Friday, 19 January 2018

क्षणिका


01.
मेरा है , मेरा है , सब मेरा है
इसको निकालो उसको बसाओ
धरा रहा सब धरा पै बंद हुई पलकें
अनेकानेक कहानियाँ इति हुई
लील जाती रश्मियाँ पत्तों पै बूँदें
तब भी न क्षणभंगुर संसार झलके
02.
माया लोभ मोह छोह लीला
उजड़ा बियावान में जा मिला
दम्भ आवरण सीरत के मूरत
अब खंडहर देख रोना आया
लीपते पोतते घर तो सँवरता
चमकाते रहे क्षणभंगुर सुरत

11 comments:

  1. बेहद गंभीर,विचारणीय क्षणिकाये हैं दी,दार्शनिक भाव लिये बेहद सुंदर...वाह्ह्ह👌

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  2. Wah, Such a wonderful line, behad umda, publish your book with
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  3. यथार्थ‎ को शब्दों में बांध दिया है आपने.

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  4. बेहतरीन प्रस्तुति !! बहुत खूब आदरणीया ।

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  5. बहुत सुंदर
    सादर

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  6. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार १३ अप्रैल २०१८ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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  7. बहुत सुन्दर क्षणिकाएं...
    लाजवाब जीवन दर्शन...
    वाह!!!

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  8. This comment has been removed by the author.

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  9. जीवन का सार बताती सारगर्भित क्षणिकाएं आदरणीय विभा दीदी | सादर नमन |

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आपको कैसा लगा ... यह तो आप ही बताएगें .... !!
आपके आलोचना की बेहद जरुरत है.... ! निसंकोच लिखिए.... !!

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