Wednesday, 17 February 2016

सीपी





मेरा दिया नाम सीपी सुन बच्चों सी किलकती थी
साझा नभ का कोना में हाइकु लेखन समय कभी गलती से भी शान्ति जी या Shanti जी कह दी तो भड़क जाती थी
उसे हमेशा शिकायत रहती थी कि उसे कभी i love you नहीं बोली  मैं , जैसे अपनी बेटियों को बोलती हूँ
एक साँस में तुम्हें दस बार बोलना चाहती हूँ
नाम , जिसे प्यार , दिल से करते हैं , उसे ही देते हैं न

साझा नभ का कोना के लिए हाइकु लिखते समय ही सीपी बहुत परेशान रही .... लगभग पन्द्रह सालों के बाद उनकी बेटी को बच्चा होने वाला था ..... सीपी मन नहीं लगा पाती थी लेखन में जिसके कारण वो हमारी दूसरी किताब कलरव में शामिल नहीं हुई ..... या यूँ कहिये मैं उसे शामिल नहीं की .... मुझे उनकी कमी खलती थी लेकिन हडबडी(सीपी का दूसरा नाम , मैं उसे इसी नाम से बुलाने लगी थी , वो समझती थी , खुद की हडबडाहट) को शामिल करना गड़बड़ी ......

कलरव के बाद वर्ण पिरामिड पर बात चली तो सबसे पहले आकर msg की इस बार मैं आपकी सारी शर्तें मानूगी , मुझे शामिल जरुर कीजियेगा .... मैं बोली .... सोचूंगी .... दीदु आप मुझसे प्यार नहीं करती ..... जाओ शर्त ये है तो हाँ नहीं करती ....
जब 51 लोगों को शामिल करने की बात मन में आई तो उन्हें msg की ... किताब में शामिल हो जाओ .... पैसा जमा करा दो ..... हडबडी पैसा जमा करवाई तो 2167 की जगह 22000 जमा करवा दी .... अब खुद उसकी हदबदाहत शुरू .... दीदु पैसा लौटा दो .... नहीं लौटाती जाओ .... उसके पैसे लौट गये 2167 काट कर .... वो एक मेल भेजी 6 रचना की

कुछ दिन ही बीते कि उनके दमाद की बीमारी शुरू और सीपी की परेशानी शुरू ..... दमाद की मृत्यु के बाद वो निराश हो गई कि उससे लेखन अब नहीं होगा .... सुबह से शाम वो मानसिक कष्ट में जी रही थी ..... दिसम्बर के अंत में वो बोली , मेरे पैसे लौटा दो , मैं लिख नहीं पाउंगी ..... कई दिन समझाने के बाद ये तैय हुआ कि फरवरी तक देखो अगर फरवरी तक लिखने की स्थिति में नहीं रहोगी तो मैं पैसे तुम्हारे लौटा दूंगी ....
मुझे लगा कि फरवरी तक वो जरुर सम्भल जायेगी .... मई तक लिख लेगी पूरा .....

एक दिन जनवरी में मैं उसे msg की आज निर्णय करो कि तुम्हें लिखना है या तुम्हारे पैसा लौटा दूँ .... दीदु आप फरवरी तक समय खुद दी थीं ... अब क्या हो गया .... मुझे हडबडी पर भरोसा नहीं ... ना जाने कब वो पलटी मारे .... अभी मेरे पास समय नये लोगों को जोड़ने का .... बाद में ना तुम रहो और ना समय रहे कि मैं नया जोड़ पाऊं

वो सक्रिय होने लगी .... हडबडी में वो थी या मुझे कुछ आभास हो रहा था ....

4 comments:

  1. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 18-02-2016 को वैकल्पिक चर्चा मंच पर दिया जाएगा
    धन्यवाद

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  2. प्रशंसनीय

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  3. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, " जय जय संतुलन " , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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