Thursday 29 June 2017

सूझ-बूझ


कोई भी स्वचालित वैकल्पिक पाठ उपलब्ध नहीं है.

"इतने सारे बिस्कुट के पैकेट! क्या करेगा मानव ?" विभा अपनी पड़ोसन रोमा से पूछ बैठी ।

"क्या बताऊँ विभा! अचानक से खर्च बढ़ा दिया है, बिस्कुट के संग दूध , रोटी , मांस खिलाता है । मेरा बेटा नालायक समझता ही नहीं , महंगाई इसे क्या समझ में आयेगा! सड़क से उठाकर लाया है, एक पिल्ले को ।"

"क्या ! सच!"

"हाँ आंटी! कल मैं जब स्कूल से लौट रहा था तो एक पिल्ला लहूलुहान सड़क पर मिला, उसे मैं अपने घर नहीं लाता तो कहाँ ले जाता ? ना जाने किस निर्दई ने अपनी गलती को सुधारना भी नहीं चाहा । माँ मेरी बहुत नाराज़ है , लेकिन यूँ इस हालत में इसे सड़क पर कैसे छोड़ सकता था मैं ?"

                     शाम के समय, विभा अपने घर के बाहर टहल रही थी तो पड़ोसन का कुत्ता उसकी साड़ी को अपने मुँह में दबाये बार-बार कहीं चलने का इशारा कर रहा था... वर्षों से विभा इस कुत्ते से चिढ़ती आई थी क्यूंकि उसे कुत्ता पसंद नहीं था और हमेशा उसके दरवाजे पर मिलता उसे खुद के घर आने-जाने में परेशानी होती... अपार्टमेंट का घर सबके दरवाजे सटे-सटे... जब विभा कुत्ते के पीछे-पीछे तो देखी रोमा बेहोश पड़ी थी इसलिए कुत्ता विभा को खींच कर वहाँ ले आया था... डॉक्टर को आने के लिए फोन कर, पानी का छींटा डाल रीमा को होश में लाने की कोशिश करती विभा को अतीत की बातें याद आने लगी

"कर्ज चुका रहे हो" कुत्ते के सर को सहलाते विभा बोल उठी।"





16 comments:

  1. शुभ प्रभात दीदी
    सादर नमन
    मैं इसे लघुकथा न कहकर
    जीवन का सत्य कहँगी
    सादर

    ReplyDelete
    Replies
    1. सस्नेहाशीष छोटी बहना
      कल्पना करना नहीं आता न

      Delete
  2. दिनांक 30/06/2017 को...
    आप की रचना का लिंक होगा...
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी इस चर्चा में सादर आमंत्रित हैं...
    आप की प्रतीक्षा रहेगी...

    ReplyDelete
  3. सहज मानवीय संवेदनाएं समेटे हुए यह लघुकथा पशुप्रेम और जीवन में उसकी उपयोगिता एवं गाली बन चुके शब्द "कुत्ते " की वफ़ादारी और समझ को सहजता से प्रस्तुत करती है। आदरणीय विभा दीदी के जीवन का वास्तविक प्रसंग लगता है।

    ReplyDelete
  4. यही सत्य है जो नजर आता है हम कोशिश भी नहीं करते हैं कोई समझा जाता है।

    ReplyDelete
  5. वफादारी की मिसाल ! प्रेरक प्रसंग ।

    ReplyDelete
  6. मानवीय संवेदनाओं को समेटे सुन्दर लघु कथा ...

    ReplyDelete
  7. विचारणीय बात लिए कथा ... कम शब्दों में सार्थक बात कही

    ReplyDelete
  8. यादों को सेल्फ में करीने से लगाती हैं आप

    ReplyDelete
  9. "क्या बताऊँ विभा! अचानक से खर्च बढ़ा दिया है, बिस्कुट के संग दूध
    वफादारी की मिसाल सुन्दर लघु कथा :)

    ReplyDelete
  10. संस्मरण को बड़ी सादगी से रोचक बना दिया आपने !

    ReplyDelete
  11. संस्मरण को बड़ी सादगी से रोचक बना दिया आपने !

    ReplyDelete
  12. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete
  13. जीवन का सत्य उजागर करती सुंदर रचना

    ReplyDelete
  14. संवेदनाओं की लहर में गोते लगाते बेहतरीन रचना ,पहली बार आपके ब्लॉग पर आना हुआ बड़ा अच्छा लगा रचनाएँ पढ़कर ,कभी वक्त मिले तो मेरे ब्लॉग https://shayarikhanidilse.blogspot.com/
    पर भी आइएगा ....

    ReplyDelete

आपको कैसा लगा ... यह तो आप ही बताएगें .... !!
आपके आलोचना की बेहद जरुरत है.... ! निसंकोच लिखिए.... !!

दुर्वह

“पहले सिर्फ झाड़ू-पोछा करती थी तो महीने में दो-चार दिन नागा कर लिया करती थी। अब अधिकतर घरों में खाना बनाने का भी हो गया है तो..” सहायिका ने ...