बिहार दिवस का उल्लास चहुँ ओर बिखरा पड़ा नजर आ रहा... मैं किसी कार्य से गाँधी मैदान से गुजरते हुए कहीं जा रही थी कि मेरी दृष्टि तरुण वर्मा पर पड़ी जो एक राजनीतिक दल की सभा में भाषण सा दे रहा था। पार्टी का पट्टा भी गले में डाल रखा... तरुण वर्मा को देखकर मैं चौंक उठी... और सोचने लगी यह तो उच्चकोटी का साहित्यकार बनने का सपने सजाता... लेखनी से समाज का दिशा दशा बदल देने का डंका पीटने वाला आज और लगभग हाल के दिनों में ज्यादा राजनीतिक दल की सभा में...
स्तब्ध-आश्चर्य में डूबी मैंने यह निर्णय लिया कि इससे इस परिवर्त्तन के विषय में जानना चाहिए... मुझे अधिक प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ी... मुझे देखकर वह स्वत: ही मेरी ओर बढ़ आया।
औपचारिक दुआ-सलाम के बाद मैंने पूछ लिया , "तुम तो साहित्य-सेवी हो फिर यह यह राजनीति?"
उसने हँसते हुए कहा, "दीदी माँ! बिना राजनीति में पैठ रखे मेरी पुस्तक को पुरस्कार और मुझे सम्मान कैसे मिलेगा ?"
मैंने पूछा "तो तुम पुरस्कार हेतु ये सब...?
बन्धु! राजनीति में जरूरत और ख्वाहिश पासिंग बॉल है...
पढ़ा लिखा इंसान राजनीति करें तो देश के हालात के स्वरूप में बदलाव निश्चित है...
दवा बनाने वाला इलाज़ करने वाला नहीं होता... कानून बनाने वाला वकालत नहीं करता...
तो साहित्य और राजनीति दो अलग अलग क्षेत्र हैं तो उनके दायित्व और अधिकार भी अलग अलग है..."
मेरी बातों को अधूरी छोड़कर वह पुनः राजनीतिज्ञों की भीड़ में खो गया... साँझ में डूबता रवि ना जाने कहीं उदय हो रहा होगा भी या नहीं...
अगर स्वार्थ हित साधने हेतु साहित्यकार राजनीतिक बनेगा तो समाज देश का दिशा दशा क्या बदल पायेगा... मैं अपनी मंजिल की ओर बढ़ती चिंतनमग्न थी...
दरबारी लोग भी बहुत हैं !
ReplyDeleteनिजी स्वार्थ के आगे भला कलमकारों को समाज की सुधि कहाँ....बेहद गंभीर चिंतनशील लेख है दी।
ReplyDeleteकाश कि निज स्वार्थ से ऊपर उठकर समाज के लिए भी हम कुछ सकारात्मक कर पायें।
बहुत सुन्दर ....सत्य लिखा आप ने
ReplyDeleteप्रतीकात्मक लेख द्वारा गहन बात ..
ReplyDeleteसमयानुसार विचार भी बदल जाते हैं।
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, जज साहब के बुरे हाल “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteसस्नेहाशीष संग हार्दिक आभार
Deleteशब्द सार्थक हुए
आपकी लिखी ये रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 29 एप्रिल 2018
ReplyDeleteको साझा की गई है...............http://halchalwith5links.blogspot.com पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
मेरा अपना मानना है कि एक साहित्यकार भी रातनीति कर सकता है.
ReplyDeleteराजनीती भी एक सुधर का क्षेत्र है.
लेकिन केवल अपने स्वार्थ के लिए राजनीती करना ये केवल कलंक है उसकी नीची सोच पर.
विचारणीय लेख.
स्वागत है गम कहाँ जाने वाले थे रायगाँ मेरे (ग़जल 3)
स्वार्थ की राजनीति है चहुँ ओर । सटीक लेख ।।वाह!!
ReplyDeleteजब तक स्वार्थ से ऊपर नहीं उठेंगे तब तक कुछ नहीं हो सकता पर हमेश उम्मीद बनी रहती है विचार बदलेंगे जरूर गंभीर विचारणीय लेख है आपका
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