आज मॉनसून की पहली बौछार से याद आया
मैं जिस शहर में हूँ
उसने बरगद को जड़ सहित उखाड़ फेका है।
पक्षियों को बसेरा देते-देते
नौ दल, चचान जुंडी, तेंदू , बड, पीपल, इमली, सिंदूर, माकड तेंदू, अमरबेल को शिरोधार्य करने वाला।
मनौती का धागा, चुनरी, घण्टी, ताला
अनेकानेक सहेजने वाला,
टहनियों में लटकाये भीड़ बया के नीड़ वाला।
नीड़ से ज्ञान लिया होगा रिश्तों के धागों ने उलझ जाना!
अक्षय वट के क्षरण के उत्तरदायित्व का
स्पष्ट कारण का नहीं हो पाना।
मुक्तिप्रद तीर्थ गया में अंतिम पिंड का
प्रत्यक्षदर्शी गयावट ही है...!
बदलते समय की वेदना को व्यक्त करती अप्रतिम रचना !!
ReplyDeleteसस्नेहाशीष शुक्रिया
Deleteहार्दिक आभार आपका
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर
ReplyDeleteवाह
ReplyDeleteयथार्थ को उकेरती सुंदर रचना...
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