"बदली नहीं क़िस्मत"
"छोटका बाबूजी फिर से अकेले हो गए... दूसरी छोटी माँ भी हमारा साथ छोड़ गईं मुनिया" बड़े भैया से फ़ोन पर सूचना सुन सोच में गुम हो गई मुनिया
"काहे ? काहे दूसर बीयाह करवा देनी औरी हमनी के बानी सन ई ख़बर ना लड़की वालन के औरी बीयाह के ख़बर हमनी के ना भइल । काहे काहे! " दादी को झझकोरते हुए पूछा... पागल हो रहा था मुनिया का चचेरा भाई कौशल ।
मुनिया के छोटे बाबूजी(मुनिया के पिता के बड़े भाई जिन्हें मुनिया व मुनिया के सभी भाई छोटे बाबूजी कहते थे) दूसरी शादी कर लिए थे । चार बेटा दो बेटी के पिता थे.. सभी बच्चे बड़े हो चुके थे... एक बेटा व एक बेटी की शादी हो चुकी थी... दूसरे बेटे की शादी हो सकती थी... बेटी को एक बेटा भी था...
"हमार बबुआ के देह - नेह के करित... ? तू लोगन के आपन आपन गृहस्थी हो जाई अवरी तू लोग ओईमें रच बस ज ई ब लोगिन... केकरा फ़ुर्सत होई जे आपन बाबूजी के ख़्याल रख सकी..."
"ठीक बा! जब हमनी के बारे में ना बतावल ग इल त हमनी क नइखि सन"
"ए ई सन भी होखेला का... तब बतावल उचित ना लागल... अब सब कोई मिल-जुल के रहअ लोगिन..."
जब तक दूसरी छोटी माँ रही कोई मेल मिलाप नहीं हो सका... चौथा बेटा तो पागल हो कई बार मनोचिकित्सालय गया .... मुनिया के छोटे बाबूजी का अंत बेटों के संग ही हुआ...
"छोटका बाबूजी फिर से अकेले हो गए... दूसरी छोटी माँ भी हमारा साथ छोड़ गईं मुनिया" बड़े भैया से फ़ोन पर सूचना सुन सोच में गुम हो गई मुनिया
"काहे ? काहे दूसर बीयाह करवा देनी औरी हमनी के बानी सन ई ख़बर ना लड़की वालन के औरी बीयाह के ख़बर हमनी के ना भइल । काहे काहे! " दादी को झझकोरते हुए पूछा... पागल हो रहा था मुनिया का चचेरा भाई कौशल ।
मुनिया के छोटे बाबूजी(मुनिया के पिता के बड़े भाई जिन्हें मुनिया व मुनिया के सभी भाई छोटे बाबूजी कहते थे) दूसरी शादी कर लिए थे । चार बेटा दो बेटी के पिता थे.. सभी बच्चे बड़े हो चुके थे... एक बेटा व एक बेटी की शादी हो चुकी थी... दूसरे बेटे की शादी हो सकती थी... बेटी को एक बेटा भी था...
"हमार बबुआ के देह - नेह के करित... ? तू लोगन के आपन आपन गृहस्थी हो जाई अवरी तू लोग ओईमें रच बस ज ई ब लोगिन... केकरा फ़ुर्सत होई जे आपन बाबूजी के ख़्याल रख सकी..."
"ठीक बा! जब हमनी के बारे में ना बतावल ग इल त हमनी क नइखि सन"
"ए ई सन भी होखेला का... तब बतावल उचित ना लागल... अब सब कोई मिल-जुल के रहअ लोगिन..."
जब तक दूसरी छोटी माँ रही कोई मेल मिलाप नहीं हो सका... चौथा बेटा तो पागल हो कई बार मनोचिकित्सालय गया .... मुनिया के छोटे बाबूजी का अंत बेटों के संग ही हुआ...
किस्मत-किस्मत की बात है
ReplyDeleteसादर
यह भी समाज का एक कटु सत्य है।
ReplyDeleteबहुत सही ...किस्मत का बहुत बड़ा हाथ होता हैं हर किसी के जीवन में
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