Tuesday 7 May 2013

मैं





काश !
मैं एक विशाल वृक्ष और
छोटे-छोटे पौधे ही होती ....

 एक विशाल वृक्ष ही होती जो मैं ....
 मेरी शाखाओं-टहनियों पर
पक्षियों का बैठना - फुदकना
 मेरे पत्तों में छिपकर
 उनका आपस में चोंच लड़ाना ,
 उनकी चह-चहाहट - कलरव को सुनना ,
उनका ,शाखाओं-टहनियों पर ,पत्तों में घर बनाना ,
 गिलहरी का पूछ उठाकर दौड़ना-उछलना मटकना   ,
मेरी छाया में थके मनुष्य ,
 बड़े जीव जंतुओं का आकर बैठना
उनको सुकून मिलना ,
सबको सुकून में और खुश देख कर
मेरी खुशी को भी पंख लग जाते ....
मेरे शरीर से निकली आक्सीजन की
स्वच्छ वायु जीवन को सुकून देते  ,

छोटे-छोटे पौधे ही होती जो मैं ....
मेरे फूलो से निकले खुसबु ,
वातावरण को सुगन्धमय बनाती ....
मेरे पत्तों-बीजों से
औषधि बनते
 सबको नवजीवन  मिलते
 कितनी खुश होती मैं ...........
मुझे बयाँ करना मुश्किल है ......

लेकिन एक नारी औरत स्त्री हूँ मैं
जुझारू और जीवट
 जोश और संकल्पों से लैस मैं
सामाजिक-राजनीतिक चादर की गठरी में कैद मैं

सामाजिक ढाँचे में छटपटातीं-कसमसातीं मैं
नए रिश्तों की जकड़न-उलझन में पड़ कर
पर पुराने रिश्तों को भी निभाकर
हरदम जीती-चलती-मरती हूँ मैं
रिश्तों में जीना और मरना काम है मेरा ....
ऐसे ही रहती आई हूँ मैं
ऐसे ही रहना है मुझे ?

उलझी रहती हूँ उनसुलझे सवालों में मैं
जकड़ी रहती हूँ मर्यादा की बेड़ियों में मैं
जीतने हो सकते हैं बदनामी का ठिकरा
हमेशा लगातार फोड़ा जाता है मुझ पर
उलझी रहती हूँ मैं
 लेकिन
हँसते-हँसते सब बुझते -सहते
हो जाती हूँ कुर्बान मैं

कब-कब , क्यूँ-क्यूँ , कहाँ-कहाँ , कैसे-कैसे
 छली , कुचली , मसली और तली गई हूँ मैं
मन की अथाह गहराइयों में
दर्द के समुद्री शैवाल छुपाए मैं
शोषित, पीड़ित और व्यथित मैं
मन, कर्म और वचन से प्रताड़ित मैं

मानसिक-भावनात्मक और
सामाजिक-असामाजिक
कुरीतियों-विकृतियों की शिकार मैं
लड़ती हूँ पुराने रीति-रिवाजों से मैं
करती हूँ अपने बच्चों को सुरक्षित मैं
अंधविश्वासों की आँधी से
खुद रहती हूँ हरदम अभावों में मैं
पर देती हूँ सबको अभयदान मैं

http://sarasach.com/vibha-2/

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22 comments:

  1. di :)
    bahut behtareen rachna..
    अंधविश्वासों की आँधी से
    खुद रहती हूँ हरदम अभावों में मैं
    पर देती हूँ सबको अभयदान मैं

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  2. मानसिक-भावनात्मक और
    सामाजिक-असामाजिक
    कुरीतियों-विकृतियों की शिकार मैं
    लड़ती हूँ पुराने रीति-रिवाजों से मैं
    करती हूँ अपने बच्चों को सुरक्षित मैं
    अंधविश्वासों की आँधी से
    खुद रहती हूँ हरदम अभावों में मैं
    पर देती हूँ सबको अभयदान मैं

