"यह क्या है! बाहर के लोग क्या कहेंगे भाभी?" विधवा भाभी को बड़ी बिंदी लगाती देखकर ननद ने सवाल किया।
"मकड़जाल से निकल चुकी हूँ। हौसले को याद दिलाने में चूक ना जाऊँ... इसलिए...,"
"आप शायद भूल रही हैं कि बड़े भैया (धीमे से:आपके पति -परमेश्वर) को आपका बिंदी लगाना पसंद नहीं था!"
"कैसे भूल सकती हूँ कहीं भी किसी मौके पर अपने रुमाल से मेरे माथे का बिंदी पोछ देना और गंवार कहकर बुलाना... उन्हें तो मेरा सांस लेना पसंद नहीं था (धीमे से:चलचित्र युगपुरुष का नाना पाटेकर)।"
"ना कोइ रोके, ना कोई टोके!" दही-चीनी से मुँह मीठा कराती... बहू के भाल पर उग आए पसीने को अपने आँचल में सोखती सास ने कहा ,-"माँ का आँचल मकड़जाल को नष्ट कर देता है!"
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शुक्रवार मई 24, 2019 को साझा की गई है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका
Deleteवाह ! बहुत प्रेरक एवं सार्थक लघु कथा ! अति सुन्दर !
ReplyDeleteवाह!!बहुत खूब!!
ReplyDeleteसुन्दर
ReplyDeleteबहुत ही प्रेरक लघुकथा...
ReplyDeleteवाह!!!
बहुत ही बेहतरीन
ReplyDeleteसास जब बहू का इतना साथ देने लगेगी तब सच में क्रांति हो जाएगी विभा दी !!!
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