Tuesday 5 June 2018

◆अपनी_बारी_खुशियों_से_यारी◆

05-06-2018

आज सुबह चार बजे आँख खुली तो कच्ची नींद जगी हूँ , ऐसा नहीं लगा... एक पल सोचने में लगा दिमागी अलार्म बजा क्यों... उठकर मोबाइल सर्च की तो पता चला देर रात सूचना आई थी संगनी क्लब में जाना है... पर्यावरण रैली में शामिल होने... साढ़े छ में पहुँचना है... रात में सोते समय दिमागी अलार्म अपना सेट हुआ... साढ़े छ में पहुँचने का मतलब पौने छ में घर छोड़ देना... दो ऑटो बदलना ,नियत स्थान पहुँचने के लिए... घर के काम क्यू में... सिंक भरा रात के झूठे बर्त्तन से, आम-लीची के दिनों में कूड़ा ,अपार्टमेंट में कूड़ा उठाने आनेवाला शहंशाह (कोई नियमित समय नहीं) सुबह का नाश्ता (गृहणी को घर से बाहर अगर जाना हो तो अतिथि भी आयेंगे) आज दही-चूड़ा से तो बिल्कुल नहीं चलेगा... कुछ स्पेशल बना देना... वो तो चना मूंग फूला/अंकुरित रहता है... आलू उबला रहता है... खीरा-आम का दिन तो फल की चिंता नहीं और तैयार चटनी आचार थोड़ा खटमिठी , तड़का , खीर ... आटा गूंधो... सारे काम निपटाते समय सोच रही थी दो बातें...
जब पापा चार बजे उठते थे तो मैं झल्ला जाती थी "ना चैन से सोते हैं ना सोने देते हैं , चार बजे से उठकर सारे घर को उठा देते हैं..." चापाकल का शोर ही इतना कर्कश लगता था...
 
जब महबूब चार बजे उठकर तैयार होता था कोचिंग और विद्यालय के लिए... "कब बड़ा हो जाएगा कब नौकरी में आ जायेगा तो तान कर लम्बी नींद खिचुंगी"...

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छतरी का चलनी…

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