छन छन छन् न् छन् न् छन जल प्रपात का संगीत गूँज रहा था और उसके जल पर सूर्य की किरणें इंद्रधनुष बना रही थी। लाखों पर्यटकों की भीड़ इकेबना की तरह सजी हुई थी। एक नाम को सभी पुकार रहे थे। वही इस जल प्रपात को ढूँढ़ निकालने वाला और संरक्षक था। पिछ्ले दिनों आई बाढ़ में लगभग सौ लोगों की जान बचा लेने वाला, स्व अपनी जान बचा लेने का गुहार लगा रहा था। उसे पुलिस दबोच ले गयी थी।
"जी हजूर! आप किस आधार पर त्रिवेणी को कोतवाली उठा लाए हैं?" पत्रकार ने पुछा।
"त्रिवेणी के खिलाफ शिकायत दर्ज करवायी गयी है कि वह जल बाँटने में, आस-पास लगे दुकानों से अनाधिकार वसूली करता है। नक्सलियों के गढ़..." थानेदार अपनी बात पूरी नहीं कर सका।
"वह वसूली करता है या आपलोगों की वसूली नहीं हो पा रही है?वह दिन गए जब खलील खां फाख्ता उड़ाते थे...।" भीड़ से सवाल उछ्ला।
"कौन बोला? कौन•••," थानेदार की कलई उतर रही थी तो वह तेज गरम होने लगा था।
"सवाल यह नहीं है कि कौन बोला। माँग यह है कि आप त्रिवेणी को अविलंब छोड़ रहे हैं। पदच्युत नहीं ही होना चाहेंगे, उसके समर्थन में जुटी भीड़ का आकलन कर लिजिए। ऐसा ना हो कि दंगा छिड़ जाये।" पत्रकार ने कहा।
"आप थानेदार को धमकी दे रहे हैं।" थानेदार की घिघ्घी बन्धने ही वाली थी।
"धमकी नहीं दे रहा हूँ, सम्भल जाईये, चेता रहा हूँ। दोबारा ऐसा ना हो। अजगर के पेट में नीलगाय का छौना नहीं अटता।" त्रिवेणी को साथ लेकर निकलता पत्रकार ने कहा।
ऐसे भी पत्रकार होते है आज के समय में?
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