साँझ सबेरे
लोहित भू गगन
उबाल मारे।
लोहित भू गगन
उबाल मारे।
== गगन और भू ==
स्त्री-पुरुष प्रतीक हैं
जो रिश्ते के
बचपन और बुढापे में
बहुत गर्मजोशी में रहते हैं
जैसे उबलते रहते हों ....
इसलिए खून की तरह लाल हैं ....
बीच अवस्था में तो
सब बस नून तेल लकड़ी के
जुगाड़ में ही रहते हैं ....
कूल कूल
उबलने की फुर्सत कहाँ
i am right or Wrong??
5
घर गमले
स्त्री-वट हो बोंजाई
रिश्ते सम्भाले।
6
रफ्फु थे जख्म
यादें खुरच डाले
जलाये चैन।
7
हँस पड़ती
पथ दिखाती ज्योति
सहमी निशा।
==
==
घर गमले
ReplyDeleteस्त्री-वट हो बोंजाई
रिश्ते सम्भाले।.....bahut badhiya
आभार आपका
Deleteप्रभावी, सुंदर हाइकू, बधाई आपको
ReplyDeleteनवाकार
आभार आपका
Deleteअनमोल मोती!!
ReplyDeleteस्नेहाशिष .... शुक्रिया भाई .... आभार
Deleteआपका मेरे blog पर आना मुझे निहाल कर जाता है
ReplyDeleteआभारी हूँ .... बहुत बहुत धन्यवाद आपका ...
सादर _/\_
साधू साधू....
ReplyDeleteआभार और धन्यवाद
DeleteSundar Haiku.
ReplyDeleteरफ्फु थे जख्म
ReplyDeleteयादें खुरच डाले
जलाये चैन।
प्रभावी, सुंदर हाइकू,आनद आ गया पढ़कर
बहुत सुन्दर रचना। स्वयं शून्य
ReplyDeletesunder rachna bahot kub .......!!
ReplyDeleteBahut khub..
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
Deleteआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शनिवार 22 अगस्त 2015 को लिंक की जाएगी ....
Deletehttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!