पैसा खर्च होगा , सब दो ....
पिता के सुख-शांति के आगे , बड़े बेटा के लिए , पैसे का क्या मोल था .... पिता के पेंशन के अलावे भी , जितना रुपया-पैसा ,मझला बेटा मांगता ,बड़ा बेटा देता रहा ....
लेकिन होनी तो हो कर रहती है ....
एक दिन पिता का पैर फैसला और उनके कमर की हड्डी टूट गई .... ये मझले बेटे-बहू के उचित देख-भाल का परिणाम था .....
एक-डेढ़ महीने के बाद ही पिता को मझले बेटे ने बड़े बेटे के घर ले कर आ गया .... जब पिता को बड़ी बहू के सामने लाया गया तो वो अचम्भित रह गई .... जिस पिता को अपने पैरो पर बिना सहारा लिए चलने की अवस्था में विदा की थी , वो मरणासन्न अवस्था में सामने थे .... रोज लगता था .... आज गए या कल गए .... कमर की हड्डी टूटी थी , इसलिए उन्हे पूरी तरह से बिस्तर पर रहना था ....
खबर मिलने पर छोटा बेटा + बेटी भी दो दिन के लिए मिलने आए .... फिर सब यथावत चलने लगा .... जो लगता था कि किसी भी पल कुछ हो जाएगा वो दिन ,दिन से महिना गुजरने लगा .... देखने आने वाले भी अचम्भित होते कि मरणासन्न अवस्था कैसे टल गया और बड़ी बहू की प्रशंसा करते कि बहुत मन से सेवा कर रही है और साफ-सफाई तो बहुत है .... मेहनत करती है ....
कुछ महीने के बाद ..... मझले बेटे को पिता की सुध आई वो बड़े बेटे से बोला कि मैं पिता को अपने पास लाना चाहता हूँ .... बड़ा बेटा मना किया ,तो वो बोला कि पिता जी की इच्छा थी कि जहां माता जी की मौत हुई है , वहीं पिता जी भी मृत्यु को प्राप्त करें .... अगर वे मेरे पास आ जाएँगे तो उनको मुक्ति मिल जाएगी .... तुम्हारे पास अगर दो साल भी इस अवस्था में रहें तो मुक्ति नहीं मिलेगी etc .... बड़े बेटा को लगा कि पिता जी को अच्छा लगेगा बदलाव होगा तो ....
जब बड़ी बहू सुनी तो बहुत समझाने का प्रयास की कि आप मत भेजिये मैं सब करती हूँ दो साल जीयें या 20 साल जीयें .... देवर जी को अब समाज का डर लग रहा होगा या कोई स्वार्थ होगा बिना स्वार्थ का तो वो कुछ नहीं कर सकते .... उन्हे आपकी बदनामी करने का मौका मिल जाएगा .... पिता जी की स्थिति ऐसी नहीं है कि ये अब एक जगह से दूसरे जगह जाएँ .... बड़े बेटा का बेटा(पोता) भी अपने पिता को समझाने का प्रयास किया कि जब सब माँ करती है आपको कुछ चिंता नहीं करना पड़ता है .... फिर आप क्यूँ भेजना चाहते हैं ? दादा 2 साल और रहें तो अच्छा है न .... बुजुर्ग का साया सिर पर रहेगा .....
बड़ी बहू और पोता के कुछ भी कहने का असर बड़े बेटे पर नहीं हुआ .... बड़ा बेटा बोला कि पिता जी सबके हैं .... अगर वो अपने पास रख कर सेवा करना चाहता है तो मैं क्यूँ रोकू .... पिता जी की इच्छा भी वहीं रहने की थी .... कुछ दिन के बाद ले आऊँगा ....
पिता जी फिर मझले बेटे के पास चले गए .... वहाँ पिता जी को ले जाने के बाद मझला बेटा सब से कहता कि बड़ी बहू घर से बाहर निकाल दी है .... पिता जी की ऐसी स्थिति है , मेरे सिवा दूसरा कोई रख ही नहीं सकता था ..... जिससे वो कहता वो बड़ी बहू को आकर कह देता .... बड़ी बहू बोलती , ऊपर वाला सब जानता है .... न्याय उसी पर छोड़ रही हूँ .... मझला बेटा ये नहीं जान रहा था कि बड़ी बहू का शिकायत कर ,वो बड़े बेटे को ही चोट पहुंचा रहा है ....
