निशा का घन
पल सब बदले
भोर भास से।
क्षीण व पीन
चन्द्र तृप्त करता
मृत अमृत।
जाल जो डाला
पल के आंच फसे
स्मृति के सिंधु।
माया की कश्ती
इच्छा जाल उलझी
मोह सिंधु में।
वैरागी होना
माया जाल बिसरा
स्वयं को पाना।
जाल जो डाला
पल के आंच फसे
स्मृति के सिंधु।
माया की कश्ती
इच्छा जाल उलझी
मोह सिंधु में।
वैरागी होना
माया जाल बिसरा
स्वयं को पाना।
लोभ प्रबल / भ्रमति है मस्तके / लब्धा का साया
ताने वितान / कष्टों का आवरण / नैराश्य लाया
डरे वियोगी / ईर्ष्या में क्रोध संग / वितृप्त मनु
काया से माया / पीर से नीर बहे / बबाल छाया।
छोटे प्रभाव शाली हाइकू !
ReplyDeleteआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 04-09-2014 को चर्चा मंच पर चर्चा - 1726 में दिया गया है
ReplyDeleteआभार
बहुत बढ़िया दी
ReplyDeletesundar hiku .....
ReplyDeleteसुंदर मुक्तक !
ReplyDeleteInformation and solutions in Hindi ( हिंदी में समस्त प्रकार की जानकारियाँ )
आपकी इस रचना का लिंक दिनांकः 5 . 9 . 2014 दिन शुक्रवार को I.A.S.I.H पोस्ट्स न्यूज़ पर दिया गया है , कृपया पधारें धन्यवाद !
सभी हाइकु बढिया ...
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