"यह कय्या सुन रहा हूँ अरूण जी ! थर्मल पावर, NTPC को दे दिया गया ?" भूतपूर्व महाप्रबंधक ने वर्त्तमान महाप्रबंधक से बात की।
"हाँ ! आप सत्य बात सुन रहे हैं... । चार साल से बंद जर्जर थर्मल पावर के जीर्णोद्धार के लिए आपकी पदस्थापना की गई थी... कभी।"
"मैं राँची जाने के लिए पटना स्टेशन पर रेल के लिए प्रतीक्षारत था कि ऑफिस से फोन आया कि आप तुरन्त चार्ज लेने पहुँचे... मैंने कई दलील दिया
-मुझसे कई लोग सीनियर हैं उनमें से किसी को भेजा जाए
-आज शुक्रवार है शनिवार रविवार को छुट्टी है सोमवार को चार्ज ले लेता हूँ
-महीने का आखरी ही है पहली से चार्ज लेना सही रहेगा...
लेकिन मेरी कोई दलील नहीं सुनी गई , सुनी भी कैसे जाती पहले महाप्रबंधक को उनके रिटायरमेंट के आखरी दिन रिश्वतखोरी के इल्ज़ाम में सस्पेंड कर दिया गया था... मेरा जाना और चार्ज लेना अति आवश्यक बना दिया गया..."
"आपसे सीनियर लोगों में वह काबिलियत नहीं थी जो आपमें दिखी , ईमानदारी का नशा ... गलत बातों को नहीं होने देना... जीर्णोद्धार के लिए जो फंड सरकार से मिला था उसके पाई-पाई को जीर्णोद्धार में ही लगाने का जज़्बा...।"
"हाँ तभी तो जीर्णोद्धार के जंग खत्म होते-होते चुनाव आ गया... और खाने-कमाने के लिए मुझे वहाँ से निकाल फेका गया... बर्फ का सिल्ली है, सरकारी फंड... बीरबल ने अकबर को एक बार बतलाया था न।"
सत्य....वाह्ह्ह...बढ़िया👌👌
ReplyDeleteबहुत उम्दा
ReplyDeleteआदमी ना हुआ लोहा हो गया। सुन्दर।
ReplyDeleteआदरणीय दीदी -- थोड़े में ज्यादा कहती रचना राज तन्त्र के नासूर चलन को इंगित करती है | अत्यंत प्रभावशाली लघु रचना के लिए आपको हार्दिक शुभकामनायें |
ReplyDeleteसत्य बात सुन रहे हैं....बेहद प्रभावशाली लघु रचना
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