Wednesday, 8 May 2024

शांति का शोर


“अब तक प्रकाशित ५० अंकों की चुनिंदा रचनाओं के संकलन को अनेक पाठकों ने पसंद किया है तथा इसकी मुद्रित प्रति को उपलब्ध कराने का अनुरोध भी किया है। इसलिए इसे वार्षिकी २०२४ के रूप में प्रकाशित किया गया है। बड़ी साइज के ८८ रंगीन पृष्ठों का यह आकर्षक संग्रहणीय अपनी लागत मूल्य पर १५०/-₹ रजिस्टर्ड पोस्ट व्यय सहित उपलब्ध है।”

“4 प्रति हेतु 600/-₹ भेज चुकी हूँ। मुझे लगता है इतने में तो पाँच प्रति हो जाने चाहिए…!”

“आपको १० प्रतियाँ भिजवा देंगे, आदरणीया..! मुझपर लक्ष्मी-सरस्वती की अपार कृपा है...”

“अच्छा है! कुछ पुस्तकालयों कुछ -पुरस्कारों में देना अच्छा लगेगा। आभार! वैसे लक्ष्मी-सरस्वती की अपार कृपा पाने वाले अनेक मेरी निगाहों के सामने हैं... जिनको उदहारण बनने में कोई रूचि नहीं है ...।”

व्हाट्सएप्प के संदेशों की बात यहीं समाप्त नहीं हुई! पलक झपकते फोन की घंटी टुनटुना उठी!

“जी प्रणाम! आदरणीय!” पचास अंक निकालने वाले निश्चितरूप से वरिष्ठ होंगे। विश्वास था कि फोन किसी महिला ने नहीं किया।

“…” समुन्दर के गहराई सी शांत स्वर में प्रश्न गूँजा।

“बहुत जल्द बाँट दिए जाएँगे! आप अपने सामर्थ्यवश जितनी पत्रिका भेज सकें। दूसरा रविवार १२ मई को मातृ दिवस पटना के कार्यक्रम में लगभग चालीस से पचास लोग होंगे। रविवार १४ जुलाई को अयोध्या की पद्य गोष्ठी में भी लगभग इतने ही प्रतिभागियों की उपस्थिति की संभावना…”

“…” यक़ीनन पूछते हुए मेघ-विद्युत सी मुस्कुराहट फैली हो।

“जून के पिता दिवस के अवसर पर हमारी अपनी पत्रिका का लोकार्पण होगा। संस्था के सदस्यों के सामने स्पर्द्धा का विकल्प नहीं रखना चाहेंगे।”

“…,”

“एक दिन अवसर मिला सबको 

अपने संगी चयन का—

उषा-प्रत्युषा ने सूरज को गले लगाया

चाँद, तारों का साथ माँग लिया 

नदियाँ सागर से जा मिली

खारे-खोटे की कि किसने परवाह

हवा, खुशबू के पीछे भाग गई 

बरखा ने बादल को चूम लिया

और अंबरारंभ उलझाया हुआ

और साहित्य?

मनुष्य को मौक़ा दिया सब पर इंद्रधनुष बना देने का!”


दस की जगह पच्चीस पत्रिका आ गयी…

2 comments:

  1. 150 रुपिए में इंद्र धनुष बुरा सौदा नहीं है :)

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  2. दूसरा रविवार १२ मई को मातृ दिवस
    सही जानकारी
    आभार
    सादर वंदे

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आपको कैसा लगा ... यह तो आप ही बताएगें .... !!
आपके आलोचना की बेहद जरुरत है.... ! निसंकोच लिखिए.... !!

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