Monday, 27 May 2024

पड़किया रासाधिक्य


 “आपके संग आपकी बेटी रह रही है कि आपकी बहू?” शारदा देवी का निरीक्षण कर रही महिला चिकित्सक ने पूछा।

“क्यों? आप ऐसा क्यों पूछ रही हैं?” शारदा देवी का गर्भाशय निकाला गया था जिसके कारण वो अस्पताल में भर्ती थीं।

“आप, अस्पताल से मिलने वाला भोजन नहीं ले रही हैं। आपके कपड़े नर्स नहीं धो रही है। आपका कमरा हमेशा व्यवस्थित रह रहा है।”

“मेरा बड़ा बेटा मेरे साथ रह रहा है। मेरी बेटी तथा मेरे और दो बेटे अपने पिता के साथ रह रहे हैं। हम अभी जिस शहर में रह रहे हैं वहाँ शल्य चिकित्सा की सुविधा नहीं होने से हम यहाँ आ गए। उसने यहाँ के किसी रिश्तेदारी में भी सूचित करने नहीं दिया।”

“आपका बेटा यह सारा काम कर लेता है?” महिला चिकित्सक की आँखों की पुतलियाँ तितली बन उड़ जाने को बैचेन दिखने लगीं थी तो भौंहें, प्रत्यंचा चढ़े धनुष सी हो रही थी।

यह वह दौर-बीसवीं सदी का काल था जब अधिकतर परिवारों में बेटे युवराज की तरह पलते और बेटियाँ ग़ुलामी के लिए तैयार की जाती थीं! या भ्रूण हत्या के लिए माँ भी तैयार कर दी जाती थीं! महिला शिक्षा पर ज़ोर बहुत था लेकिन माँ स्वाधीन नहीं होती थीं… जिसके परिणाम स्वरूप विदेशी चलन ‘वृद्धाश्रम’ भारत में भी पाँव पसारने लगे थे! कई दिनों में शारदा देवी के निरीक्षण-परीक्षण के दौरान महिला चिकित्सक अनेक बार स्तब्ध-विस्फारित चेहरे, भींगी-भींगी पलकें को सम्भालती रहीं! बाद में पता चला कि महिला चिकित्सक के बच्चे रईस कूल के बिगड़े दीपक थे..!

ख़ैर! उसी स्त्रैण-गुणों वाले बड़े बेटे से पुरुषों वाले गुणों से भरी मेरी (मेरे दादा और बड़े भैया ‘बबुआ’ व्यंग्य से मुझे कहा करते थे : मैं सभी वक्त का भोजन पापा के लिए परोसी थाली में कर लेने वाली : एक भी तिनका नहीं तोड़ने वाली : ज़िद और ग़ुस्से से भरी पड़ी : क्रिकेट, शतरंज, गुल्ली डंडा पसंद करने वाली : उस ज़माने की बिगड़ैल औलाद : समर्थन पाती, पापा की परी और मझले भैया की दुलारी होने के कारण : वे हमेशा समर्थन में पीठ पर हाथ रखे रहते : उनका कहना था कि यहाँ तो सुख-शान्ति से रहने दिया जाए : आज़ादी से उड़ने दिया जाए : दादा और बड़े भैया कहते “बबुआ प्प्प्पल्ल्लात बाड़ी! ई बबुआ के दूसरा के घरे जाये के बा, उहाँ *’बसहिएयें’* कईसे!”) शादी हो गयी। बड़े बेटे की माँ को गुमान था ही, बड़े बेटे में भी अहम् था कि वो सब कुछ कर सकता है बिना स्त्री के सहायता के! माँ अक्सर कहा करती कि मैंने अपने बच्चों को सब कुछ सिखला रखा है! मेरा बेटा कोई व्यंजन बना सकता है साथ ही दूसरे के बनाए व्यंजन में बता सकता है कि किस वजह से बिगड़ गया है! बात-चीत के क्रम में एक दिन मुझसे पूछा गया कि “एक किलो मैदा, एक किलो सूजी में केतना चीनी लागी अउरी क गो पड़किया तईयार जोखी?”

पड़किया : अनेक प्रांतों में गुझिया नाम से जाने जानी वाली मीठी-मीठी मैदा में सूजी/खोआ-चीनी सूखे मेवे सौंफ भर कर विभिन्न आकारों में होली के अवसर पर तथा बिहार में हरतालिका तीज में अवश्य बनायी जाने वाली स्वादिष्ट पकवान है! अच्छी बन गयी तो हरियाली ख़राब बनी तो दाँतों से जंग ठान मन को कसैला करती है।

मैदा में मोयन को (इतना अन्दाज से डाला जाता है कि तलने के बाद कड़ी भी रहे और बिखरे भी नहीं.. ) डालकर (मुट्ठी में मैदा गोला बनने लगे) थोड़ा-थोड़ा पानी डालकर कड़ा साना जाता है। इतना कड़ा कि पूरी बेलने में परथन का प्रयोग नहीं करना पड़े लेकिन बेलने में किनारे में फटे नहीं : तलने में बिखरे नहीं!

जैसा कि प्रश्न था “एक किलो मैदा और एक किलो सूजी में कितना चीनी लगेगा?” तो उत्तर है एक किलो ही चीनी। जी! तीनों सामग्री बराबर रहती है। उसके अनुपात में घी कम लगता है..!