हर युग में राम को भरत मिले .... जरूरी तो नहीं ....
और एक महिना 20 दिन के बाद ही पिता की बहुत बुरी अवस्था में मौत हुई ....
मौत के एक महीने के बाद ही बिना किसी के राय मशवरा लिए मझले बेटे ने पूरे घर पर कब्जा कर लिया .... घर में ही लड़कियों का हॉस्टल खोल लिया , ताकि कोई और आकर नहीं रह सके ....
ये था बड़ी बहू के शक को सच साबित करता स्वार्थ ....
http://www.livingwell.org.au/managing-difficulties/experiencing-difficult-times-toolkit/
एक परिवार में .....
जब पिता रिटायर्ड हुये तो अपने तीन बेटों और एक बेटी से राय कर अपने सारे जमा-पूंजी लगा कर एक बना-बनाया मकान खरीदे ....सहयोग बच्चों की माँ का भी था ....
तीन बेटों में ....
बड़ा बेटा सरकारी ऑफिसर था और उनका तबादला अलग-अलग शहरो में होता रहता था ,छोटा बेटा प्राइवेट कंपनी में काम करता था , जो अलग-अलग राज्यों में भ्रमण करता रहता था .... मझला बेटा स्थायी रहता था .… क्यूँ कि वो निजी रोजगार करता था ....
इसलिए बहुमत से ,मकान उसी शहर में खरीदा गया जहां मझला बेटा रहता था .... सबकी सोच यही थी कि बुढ़ापे में स्थायी रहने वाला बेटा ही बूढ़े लाचार माता पिता का ख्याल रख सकेगा ..... माता-पिता जब तक शरीर से सक्षम थे ..... सब बच्चों के घर ..... रिश्तेदारो के घर ..... घूमने ..... तीर्थाटन करने जाते रहे .... जितने दिन भी , स्थायी घर में मझले बेटे के साथ रहते ,सुकून का पल नसीब नहीं होता था .... जब शरीर से अस्वस्थ्य रहने लगे तो निर्णय हुआ कि स्थायी घर में ही वे रहे क्यूँ कि उन्हे वही अपना लगता था ,क्यूँ कि सारे जाम-पूंजी लगा कर वे घर खरीदे थे .... लेकिन सुकून का पल न मिलना था न मिला .... वैसे भी ज्यादा दिन बूढ़ी माँ जिंदा नहीं रही .... उनकी मौत बहुत ही आसान हुई .... किसी को उनकी सेवा करने का मौका नहीं मिला .... माँ के नहीं रहने पर पिता बड़े बेटे से बोले कि मैं तुम्हारे साथ ही रहूँगा .... यहाँ नहीं रहूँगा .... बड़े बेटे को क्या आपत्ति हो सकती थी .... वो तो हमेशा चाहता था कि माता-पिता उसके साथ ही रहें .... लेकिन माँ के जिद के आगे लाचार हो जाता था .... माँ के श्राद्ध-कर्म के बाद ,जब वो अपने नौकरी पर लौटने लगा तो अपने पिता को अपने साथ लेता आया ....
लेकिन कुछ दिन , जितने दिन डॉ से दिखला कर सारे टेस्ट हुये .... पिता शांति से रहे .... फिर ....
अचानक से ज़ोर ज़ोर से रोने लगते कि मेरा यहाँ मन नहीं लग रहा है .... कोई बात करने वाला नहीं मिलता है .... घर में कैद सा लगता है ....
चुकि स्थायी घर बड़ा था , घर के आगे-पीछे खुला जमीन था .... घर के सामने आने - जाने वाले से दुआ-सलाम हो जाता था ....
