"हम एक ही प्रजाति के थे। तुम बौना रह जाते थे तब भी महंगे दामों में खरीद लिए जाते। हम विस्तार पाए रहते थे तब भी सस्ते दामों से बामुश्किल किसी चौके के छौंक तक पहुँच पाते थे,"
"भले हम कद में बौने होते, स्वास्थ्य के लिए हानिकारक नहीं होते थे।"
"हम अपना दर्द दिखाएं किसे और छुपा लें किनसे..!"
"बछड़े या पड़वा को दूध पिलाया जाए तो भी हमारा दूध नहीं उतरता था। ऑक्सिटोसिन के स्थान पर डिस्टिल वाटर का इंजेक्शन भी दूध उतारने में सहायक हो गया।"
"यम महाराज हमारी विनती पर गौर करें, इन मानवों को ऑक्सिटोसिन का इंजेक्शन ही दिया जाए।"
" मैं तो आया हूँ- देवि बता दो
जीवन का क्या सहज मोल
भव के भविष्य का द्वार खोल
इस विश्वकुहर में इंद्रजाल
अचकचाकर उसकी आँख खुल गयी। सपने से मानों विलीनता के कगार से लौटी हो का शरीर पसीने से गीला था। वह तो कामायनी पढ़ते हुए सो गयी थी।
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हाँ!
किस्सा
भू लिप्सा
द्यौ का दित्सा
मेघ का कुत्सा
आँखें प्यासी रही
सिन्धु ना दे स्व हिस्सा। {01.}
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ज्जा!
सम
असम
मेघ नम
भू का दम है
व्योम को गम है
राहत व आफत। {02.}
सुन्दर
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 11 अक्टूबर 2021 को साझा की गयी है....
ReplyDeleteपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
असीम शुभकामनाओं के संग हार्दिक आभार आपका
Deleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteअतिसुन्दर
ReplyDeleteबहुत सुंदर वर्ण पिरामिड ।
ReplyDeleteऑक्सिटोसिन का इंजेक्शन ! सोचनीय स्थिति है आजकल इस इंजेक्शन के दुरुपयोग से दूध एवं फल तक फायदे की जगह नुकसानदेह हो रहे हैं
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर सार्थक सृजन।