Monday, 4 November 2013

भाई दूज






कथा -

भगवान सूर्यदेव की पत्नी का नाम छाया था ....  उसकी कोख से यमराज तथा यमुना का जन्म हुआ .... यमुना अपने भाई यमराज से बड़ा स्नेह करती थी .... वह उससे बराबर निवेदन करती थी कि वह उसके घर आकर भोजन करे ... लेकिन यमराज अपने काम में व्यस्त होने के कारण यमुना की बात को टाल देते थे .... कार्तिक शुक्ल द्वितीया को यमुना ने अपने भाई यमराज को भोजन करने के लिए बुलाया .... बहन के घर आते समय यमराज ने नरक में निवास करने वाले जीवों को मुक्त कर दिया ...  भाई को देखते ही यमुना ने हर्ष विभोर होकर भाई का स्वागत-सत्कार किया तथा भोजन करवाया ...  इससे प्रसन्न होकर यमराज ने बहन से वर मांगने को कहा ... बहन ने भाई से कहा - आप प्रतिवर्ष इस दिन मेरे यहां भोजन करने आया करेंगे तथा इस दिन जो बहन अपने भाई को टीका करके भोजन खिलाए उसे आपका भय न रहेगा ....  यमराज ने अपनी बहन यमुना को मनचाहा वर दिया और अमूल्य वस्त्र, आभुषण देकर यमपुरी को चले गये .... तब से ऐसी मान्यता है कि जो भाई आज के दिन यमुना में स्नान करके , पूरी श्रद्धा से बहनों के आतिथ्य को स्वीकार करते हैं , उन्हें यम का भय नहीं रहता ....

मैं दीवाली के दूसरे दिन सबरे सबेरे बासी मुंह गोधन बनाती हूँ ....
गाय के गोबर से चार कोने का घर बनाती हूँ .... जो उत्तर-दक्खिन का होता है .… जिसके द्वार पर द्वारपाल भी होता है … घर के अंदर यम-यमनी होते हैं। … घर के अंदर ,चाँद सूरज ,सांप बिच्छू ,चूल्हा सिलवट ,जितने भाई उतने खड़ाऊं ,अपना सिन्होरा ,कंघी ,ओखल-मूसल यानि जितने सामान बना सकूँ ,बनाती हूँ ....


भाई-दूज के दिन सुबह बासी मुंह ही स्नान कर पहले अपने सारे भाई को बद्दुआ देती हूँ कि वे अल्पायु हों .... पूजा थाली में बजड़ी ,मिठाई ,फूल ,जल ,रेंगनी का कांटा ,अक्षत ,रोली ,सिन्होरा रहता है ....
फिर गोधन के पास जाकर यम यमिनि की पूजा करती हूँ .... पूजा क्रम में यम के सीने पर कालिख लगा हड़िया या नया ईंटा और मूसल को रखती हूँ … काजल बनाती हूँ … कच्चे रुई से माला बनाती हूँ ....
मूसल को यम के सीने से पांच बार उठाती और सुलाती हूँ और साथ में बोलती हूँ ....

उठह देव उठह
सुतल भइल छह मास
कुँआर ना बिआहल जाए
बिआहल ना ससुराल जाए ....

 … फिर मूसल से यम के सीने पर कालिख लगा
हड़िया या नया ईंटा को कूटती हूँ .... और बोलती हूँ ...

अउरा कुटी लेअ
बउरा कुटी लेअ
कुटी लेअ यम के करेज

यम को कूटने के बाद , उनके घर को पांच बार ,
एक ओर से ही इस पार से उस पार लांघती हूँ .…




फिर शुरू करती हूँ भाई को जिलाने का काम ....
रेंगनी के काटें को जीभ पर गड़ाते हुए बोलती हूँ
भाई का आयु बढे मेरे मुंह में कांटा गड़े .…

जिस जल से पूजा की रहती हूँ उसे पांच बार पीती हूँ ....

पिलाने वाली पूछती है क्या पी  रही हूँ ?
मैं  बोलती हूँ
भाई का रोग बलाय  .... यम का खून ....
बजड़ी और मिठाई भाई को खिलाती हूँ ...
जो भाई नहीं होते उन्हें पूर्णिमा तक खिलाया जा सकता है .......








अभिधावक हो सोचो
सुविधा अनियत है
आजादी ना बेचो

~~

सम शुक्ल चन्द्र बढ़ो
तिलक यही बोले
उन्नति शिखर बढ़ो

~~

भवबन्धन में खोता
बहना भाई का
शुचि रिश्ता है होता

~~

ऐसे ही एक माहिया

ठग विधि का विजित रसिक
दुरुत्तर अधर्मी
तुष्ट तुलाकूट हसिक

~~

7 comments:

  1. बहुत सुन्दर...भाई दूज की हार्दिक शुभकामनायें!

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  2. परम्पराओं की झलक दिखा दी आपने!! बाहर रहते हुए भी हम निभाते हैं, मगर वो बात कहाँ!!

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  3. शुभदीपावली,गोवर्धन पूजन एवं यम व्दितीया श्री चित्रगुप्त जी की पूजन की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनायें स्वीकार करें

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  4. पहली बार जाना भैया दूज के पीछे की कथा.

    अउरा कुटी लेअ
    बउरा कुटी लेअ
    कुटी लेअ यम के करेज


    बहुत अच्छा लगा पढ़कर :)

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  5. शुक्रिया और आभार
    भाई दूज की हार्दिक शुभकामनायें
    बजड़ी पूर्णिमा तक खिलाई जाती है

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  6. bhaayi duj ki vistrit jaankari aaj mili .. :) iske pichhe chhupi bhawana bhi samjh ayi :)

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  7. भैया दूज की कथा
    .........पढ़कर बहुत अच्छा लगा !!!

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