01.गुलमोहर-
छज्जे में सज गया
मधु के छत्ते।
02.गुलमोहर-
बच्चें पेंच भिड़ाये
खेलमखेल/कूदमकूद।बच्चों का बड़ा होना
अब खलने लगा है
मन उबने लगा है
शतरंज खेलना और पेंच लगाना
गुलमोहर के गुल से
नाजुक शाखाओं का
जरा तेज हवा चली कि विछोह निश्चित
महबूब को मानों खजाना मिल जाता था
"माँ-माँ आओ न पेंच लड़ाते हैं
देखते हैं कितनी बाज़ी कौन जीत लेता है"
"तुम अभी जितना हारोगे
उतना जीतने के लिए ललकोगे"
बड़ी बारीकी से,
बड़ी कुशलता से,
कलम के लिए,
लगाए जाते हैं चीरे।
उगाए जाते हैं नए पौध,
धैर्य रहा सदा विषय शोध,
सहजता असर करता धीरे।
भगवान के समता में बागवान,
चीरे से नवजीवन का सच्चा ज्ञान,
बन बागवान होड़ भगवान से लगाती।
नहीं बदलना ना अतुराना,
पा जाएँ सभी लक्ष्य ठिकाना,
सम तुला स्नेह शासन माँ तौल अपनाती।
सूरज से रौशनी चाँद पा जाता
तभी तो धवल विभा चमकती।
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
१३ मई २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
सस्नेहाशीष व शुभकामनाओं संग हार्दिक आभार छूटकी
Deleteसुन्दर
ReplyDeleteबहुत सुंदर 👌👌
ReplyDeleteहर रंग को आपने बहुत ही सुन्दर शब्दों में पिरोया है, बेहतरीन प्रस्तुति ।
ReplyDeleteएक जिम्मेदार मां का उज्ज्वल चिंतन।
ReplyDeleteअप्रतिम।
बेहद लाजवाब...
ReplyDeleteवाह!!!
अत्यन्त सुन्दर !!
ReplyDeletebahut sundar
ReplyDeleteबहुत खूब .... ,सादर नमस्कार
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