और बेटे का घर अपार्टमेंट में , घर में रहने वाले तीन प्राणी थे .... बड़ा बेटा को अपने सरकारी काम और दौरे से फुर्सत ही नहीं मिलती थी कि वो अपने पिता से गप्प लगाए और बहू को घर-बाहर का सारे काम करने होते थे .... फिर भी वो फुर्सत निकाल कर उन्हें टहलाती .... गप्प लगाती ..... सारे सेवा करती .... लेकिन पिता को तो आदत थी बेटा-बहू से लड़ने की .... बहुत शोर मचाते .... कहते कि अगर मुझे 10 साल जीना होगा तो 2 साल में ही मर जाऊंगा .... लेकिन बड़े बेटे के घर उचित देख-भाल ,समय पर खाने-पीने से पिता का स्वास्थ्य सुधरने लगा था .... ये देख कर कोई नहीं चाहता था कि पिता फिर से स्थायी घर मझले बेटे के साथ रहने जाएँ और मझला बेटा भी नहीं चाहता था कि पिता उसके पास आए .....
क्यूँ कि माँ के श्राद्ध -कर्म के दौरान बड़े+छोटे बेटे ने मझले बेटे को बहुत डांटे थे कि वो माता-पिता का ख्याल ठीक से रखा नहीं था .... श्राद्ध कर्म से लौटते समय बड़े+छोटे बेटे ने अपने+अपने हिस्से का कमरा में ताला लगा दिया था ....
लेकिन पिता का रोज-रोज का रोना बर्दाश्त भी नहीं किया जा सकता था .... एक दिन पिता को लेकर बड़ा बेटा स्थायी घर गया ,बड़ी बहू नहीं गई ..... क्यूँ कि वो राज़ी नहीं थी कि पिता वहाँ से स्थायी रूप से फिर उसी नरक में जाएँ .... बड़ा बेटा ,बहू को बोला कि ठीक है मैं घूमा कर ले आऊँगा .... जिस दिन भाई-पिता घर आए मझली बहू को ठीक नहीं लगा .... रात में जब बड़ा बेटा अपने कमरे में सोने चला गया तो पिता अपने पास बैठे पड़ोस के एक लड़के को बोले कि पहले ये देख लो कि बड़ा बेटा सो गया हो तो मझला बेटा-बहू को बुला कर ले आओ .... मझले बेटे बहू से पिता बोले कि बड़ा बेटा मुझे यहाँ नहीं रहने देगा लेकिन मैं यहाँ से जाना नहीं चाहता हूँ .... वहाँ मुझे कोई तकलीफ नहीं है ..... लेकिन मन नहीं लगता है .... तुमलोग मुझे जाने नहीं देना ....
सुबह जब बड़ा बेटा आने लगा तो वो अपने पिता को भी तैयार किया साथ लाने के लिए लेकिन पिता आने के लिए तैयार ही नहीं हुये .... मझला बेटा उन्हे पकड़ कर ,बड़े बेटा की गाड़ी में जबर्दस्ती बैठने लगा लेकिन पिता के हाथो में बाहर के ग्रिल पकड़ में आ जाने से कोई बैठा नहीं सका .... उनकी कातर निगाहों को देख कर बड़ा बेटा बोला कि ठीक है अभी रहने दो ,एक सप्ताह के बाद आकर ले जाऊंगा .... बे-मन से पिता को मझले बेटा-बहू को रखना पड़ा , उनके ही घर में .....
अगले सप्ताह बड़ा बेटा फिर गया .... पिता को लाने .... इस बार फिर बड़ी बहू नहीं गई कि वो जाएगी तो उसे वहीं रह कर ,पिता की सेवा करनी होगी क्यूँ कि पिता को बल मिल जाएगा वे जिद करेंगे कि यहीं रहा जाये .... बड़ी बहू को नहीं आया देख ,मझली बहू अपने जेठ के सामने ही चिल्लाने लगी कि केवल मेरी जिम्मेदारी है कि इनकी सेवा करूँ .... मझला बेटा भी बड़े बेटे से पूछा कि भाभी क्यूँ नहीं आई पिता की सेवा करने .... बड़ा बेटा बोला कि मैं पिता को ही ले जाऊंगा तो वे आई या नहीं आई .... क्या फर्क पड़ता है ....
लेकिन फिर उस बार भी पिता नहीं आए .... बड़ा बेटा अकेले लौट आया .... अगले सप्ताह फिर गया तो जब पिता नहीं आने के लिए तैयार हुये तो मझला बेटा बोला ,बड़े बेटा से कि घर के सारे कमरे खोलो .... इनके रहने , खाने पर जो खर्च आयेगा , घर के सारे कामो के लिए जितना पैसा खर्च होगा , सब दो ....
