Saturday, 4 August 2018

"षड़यंत्र"



        निलय की मृत्यु के पश्चात उसके बॉस ने उसकी पत्नी निम्मी के प्रति सहानुभूति प्रकट करते हुए कहा , "आप जब सामान्य स्थिति में आ जाएं तो निलय के स्थान पर काम कर सकती हैं और हाँ! उनकी भविष्यनिधि भी आपको दे दी जाएगी।"

                      यह बात सुनकर निम्मी के सास-ससुर , ननद-ननदोई और देवर तरह-तरह के मुँह बनाने लगे और आपस में बातचीत करते हुए कहने लगे ,"क्यों न इसे पागल घोषित करके भविष्यनिधि हथिया ली जाए और निलय के स्थान पर उसके देवर को रखवा दिया जाए।"

        बगल के कमरे में बैठी निम्मी सब सुन रही थी और यह सब सुनकर वह सावधान हो गयी और अकस्मात उसने अपनी अटैची तैयार की और घर से बाहर निकलते हुए अपने सास-श्वसुर से कहा, "मैं मायके जा रही हूँ... मुझे बुलाने मत आइएगा... मैं स्वयं ही उचित समय पर आ जाऊँगी।"

          "ये तुम कैसी बातें कर रही हो बेटी ?" श्वसुर ने पूछा
"पागल लोग कैसी बातें किया करते हैं... मैं पागल हूँ न..."  ये संवाद सुनकर सब एक दूसरे के चेहरे देखने लगे और निम्मी अपनी राह बढ़ गयी।


5 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 05 अगस्त 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. एक सच ये भी। सुन्दर।

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  3. आदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर 'सोमवार' ०६ अगस्त २०१८ को साप्ताहिक 'सोमवारीय' अंक में लिंक की गई है। आमंत्रण में आपको 'लोकतंत्र' संवाद मंच की ओर से शुभकामनाएं और टिप्पणी दोनों समाहित हैं। अतः आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/



    टीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।



    आवश्यक सूचना : रचनाएं लिंक करने का उद्देश्य रचनाकार की मौलिकता का हनन करना कदापि नहीं हैं बल्कि उसके ब्लॉग तक साहित्य प्रेमियों को निर्बाध पहुँचाना है ताकि उक्त लेखक और उसकी रचनाधर्मिता से पाठक स्वयं परिचित हो सके, यही हमारा प्रयास है। यह कोई व्यवसायिक कार्य नहीं है बल्कि साहित्य के प्रति हमारा समर्पण है। सादर 'एकलव्य'



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  4. वाह दीदी -- ये तो बहुत ही सुघढ़ता से कितने कम शब्दों में आपने अपनी बात निपटा दी | सावधानी हटी दुर्घटना घटी का सोचना हरेक का अधिकार है | सादर --

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