Friday, 4 April 2014

आदत



आदत रही घाव को नासूर बनने नहीं देना
आदत रही किसी को भी बद्ददुआ नहीं देना
सबका हिसाब-किताब ऊपर बैठा कर देता है
आदत रही शंका को समीप आने नहीं देना

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चाक चलाया
नव सृजन किया 
रग्गी हर्षाये।

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रात्रिज छिपे 
भू बेल्लाग सन्नाटा 
ह्राद डराये ।

मूसलाधार वर्षा के बाद का धूप =रग्गी

रात्रिज = रात मे जन्म ..... नक्षत्र तारें .......... 
बेल्लाग =  स्पष्ट ...... ह्राद = मेघ का गर्जन

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गिरो ना नाला
हाला है हलाहल
पक्का दिवाला ।

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नवीन विधा 
कालजयी अध्येता 
जीवन देता।

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बिहँसे हिय 
छूती शिखर सुता
नैन में भय।

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जला मकान
खर फूस छावन
घर ढिबरी ।

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घनतिमिर
साया लम्बी हो जाती
स्ट्रीट प्रकाश ।

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हर्ष की विभा 
श्री वास्तव में मिलें 
बिखरी प्रभा ।

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9 comments:

  1. सभी हाइकू बहुत सुंदर..और अंतिम तो लाजवाब!

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  2. जला मकान
    खर फूस छावन
    घर ढिबरी ।
    ....एक से एक गहरे अर्थो वाली पंक्तिया .......मन फ्रेश हो गया !!

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  3. क्या बात है। लाजवाब रचना।

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  4. बहुत सुन्दर ... प्रखर हाइकू ... एक से बढ़कर एक ...

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  5. शब्दों की कारीगरी, सुन्दर भावों के साथ।

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  6. एक से बढ़कर एक हायकू..सभी बहुत सुन्दर....

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