Thursday, 1 May 2014

रिश्ते सितार






धनक ओले
टिकुली टेलकम
अम्ब ललाट। 

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उत्साह तंग 
कस बल हो ढीला
जीवन जंग। 

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तड़प जिये
दहकता अंगार
चोंच लहके। 

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स्वर्ण हो गई 
रवि की आँख खुली 
निशा चादर। 

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संभल बजा 
रिश्तों की है सितार
नाजुक तार। 

या 

रिश्ते सितार
संभलकर बजा
नाजुक तार। 

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छुई मुई सी 
सरि गिरि से गिरी
वारी घूँट पी / सिन्धु में लीन। 

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श्रम है पूजा 
बदल देती भाग्य 
शोर है गूंजा। 

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अबोध श्रम
प्रताड़ित कर्म
समाज शर्म। 

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बाल श्रमिक
गाली झापड खाते
देश दुर्भाग्य। 

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सिर तेगाडी 
हरारत हारता
हँसे अभाव। 

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मरा लो मरा / दिखता मरा 
पेट पीठ सटाये
बोझ उठाये। 


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8 comments:

  1. बहुत सुन्दर सटीक..

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  2. बहुत ही प्यारे, सारे के सारे.

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  3. सुंदर और भावपूर्ण...

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  4. बहुत सुंदर प्रस्तुति.
    इस पोस्ट की चर्चा, शनिवार, दिनांक :- 03/05/2014 को "मेरी गुड़िया" :चर्चा मंच :चर्चा अंक:1601 पर.

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    Replies
    1. बहुत बहुत धन्यवाद आपका ..... आभारी हूँ .....

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  5. अच्छे हाइकू .पहला और दूसरा खास पसंद आया.

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आपको कैसा लगा ... यह तो आप ही बताएगें .... !!
आपके आलोचना की बेहद जरुरत है.... ! निसंकोच लिखिए.... !!

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