Tuesday, 15 April 2014

अनर्थ शब्द



कुआँ नदी दरिया सोख काली घटा बन गए 
मरुस्थल भीगा सको ,घनघनाना हो सार्थक 
=============
चूल्हा जला कर सेकी जाती थी कभी रोटियाँ 
अब तो गोटी फिट करते हैं जला कर बोटियाँ

==========

रात सहती 
प्रसव टहकना 
सूर्य ले जन्म ।

टहकना = थोड़ी थोड़ी देर में दर्द उठना 

==========

हो गई रात 
रहस्य सूर्यग्रास 
गगनांगन ।

===========

मन उठल्लू
स्वार्थ क्षणिक गांठ
सोच निठल्लू ।

===========

अनर्थ शब्द 
रिश्ता-कश्ती डूबती 
हद तोड़ती ।

==========

बने मकान 
समुंद्र पाट देंगे 
कचरा भर ।

==========

दोस्ती दरिया
प्यार शंख-सीपियाँ
धोखा ना रेंगे ।

## या ##

दोस्ती दरिया
धोखा शंख-सीपियाँ
रिश्ता मलिन ।

===========

तट छू लेती 
उत्साहित ऊर्मियाँ
पग फेरती ।

===========

पत्ते चीखते 
ठूंठ नहीं रो पाते 
कुचले जाते ।

===========

15 comments:

  1. आ. बढ़िया व छोटी कृतियाँ , गहरापन लिए हुए ;) धन्यवाद
    I.A.S.I.H ब्लॉग ( हिंदी में समस्त प्रकार की जानकारियाँ )

    ReplyDelete
  2. बहुत सुन्दर सार्थक रचना ..

    ReplyDelete
  3. सभी के सभी बहुत बढ़िया लगे |

    ReplyDelete
  4. बहुत ही बढिया है दीदी!! कहाँ से लाती हैं आप ये शब्द!!

    ReplyDelete
  5. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!

    ReplyDelete
  6. बहुत खूब .जाने क्या क्या कह डाला इन चंद पंक्तियों में

    ReplyDelete
  7. बहुत सुन्दर...

    ReplyDelete
  8. गहरी बातें बड़ी सहजता से कह दी
    बहुत रचना सुन्दर-----

    आग्रह है----
    और एक दिन

    ReplyDelete
  9. एक से बढ़कर एक ! :)

    ReplyDelete

आपको कैसा लगा ... यह तो आप ही बताएगें .... !!
आपके आलोचना की बेहद जरुरत है.... ! निसंकोच लिखिए.... !!

प्रघटना

“इस माह का भी आख़री रविवार और हमारे इस बार के परदेश प्रवास के लिए भी आख़री रविवार, कवयित्री ने प्रस्ताव रखा है, उस दिन हमलोग एक आयोजन में चल...