    बहुत सुन्दर रचना माँ | लाजवाब | बधाई

    कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
    Tamasha-E-Zindagi
    Tamashaezindagi FB Page

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  3. पौधे से वृक्ष तो आप बन ही चुकी ..... शाखाओं पर चिड़ियों की चहचहाहट, एहसासों की छाँव और कोमल पत्तियों की हवा में थिरकन ......
    बस इतना ही सच है,जहाँ अधिक सोच हुई - कैद हो जाएँगी

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  4. कब-कब , क्यूँ-क्यूँ , कहाँ-कहाँ , कैसे-कैसे
    छली , कुचली , मसली और तली गई हूँ मैं
    मन की अथाह गहराइयों में
    दर्द के समुद्री शैवाल छुपाए मैं
    शोषित, पीड़ित और व्यथित मैं
    मन, कर्म और वचन से प्रताड़ित मैं
    वाह दी ......बहुत बढ़िया ......बेहतरीन रचना दी .....

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  5. बहुत सुंदर रचना प्रस्तुति !!

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  6. बहुत सुंदर रचना प्रस्तुति !!

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  7. गहन सोच के साथ सुन्दर प्रस्तुति..

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  8. ऐसे ही रहती आई हूँ मैं
    ऐसे ही रहना है मुझे ?


    स्पष्ट बात कही... संवेदनशील भावों के साथ

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  9. मानसिक-भावनात्मक और
    सामाजिक-असामाजिक
    कुरीतियों-विकृतियों की शिकार मैं
    लड़ती हूँ पुराने रीति-रिवाजों से मैं
    करती हूँ अपने बच्चों को सुरक्षित मैं
    अंधविश्वासों की आँधी से
    खुद रहती हूँ हरदम अभावों में मैं
    पर देती हूँ सबको अभयदान मैं
    बहुत सुंदर प्रस्तुति !!
    डैश बोर्ड पर पाता हूँ आपकी रचना, अनुशरण कर ब्लॉग को
    अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
    latest post'वनफूल'

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  10. उलझी रहती हूँ उनसुलझे सवालों में मैं
    जकड़ी रहती हूँ मर्यादा की बेड़ियों में मैं
    जीतने हो सकते हैं बदनामी का ठिकरा
    हमेशा लगातार फोड़ा जाता है मुझ पर
    उलझी रहती हूँ मैं
    लेकिन
    हँसते-हँसते सब बुझते -सहते
    हो जाती हूँ कुर्बान मैं---------
    जीवन की गहन अनुभूतियों को समेटकर लिखी
    भावुक और मार्मिक रचना
    बधाई






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  11. वाह बहुत सुंदर गहन भाव लिए बेहतरीन प्रस्तुति,,,

    RECENT POST: नूतनता और उर्वरा,

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  12. बहुत प्यारी रचना. बहुत अच्छा लगा पढ़कर.

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  13. ऐसे ही रहती आई हूँ मैं
    ऐसे ही रहना है मुझे ?
    ऐसे ही रहें आप हमेशा ... अनंत शुभकामनाएँ
    सादर

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  14. सुन्दर प्रस्तुति बहुत ही अच्छा लिखा आपने .बहुत ही सुन्दर रचना.बहुत बधाई आपको

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  15. Beautiful picture. From where it was taken?

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  16. करती हूँ अपने बच्चों को सुरक्षित मैं
    अंधविश्वासों की आँधी से
    खुद रहती हूँ हरदम अभावों में मैं
    पर देती हूँ सबको अभयदान मैं

    ...बिल्कुल सच...यही तो नारी और माँ का रूप है...बहुत भावपूर्ण और प्रभावी रचना...

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  17. Beautiful as always.
    It is pleasure reading your poems...tai ji

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  18. बेहतरीन रचना दी ... अंतर्मन की व्यथा ..नारी का जीवन .. है तो वृक्ष का जड़ नारी पर ..

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  19. नारी की परिभाषा...क्या खूब लिखी है

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  20. गहन आभास लिए बहुत सुन्दर रचना...

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