Saturday, 4 May 2019

"चुनावी फानी"




   सेना से निर्वासित सैनिक निर्दलीय चुनाव के लिए खुद को तैयार कर रहा था..
       विपक्षी दल के लोग बैठे हुए आपस में विचार-विमर्श कर रहे थे कि सत्ता पक्ष के प्रमुख के समक्ष किस व्यक्ति को टिकट दिया जाये जो उसे टक्कर देने के साथ-साथ पराजित भी कर सके।
"अरे! भाई अवसर का लाभ उठाइए! आजकल सत्ता पक्ष सेना द्वारा पड़ोसी देश पर हुई विजय को अपने पक्ष में भुना रहा है तो क्यों न हम अभी पिछले दिनों वीडियो वायरल प्रकरण में सेना से निकाले गये सैनिक को टिकट दे दिया जाए।"
चर्चित नेता के विचार पर सभी उपस्थित नेता-कार्यकर्ता उछल पड़े.., "अब तो हमारी पार्टी की जीत पक्की समझो.., अब तो सेना में हो रही धाँधलियों की पोल खुलकर रहेगा.. जनता की संवेदना , वेदना पर भड़कती है..., वह निश्चित रूप से जीत जाएगा।" नेता जनता की सहानुभूति के प्रति आश्वस्त था।
विपक्षी दल में सैनिक को टिकट देने में सबकी सहमति बन गयी। अतः सैनिक अपना नामांकन प्रमुख विपक्षी दल की ओर से दाखिल कर दिया...। यह बात सभी प्रकार के मीडिया द्वारा काफी उछाली जाने लगी। चुनाव-आयोग कानूनी तौर पर तथा देशहित में यह तय किया कि ऐसे लोगों का चुनाव लड़ना तथा सेना की कमियों संबंधी बातें जनता तक पहुँचने से पड़ोसी दुश्मन देश को जहाँ शह मिलेगी वहीं आमजन के मध्य सेना अधिकारियों के प्रति सम्मान भी प्रभावित होगा। देश की प्रतिष्ठा को देखते हुए सैनिक का निर्वासन स्थगित करते हुए, चुनाव के लिए नामांकन रद्द कर दिया गया।
चुनाव-आयोग की इस कार्यवाही से जहाँ विपक्षी दल के हौसले पस्त हो मायूसी छा गया वहीं सत्तादल के प्रमुख को अपने समक्ष पड़ी सजी-सँवरी कुर्सी दिखने लगी।

6 comments:

  1. सस्नेहाशीष व असीम शुभकामनाओं के संग हार्दिक आभार छोटी बहना

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  2. ओहह्होओ..इतने दाँव-पेंच तो राजनीति में ही संभव है दी।

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  3. बन्दर और मदारी के जैसे खेल। सुन्दर।

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  4. गजब गोरखधंधा है।

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