“देखो भाया! आप बिहारी , मैं गुजराती ... उसपर से पक्का बनिया…। पड़ोसी हैं वो अलग बात है... , लेकिन लेना-देना हमारा व्यापार है… मैंने आपकी साल भर से बंद पड़ी स्कूटी ठीक करवा देने में मदद की… बरोबर… है न?”
“बिल्कुल ठीक कहा आपने । आप बड़ा काम करवा दिए…”
“अब हिसाब बराबर करने का है”
“ले आइये ढ़ेर सारा मिठाई… मिठाई से कर्जा थोड़ा उतर जाए…”
“अरे नहीं न । मिठाई तो अलग चीज है, वो तो पड़ोसी और अतिथि के नाते खाऊँगा ही…”
“अरे! फिर?”
“मुझे साहित्य का भूख है… अपनी आँखें इतनी खराब हो गई है कि खुद से पढ़ नहीं पाता कुछ और यहाँ दूसरे हैं नहीं जिनसे चर्चा कर सकूँ। आज विभा जी ने पढ़ कर सुनाई तो बहुत आनंद आया । अब तो आप जब तक यहाँ हैं , हमारी तो रोज यहाँ ही बैठक जमेगी ।”
“मुझे भी अच्छा लगेगा आदरणीय । गुजराती होते हुए भी आपको हिन्दी साहित्य में रुचि है । आप हाइकु जानते हैं । हाइकु सुनने वाले हिन्दी में ही कम मिलते हैं ।”
“एक बात कहूँ आप बुरा नहीं मानेगीं न?”
“बिल्कुल नहीं ! बोलिये…”
“आप अभी चार पृष्ठ पढ़ कर सुनाई हैं , उनमें से एक शब्द खटक गया “ईमानदारी”… ईमानदारी हिन्दी शब्द तो नहीं … “अब चलता है” मत बोल दीजियेगा… ”
“लोगों को मिक्सचर पसंद आने लगा है।”
ईमानदारी तो हिन्दी शब्द नहीं
ReplyDeleteबहुत खूब
आदरणीय दीदी
सादर चरणस्पर्श
आज-कप मिक्सच ही चनता है
चाय को साथ भी और वाय के साथ भी
सादर
निमंत्रण पत्र
ReplyDeleteमंज़िलें और भी हैं ,
आवश्यकता है केवल कारवां बनाने की। मेरा मक़सद हैआपको हिंदी ब्लॉग जगत के उन रचनाकारों से परिचित करवाना
जिनसे आप सभी अपरिचित अथवा उनकी
रचनाओं तक आप सभी की पहुँच नहीं।
ये मेरा प्रयास निरंतर ज़ारी रहेगा !
इसी पावन उद्देश्य के साथ लोकतंत्र संवाद मंच आप सभी गणमान्य पाठकों व रचनाकारों का हृदय से स्वागत करता है नये -पुराने रचनाकारों का संगम 'विशेषांक' में सोमवार १५ जनवरी २०१८ को आप सभी सादर आमंत्रित हैं। "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
स्वागत सस्नेहाशीष संग आभार आपका
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