Wednesday 8 February 2023

परस्परवाद

परस्परवाद


अनेकानेक लोग अखबार पढ़-पढ़कर आपस में चर्चा कर रहे हैं,"इस बार तो इस नेता जी की जीत पक्की है..."

 जिसे सुनकर तोता ने मैना से पूछा,"ऐसा क्यों?"

"चुनाव लड़ रहे नेता ने अपने मित्र से विमर्श किया, "यार! पता नहीं क्या बात है कि कोई अखबार मेरा समाचार छापता ही नहीं है, गर छापता भी है तो इस कदर कि उसका कोई मानी-मतलब ही न हो।"

"यार चुनाव का समय ... इसे पहचानो... आज के समय में तुम अखबार को लाभ पहुँचाओ... वो तुम्हें पहुँचाएगा...।" नेता जी के मित्र ने कहा।

"मतलब?" नेता जी ने पूछा।

"अख़बार का प्रकाशन... एक धंधा है... व्यापार है...। मालिक को अख़बार चलाना है तो उसे भी पैसा चाहिए..!" मित्र ने कहा।

"अख़बार तो तटस्थ होता है न! जो आँखों देखता है उसे समाजहित में यानी समाज को सही दिशा देने की दृष्टि से ईमानदारी से पत्रकारिता का दायित्व निभाना होता है..।" नेता जी ने कहा।

"यार! यह गणेश शंकर विद्यार्थी का युग नहीं है...; अब यहाँ पत्रकारिता क्या, सबकुछ लेनदेन के आधार पर चलता है...।" मित्र ने कहा।

"तो मुझे क्या करना चाहिए?" नेता जी ने पूछा।

"चुनाव जीतना है तो अख़बार को बड़े-बड़े विज्ञापन दो..., संवाददाताओं को पैसे और बढ़िया-बढ़िया उपहार दो फिर देखो!" मित्र ने सुझाव दिया।

"चुनाव जीतने हेतु तो यार कुछ भी करूँगा..., जो तुमने कहा उसे अभी इसी वक्त...," नेता जी ने कहा।

"और आनन फानन में नेता जी ने प्रेस कांफ्रेंस बुलाई.. जो वो अपने हित में छपवाना चाहते थे.. विज्ञप्ति बनवाकर हर प्रेस के संवाददाता को दे दिया। 

और देख लो आज के सारे अख़बार में नेता जी - ही -  नेता जी छाए हुए हैं..," मैना ने कहा।

"और जनता...?" तोता ने सवाल किया।

"हिसाब करेगी न...!" मैना ने कहा।

आज भी अधिकांश जनता अख़बार से ज्यादा अपने आस-पास से मिले अनुभव से समझती है न...।



5 comments:

  1. शुभकामनाओं के संग हार्दिक आभार

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  2. कड़वी सच्चाई।

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  3. सब बदल रहा है बस हमें छोड़कर

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  4. व्वाहहहहहहह
    सुन्दर कहा-सुनी
    तोता -मैना की
    झुठला के बता
    हां नई तो
    सादर नमन

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