पिता के सुख-शांति के आगे , बड़े बेटा के लिए , पैसे का क्या मोल था .... पिता के पेंशन के अलावे भी , जितना रुपया-पैसा ,मझला बेटा मांगता ,बड़ा बेटा देता रहा ....
लेकिन होनी तो हो कर रहती है ....
एक दिन पिता का पैर फैसला और उनके कमर की हड्डी टूट गई .... ये मझले बेटे-बहू के उचित देख-भाल का परिणाम था .....
एक-डेढ़ महीने के बाद ही पिता को मझले बेटे ने बड़े बेटे के घर ले कर आ गया .... जब पिता को बड़ी बहू के सामने लाया गया तो वो अचम्भित रह गई .... जिस पिता को अपने पैरो पर बिना सहारा लिए चलने की अवस्था में विदा की थी , वो मरणासन्न अवस्था में सामने थे .... रोज लगता था .... आज गए या कल गए .... कमर की हड्डी टूटी थी , इसलिए उन्हे पूरी तरह से बिस्तर पर रहना था ....
खबर मिलने पर छोटा बेटा + बेटी भी दो दिन के लिए मिलने आए .... फिर सब यथावत चलने लगा .... जो लगता था कि किसी भी पल कुछ हो जाएगा वो दिन ,दिन से महिना गुजरने लगा .... देखने आने वाले भी अचम्भित होते कि मरणासन्न अवस्था कैसे टल गया और बड़ी बहू की प्रशंसा करते कि बहुत मन से सेवा कर रही है और साफ-सफाई तो बहुत है .... मेहनत करती है ....
कुछ महीने के बाद ..... मझले बेटे को पिता की सुध आई वो बड़े बेटे से बोला कि मैं पिता को अपने पास लाना चाहता हूँ .... बड़ा बेटा मना किया ,तो वो बोला कि पिता जी की इच्छा थी कि जहां माता जी की मौत हुई है , वहीं पिता जी भी मृत्यु को प्राप्त करें .... अगर वे मेरे पास आ जाएँगे तो उनको मुक्ति मिल जाएगी .... तुम्हारे पास अगर दो साल भी इस अवस्था में रहें तो मुक्ति नहीं मिलेगी etc .... बड़े बेटा को लगा कि पिता जी को अच्छा लगेगा बदलाव होगा तो ....
जब बड़ी बहू सुनी तो बहुत समझाने का प्रयास की कि आप मत भेजिये मैं सब करती हूँ दो साल जीयें या 20 साल जीयें .... देवर जी को अब समाज का डर लग रहा होगा या कोई स्वार्थ होगा बिना स्वार्थ का तो वो कुछ नहीं कर सकते .... उन्हे आपकी बदनामी करने का मौका मिल जाएगा .... पिता जी की स्थिति ऐसी नहीं है कि ये अब एक जगह से दूसरे जगह जाएँ .... बड़े बेटा का बेटा(पोता) भी अपने पिता को समझाने का प्रयास किया कि जब सब माँ करती है आपको कुछ चिंता नहीं करना पड़ता है .... फिर आप क्यूँ भेजना चाहते हैं ? दादा 2 साल और रहें तो अच्छा है न .... बुजुर्ग का साया सिर पर रहेगा .....
बड़ी बहू और पोता के कुछ भी कहने का असर बड़े बेटे पर नहीं हुआ .... बड़ा बेटा बोला कि पिता जी सबके हैं .... अगर वो अपने पास रख कर सेवा करना चाहता है तो मैं क्यूँ रोकू .... पिता जी की इच्छा भी वहीं रहने की थी .... कुछ दिन के बाद ले आऊँगा ....
पिता जी फिर मझले बेटे के पास चले गए .... वहाँ पिता जी को ले जाने के बाद मझला बेटा सब से कहता कि बड़ी बहू घर से बाहर निकाल दी है .... पिता जी की ऐसी स्थिति है , मेरे सिवा दूसरा कोई रख ही नहीं सकता था ..... जिससे वो कहता वो बड़ी बहू को आकर कह देता .... बड़ी बहू बोलती , ऊपर वाला सब जानता है .... न्याय उसी पर छोड़ रही हूँ .... मझला बेटा ये नहीं जान रहा था कि बड़ी बहू का शिकायत कर ,वो बड़े बेटे को ही चोट पहुंचा रहा है ....
