मिलनोत्सव
कुल्फी व मोमबत्ती
दोनों पिघले!
रेत से हटे
स्वचित्र की लहरें-
सन्धिप्रकाश
लो
मारू
वैवर्त
गुणधर्म
अति में गर्त
ना प्यार में शर्त
जल स्त्री संरचना
हाँ
हर्ता
शर्वाय
जलवाहिनी
सिंधु की सत्ता
भू स्त्री व लंकारि
भूले न स्व महत्ता
“नभ की उदासी काले मेघ में झलकता है ताई जी! आपको मनु की सूरत देखकर उसके दर्द का पता नहीं चल रहा है?” “तुम ऐसा कैसे कह सकते हो, मैं माँ होकर अ...
सादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार(26-12-21) को क्रिसमस-डे"(चर्चा अंक4290)पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
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कामिनी सिन्हा
हार्दिक आभार आपका
Deleteवाह...
ReplyDeleteबहुत सुंदर।
New post - मगर...
वाह बहुत खूब..
ReplyDeleteकुल्फ़ी और मोमबत्ती दोनों पिघले !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर हाइकू !