Thursday 1 May 2014

रिश्ते सितार






धनक ओले
टिकुली टेलकम
अम्ब ललाट। 

===========

उत्साह तंग 
कस बल हो ढीला
जीवन जंग। 

===========

तड़प जिये
दहकता अंगार
चोंच लहके। 

===========



स्वर्ण हो गई 
रवि की आँख खुली 
निशा चादर। 

==========

संभल बजा 
रिश्तों की है सितार
नाजुक तार। 

या 

रिश्ते सितार
संभलकर बजा
नाजुक तार। 

==========

छुई मुई सी 
सरि गिरि से गिरी
वारी घूँट पी / सिन्धु में लीन। 

==========

श्रम है पूजा 
बदल देती भाग्य 
शोर है गूंजा। 

===========

अबोध श्रम
प्रताड़ित कर्म
समाज शर्म। 

===========

बाल श्रमिक
गाली झापड खाते
देश दुर्भाग्य। 

===========

सिर तेगाडी 
हरारत हारता
हँसे अभाव। 

===========

मरा लो मरा / दिखता मरा 
पेट पीठ सटाये
बोझ उठाये। 


===========

8 comments:

  1. बहुत सुन्दर सटीक..

    ReplyDelete
  2. बहुत ही प्यारे, सारे के सारे.

    ReplyDelete
  3. सुंदर और भावपूर्ण...

    ReplyDelete
  4. बहुत सुंदर प्रस्तुति.
    इस पोस्ट की चर्चा, शनिवार, दिनांक :- 03/05/2014 को "मेरी गुड़िया" :चर्चा मंच :चर्चा अंक:1601 पर.

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत धन्यवाद आपका ..... आभारी हूँ .....

      Delete
  5. अच्छे हाइकू .पहला और दूसरा खास पसंद आया.

    ReplyDelete

आपको कैसा लगा ... यह तो आप ही बताएगें .... !!
आपके आलोचना की बेहद जरुरत है.... ! निसंकोच लिखिए.... !!

शिकस्त की शिकस्तगी

“नभ की उदासी काले मेघ में झलकता है ताई जी! आपको मनु की सूरत देखकर उसके दर्द का पता नहीं चल रहा है?” “तुम ऐसा कैसे कह सकते हो, मैं माँ होकर अ...