हर युग में राम को भरत मिले .... जरूरी तो नहीं ....
और एक महिना 20 दिन के बाद ही पिता की बहुत बुरी अवस्था में मौत हुई ....
मौत के एक महीने के बाद ही बिना किसी के राय मशवरा लिए मझले बेटे ने पूरे घर पर कब्जा कर लिया .... घर में ही लड़कियों का हॉस्टल खोल लिया , ताकि कोई और आकर नहीं रह सके ....
ये था बड़ी बहू के शक को सच साबित करता स्वार्थ ....
http://www.livingwell.org.au/managing-difficulties/experiencing-difficult-times-toolkit/
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ReplyDeleteका आकडा है एक कमेंट तो बनता है ....
एक मार्मिक संस्मरण ...... बहुत साड़ी गलतियां सबसे होती हैं घर परिवार में ...सबसे पहले तो पिता यह सोच ही नही पता कि उसकी अपनी संतान उसके साथ ऐसा व्यवहार करेंगी दूसरी बात यह परिवार की हर महिला का चरित्र अलग होता हैं .....कोई सेवा करना जानती हैं तो कोई सेवा का मूल्य लगाना ....पर यही पर स्वर्ग भी हैं नरक भी .हर कोई अपने अपने कर्मो का फल भुगतेगा ........ बड़े और छोटे बेटे को किसी चीज की कमी नही हैं ना द्द्दुनिया मैं .तो सुकून के लिय एक एक मकान की बलि दे देना कोई बड़ी बात नही ..........
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर मार्मिक सृजन !
ReplyDeleteRECENT POST : बिखरे स्वर.
kya baat kya baat kya baat
ReplyDeleteआदरणीय विभा श्रीवास्तव जी
ReplyDeleteआपने जो लिखा हैं वह कटु सत्य हैं
धन के प्रलोभन के समक्ष
रिश्तों का कोई मूल्य नहीं हैं
आपकी लेखनी को सलाम
९९ वे पोस्ट के लिए बधाई
मेरी और से शुभ कामना
किशोर
क्यो बिखरी थी इतनी खुशबु कल रात हमारी बातो मे
ReplyDeleteकुछ महके महके सपने थे कल रात हमारी आंखो मे
तेरी देहलीज से , जब भी गुजर जाता हूँ मैं !
ReplyDeleteतुझे देखकर, कुछ और संवर जाता हूँ मैं !!
अपनी ही जिंदगी में, बेशुमार है कहानिया !
ReplyDeleteइस जिंदगी में है जाने, कितनी जिन्दगानिया !!
अपने ही दुःख से फुर्सत कहाँ है, लोगो को !
वो बातें पुरानी थी, जब होती थी मेहरबानिया !!
पी के ''तनहा''
राम हर युग में होते हैं पर हम उनको पहचान नहीं पाते...बहुत मार्मिक प्रस्तुति...
ReplyDeleteक्या बात है। वाह
ReplyDeleteखूंटियों पर टंगे रिश्ते बहुत रुलाते हैं...
ReplyDeleteसब जियें रिश्तों को मर्यादा के साथ, काश एक ऐसा दिन आये!
मार्मिक प्रस्तुति.
ReplyDeleteकितना अच्छा लिखा है आपने।
ReplyDeleteबहुत उत्कृष्ट अभिव्यक्ति.हार्दिक बधाई और शुभकामनायें!
मार्मिक ...
ReplyDeleteआँखें खोलने वाला संन्स्मरण है ...
संबंधों की गति पीड़ामय होने लगती है तो दुख लगता है।
ReplyDeleteदुखद है लेकिन सच्चाई से रु-ब-रु कराती.
ReplyDelete
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति.. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लागर्स चौपाल में शामिल की गयी और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा कल - शनिवार हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल :007 (http://hindibloggerscaupala.blogspot.in/ )लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया आप भी पधारें, सादर ..
स्वार्थ की महिमा अपरंपार है
ReplyDeleteयह आज कल का ज़रूरी व्यापार है
रच तो तुलसी भी गए एक दोहा स्वार्थ पर
निगाह बस राम की है,सबके परमार्थ पर।
सादर
sach kitna gir gaya hai insaan ....? dil ko drawit karta sansmaran ...
ReplyDelete