ठूंठ सिखाये जीवनियाँ
बन्ना सा वन
बन्ना सा वन
जमे बन ठनके
बाँध मुरेठा केसरियाँ
चीथड़े पोशाकें
बदरंग चेहरे
सतरंगी बनाए
जोश फगुनियाँ
भेज कनकनियाँ
आये कुनकुनियाँ
शुरू हुए उठंगुनियाँ
किलो के किलो बड़े आलू का रूप बिगाड़ते
तब महंगाई का हम बच्चे कहाँ थे समझते
चार सौ बीस .... चाचा चोर ... भतीजा पाजी
तैयार करने के लिए भैया को करते थे राजी
रंग लगा .. धीरे से मौका ढूंढ़ , पीठ पे चिपकाते
सूखा रंग छिड़कने के लिए गंजा सर खोजते
भोले भाले .... शैतानी करना नहीं सोचा करते
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आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 24-03-2016 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2291 में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद
बहुत खूब
ReplyDeleteहोली शुभ हो । शुभकामनाएं ।
ReplyDeleteहोली की हार्दिक शुभकामनाएं। बहुत ही सुंदर होली गीत।
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