कुआँ नदी दरिया सोख काली घटा बन गए
मरुस्थल भीगा सको ,घनघनाना हो सार्थक
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चूल्हा जला कर सेकी जाती थी कभी रोटियाँ
अब तो गोटी फिट करते हैं जला कर बोटियाँ
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रात सहती
प्रसव टहकना
सूर्य ले जन्म ।
टहकना = थोड़ी थोड़ी देर में दर्द उठना
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हो गई रात
रहस्य सूर्यग्रास
गगनांगन ।
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मन उठल्लू
स्वार्थ क्षणिक गांठ
सोच निठल्लू ।
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स्वार्थ क्षणिक गांठ
सोच निठल्लू ।
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अनर्थ शब्द
रिश्ता-कश्ती डूबती
हद तोड़ती ।
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बने मकान
समुंद्र पाट देंगे
कचरा भर ।
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दोस्ती दरिया
प्यार शंख-सीपियाँ
धोखा ना रेंगे ।
## या ##
दोस्ती दरिया
धोखा शंख-सीपियाँ
रिश्ता मलिन ।
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तट छू लेती
उत्साहित ऊर्मियाँ
पग फेरती ।
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पत्ते चीखते
ठूंठ नहीं रो पाते
कुचले जाते ।
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बहुत ही बढ़िया
ReplyDeleteआ. बढ़िया व छोटी कृतियाँ , गहरापन लिए हुए ;) धन्यवाद
ReplyDeleteI.A.S.I.H ब्लॉग ( हिंदी में समस्त प्रकार की जानकारियाँ )
बहुत सुन्दर सार्थक रचना ..
ReplyDeleteबहुत उम्दा सार्थक हाइकू ...!
ReplyDeleteRECENT POST - आज चली कुछ ऐसी बातें.
सभी के सभी बहुत बढ़िया लगे |
ReplyDeleteBahut achha hai sankalan..
ReplyDeleteबहुत मन भाया.
ReplyDeleteबहुत ही बढिया है दीदी!! कहाँ से लाती हैं आप ये शब्द!!
ReplyDeleteatiutam-***
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDeleteबहुत खूब .जाने क्या क्या कह डाला इन चंद पंक्तियों में
ReplyDeleteबहुत सुन्दर...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर, बधाई.
ReplyDeleteगहरी बातें बड़ी सहजता से कह दी
ReplyDeleteबहुत रचना सुन्दर-----
आग्रह है----
और एक दिन
एक से बढ़कर एक ! :)
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