Wednesday, 22 October 2014

अँधेरा दूसरे घर में है



आज फिर मेरा दिल दहल गया 
और 
उस ॐ शक्ति पर एक सवाल उठ गया मेरे मन में…. 
जहाँ मैं रहती हूँ ....  BTPS के main गेट के सामने चकिया हॉल्ट है .... 
१७ - १८ साल का एक लड़का दिवाली-छठ की छुट्टी में कहीं बाहर से घर आ रहा था 
ठीक गाँव के सामने गाडी धीमी होती देख ,उतावला-पन घर जल्दी पहुँचने की 
ट्रेन से उतरने के क्रम में 6  इंच छोटा हो गया .... ठीक केवल गर्दन कटी 

किसी के घर का दीप बुझ गया 
अँधेरा दूसरे घर में है 

छ महीने से लेकर ……………………………………… जिस उम्र की स्त्री हो 

दहेज कोढ़ हो 

दीपावली हमें जरूर मनानी चाहिए 

हम तो जरूर मनायेंगे 
हम तो शुतुरमुर्ग हैं 

=
नभ भौचक्का
तारे उदास लगे 
दीप जो हँसे।

=
बत्ती की सख्ती
अमा हेकड़ी भूली
अंधेर मिटा।

=
दीप मंसना
तिमिर नष्ट करे
संघ ना सीखे।
=
डरे ना दीप
हथेलियों की छाया
हवा जो चले।
जैसे 
डरे ना बेटी 
पिता कर की छाया
आतंक साया।

=
मिटे न तम
भरा छल का तेल 
बाती बेदम।

=
रागी वैरागी भिक्षुणी तीनों होती है न स्त्री 

जीते जी .... जीते 
पर्स ... हर्ष .... संघर्ष 
...... नारी के जिम्मे।

=
वक्ती गुफ्तगू 
दूर हो मुश्तवहा(संदेह)
घुन्ना से अच्छी।

=
दीन के घर 
तम गुल्लक फूटे
ज्योति बिखरे।

=
मन के अंधे 
ज्ञान-दीप से डरे

अंह में फसे।

=
त्याग के भय
लक्ष्मी के पग पड़े
सासू के ड्योढ़ी
तब दीवाली जमे
घर आँगन सजे।

=
जग का तम
समेटे पेंदी तले 
दीप की आली
तारों से होड़ लेता

भास सूर्य का देता।

==

12 comments:

  1. आपकी इस प्रस्तुति की चर्चा 23-10-2014 को चर्चा मंच पर चर्चा - 1775 में दिया गया है
    आभार ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. आभारी हूँ ..... बहुत बहुत धन्यवाद आपका ....

      Delete
  2. आये दिन ऐसे हादसों के बाद भी सावधानी तो बरतनी ही चाहिए.
    भावपूर्ण रचना.

    ReplyDelete
  3. अच्छी हाइकू
    विभा श्रीवास्तवजी
    आपने लिखी

    ढेरो बधाई
    आपको प्रेषित है
    मेरे ओर से

    नवाकार

    ReplyDelete
  4. [आप सब को पावन दिवाली की शुभकामनाएं...]
    दुख अनेक हों फिर भी देखो,
    दिवाली सभी मनाते हैं...
    प्रथम गणेश की वंदना करके,
    मां लक्ष्मी को बुलाते हैं...
    [पर्व ये दिवाली का सभी के जीवन में असंख्य खुशियां लाए]

    ReplyDelete
  5. मित्र !आप को सपरिवार दीपावली की शुभकामना ! सुन्दर प्रस्तुतीकरण !

    ReplyDelete
  6. बहुत संवेदनशील प्रस्तुति...दीप पर्व की हार्दिक मंगलकामनाएं!

    ReplyDelete
  7. गोवर्द्धन-पर्व की वधाई ! ईश्वर करे हमारे देश में नक़ली दूध-दूधुत्पादों का निर्माण रुक जाए !

    ReplyDelete
  8. हादसों में तबाह होती ज़िंदगियाँ ...बेहद दुखद,
    अर्थपूर्ण हाइकु....चित्रगुप्त पूजा की हार्दिक शुभकामनाएँ....

    ReplyDelete
  9. क्या कहें दी .हादसे दिल दहला देते है ...किसी के साथ ऐसा ना हो ऐसी ही कामना कर सकते है बस ...._/\_

    ReplyDelete
  10. बेहद उम्दा और मार्मिक अभिव्यक्ति... काश ! ऐसे हादसे कभी और कहीं नहीं होते तो वास्तव में सच्ची दीवाली होती.....
    नयी पोस्ट@आंधियाँ भी चले और दिया भी जले

    नयी पोस्ट@श्री रामदरश मिश्र जी की एक कविता/कंचनलता चतुर्वेदी

    ReplyDelete
  11. बहुत सुन्दर प्रस्तुति !
    मन के अंधे ज्ञान-दीप से डरे

    ReplyDelete

आपको कैसा लगा ... यह तो आप ही बताएगें .... !!
आपके आलोचना की बेहद जरुरत है.... ! निसंकोच लिखिए.... !!

प्रघटना

“इस माह का भी आख़री रविवार और हमारे इस बार के परदेश प्रवास के लिए भी आख़री रविवार, कवयित्री ने प्रस्ताव रखा है, उस दिन हमलोग एक आयोजन में चल...