Monday 27 April 2015

भूकंप


परसों सुबह सुबह बहुत खुश थी ..... 
चारों ओर हरियाली अपने बगीचे में देख कर ....


उड़ी उदासी
पतझड़ की पाती
ठूंठ गुलाबी।

लेकिन दोपहर होते होते ख़ुशी हवा के संग हवा हो गई। …

ढहे मकान
ताश पत्ते बिखरे
भूडोल चीखी।


नेपाल केंद्र रहा भूकंप का लेकिन हिन्द के आधे भाग भी अछूते नहीं रहे तो ….. मुझे भी अनुभव रहा ….

मौत का खौफ
शोर चीखता जोर
भू डोलती ज्यूँ

या कुछ ऐसा

मौत का खौफ
जीव भोगे यथार्थ
भू कांपती ज्यूँ

सभी भगवान को दोष दे रहे …..

सृष्टि खंजर
क्रूरता का मंजर
खाक गुलिस्ताँ 

तो कुछ ….इंसानी पाप का फल समझ रहे हैं ….. मुझे लगा

भूडोल चीखी
स्त्री कुचली सताई
बिफरी मौन

मेरे एक फेसबुक के मित्र को लगा

Tushar Gandhi जी

tremors
even after earthquake-
Parkinson’s


anuvadit rachana Vibha Shrivastava ji ke sahayog se…..

भूडोल चीखें
तामसी थरथरी/थरहरी
पार्किंसनस।

5 comments:

  1. मैं टीवी नहीं देख पा रहा हूँ । देखा नहीं जा रहा है । चांस की बात है । कल मलबे में हम भी हो सकते थे । हम एक अराजक जीवन का हिस्सा हो चुके हैं । दसवीं मंज़िल के ख़ौफ़ से निकलना मुश्किल हो रहा है । पर मकान तो पहली मंज़िल वाले भी ढह गए । डर मौत का नहीं है । डर है उस जाल में फँसे होने का । सबका सुख यही है कि सब फँसे हुए हैं । सुना है कि भारत सरकार ने बेहद तत्परता दिखाई है । भारत सरकार नेपाल के साथ खड़ी है । एक थम्स अप मेरी तरफ़ से भी । पर मैं तो खुद के साथ भी खड़ा नहीं हू । हम कहाँ जाएँ । हमारे जैसे कहाँ जाएँ । कंक्रीट का बेतरतीब जाल फैल गया है । इस ख़ित्ते में अभी 7.9 के पचास और भूकंप आएँगे तब धरती की आग बुझेगी । इसका मतलब हम जान न जाए इसके लिए कुछ नहीं कर पायेंगे । लाशों को निकालने की बहादुरी से ही संतोष कर लेंगे । लेकिन जो मकान हमारी मौत के इंतज़ाम के तौर पर खड़े हैं उनसे राहत कौन दिला सकता है । सरकार, सेना, नक़्शानवीस, इंजीनियर, बिल्डर, नेता और हम आप । दिल्ली से लेकर नेपाल तक मरे हुए ज़िंदा लोग मरे हुए लोगों पर शोक मना रहे हैं । शोक या अपने बचे हुए की ख़ैर मना रहे हैं । -रवीश कुमार(N.D.T.V.india से साभार)

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  2. यथार्थ प्रस्‍तुत करती हुई आपकी रचना। मैंनें जब भूकंप महसूस किया तो कुछ ऐसे ही विचार उत्‍पन्‍न हुए थे।

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  3. जो भी है इस घड़ी को झेलना इंसान के लिए बहुत ही मुश्किल है ... प्राकृति अपना काम कर गयी ..पता नहीं इंसान सुधरेगा भी या नहीं ... पर इश्वर है जो सब कुछ देख रहा है ...

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  4. मानव मस्तिष्क व तकनीकी विज्ञान प्रकृति के स्वाभाव को समझ नही पांया हैं। त्रासदी पर भावपूर्ण रचना।

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  5. रचनाएं, मन उद्वेलित कर गयीं :)

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