01.
मेरा है , मेरा है , सब मेरा है
इसको निकालो उसको बसाओ
धरा रहा सब धरा पै बंद हुई पलकें
अनेकानेक कहानियाँ इति हुई
लील जाती रश्मियाँ पत्तों पै बूँदें
तब भी न क्षणभंगुर संसार झलके
02.
माया लोभ मोह छोह लीला
उजड़ा बियावान में जा मिला
दम्भ आवरण सीरत के मूरत
अब खंडहर देख रोना आया
लीपते पोतते घर तो सँवरता
चमकाते रहे क्षणभंगुर सुरत
इसको निकालो उसको बसाओ
धरा रहा सब धरा पै बंद हुई पलकें
अनेकानेक कहानियाँ इति हुई
लील जाती रश्मियाँ पत्तों पै बूँदें
तब भी न क्षणभंगुर संसार झलके
02.
माया लोभ मोह छोह लीला
उजड़ा बियावान में जा मिला
दम्भ आवरण सीरत के मूरत
अब खंडहर देख रोना आया
लीपते पोतते घर तो सँवरता
चमकाते रहे क्षणभंगुर सुरत
बेहद गंभीर,विचारणीय क्षणिकाये हैं दी,दार्शनिक भाव लिये बेहद सुंदर...वाह्ह्ह👌
ReplyDeleteसारगर्भित!
ReplyDeleteWah, Such a wonderful line, behad umda, publish your book with
ReplyDeleteOnline Book Publisher India
यथार्थ को शब्दों में बांध दिया है आपने.
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति !! बहुत खूब आदरणीया ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteसादर
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना शुक्रवार १३ अप्रैल २०१८ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
बहुत खूब
ReplyDeleteबहुत सुन्दर क्षणिकाएं...
ReplyDeleteलाजवाब जीवन दर्शन...
वाह!!!
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteजीवन का सार बताती सारगर्भित क्षणिकाएं आदरणीय विभा दीदी | सादर नमन |
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