बिहार का एक शहर गोपालगंज के पास थावे, जहाँ एक तरफ़ माँ दुर्गा की कथा-कहानी-प्रभाव-महिमा के लिए प्रसिद्ध है तो दूसरी तरफ़ चाशनी में डूबी खोये वाली पड़किया/गुझिया सदाबहार तो पर्व-त्योहार के मौके पर अपनों को उपहार में देने का अंदाज ही अलग है। गिफ्ट पैक में थावे की पड़किया की चर्चा न हो तो बात कुछ बेमानी सी लगती है। सूबे की कौन कहे, दूसरे प्रदेशों में भी थावे की मशहूर पड़किया की कुछ अलग शान है। यहाँ दीपावली के मौके पर भी लोग एक दूसरे को यह मिठाई उपहार में देकर खुशियाँ बाँटते हैं। ऐसे में हर बार थावे का पड़किया पहला मीठा उपहार बन रहा है। वैसे तो अन्य शहरों में भी अन्य मिठाइयों की तुलना में पड़किया की माँग लगभग दस गुना होगी ही।

जी तो! सूजी की जगह अब मावे की गुझिया अधिकतर लोग पसंद करते हैं!

सामग्री :— ९-१० पड़किया/गुझिया के लिए गूंथने के लिए

3/4 कप मैदा

1 1/2 बड़े चम्मच देशी घी

3-4 बड़े चम्मच दूध

भरावन बनाने के लिए

2 बड़े चम्मच देशी घी

1/2 कप रवा

1/4 कप सूखे नारियल का बुरादा

1/3 कप पिसी हुई शक्कर

1/4 बड़े चम्मच इलायची पाउडर

2 बड़े चम्मच बारीक कटे हुए बादाम,काजू

1 बड़े चम्मच किशमिश

थोड़ा सौंफ

तलने के लिए घी

पकाने का निर्देश :—

1

मैदे में घी डालकर अच्छे से मिलाए।मुठ्ठी में आटे को बांधकर देखे अगर बंध रहा है तो मोयन बराबर है।फिर जरूरत के हिसाब से थोड़ा-थोड़ा दूध डालकर हल्का मुलायम मैदा गूंथ लें। ढँककर थोड़ी देर के लिए रख दें

2

एक कड़ाई में घी गरम करे।उसमे रवा डाले। गैस की आंच को धीमा/मध्यम रखकर,चलाते हुए, हलका सुनहला होने तक भून लें।

3

फिर उसमे नारियल का बुरादा, इलायची पाउडर, सूखा मेवा और चीनी मिलाकर धीमी आंच पर १ मिनट पकाए।गैस बंध करके भरावन को एकदम ठंडा होने दे।

4

अब तैयार गूँथे मैदे में भरावन को भरकर पड़किया तैयार की जा सके कर उसकी पूरी बेल सके उतनी की एक समान आकार की लोई बनाए।

5

एक लोई से पूरी जितना बेल कर एक से डेढ़ बड़े चम्मच भरावन भरे।फिर किनारों पे दूध लगाकर आधे चाँद के आकार का चिपका दें।  और किनारे पर उंगलियों की सहायता से समोसे के आकार काटें या रस्सी के आकार में मोड़कर बना ले।एैसे ही सारी पेडकिया तैयार कर लें।

6

एक कड़ाई में घी को गरम करके धीमी आंच पर हलके हाथों से पलटाते हुए हलका सुनहरा होने तक पड़किया/गुझिया को तल कर तैयार कर लें

अर्द्धचंद्राकार , चंद्रकला , बटलोई विभिन्न आकार में बनाई जा सकने वाली है।

किनारे पर समोसे आकार देने के लिए पैने नाखून होने चाहिए। स्त्रियों के नाखून बाघ जैसे होने भी चाहिए!

दूसरा प्रश्न था “एक किलो मैदा, एक किलो सूजी और एक किलो चीनी में कितने पड़किया बनेंगे तो उत्तर होगा :- सौ(१००) । विश्वास नहीं हो तो बनाकर देख लीजिए!

बड़े बेटे की माँ मुझसे प्रश्न कर रहीं थी तो पिता ध्यान से कान लगाए हुए थे! मेरे उत्तर देने पर उनका प्रश्न पत्नी से हुआ “का हो! बड़को! पास भईली कि ना?”

“एक दम सही उत्तर बा! देखीं ना इनके बनावल पड़किया के किनारा, केतना नीमन बा! समोसा खानी!”

“हाँ हो! अइसन त पहले कबहो देखे के मिलन ना रहल हा!”

कर्मठ माँ की बेटी थी! बब्बुआ थी तो क्या हुआ! आँख-कान खुले ही रहते थे! बसने की ज़िद भी थी! पेडुकिया तलने के पहले उसे तैयार होने का समय देना चाहिए! जैसे किसी रिश्ते को मज़बूत होने में वक्त की माँग रखता है…! तुरन्त भर कर तुरन्त तल देने पर कुरकुरा नहीं होते हैं! पिलपिला-मायूस मसुआया हुआ रिश्ता किस काम के…!

3 comments:

  1. बड़े बेटे की माँ मुझसे प्रश्न कर रहीं थी तो पिता ध्यान से कान लगाए हुए थे! मेरे उत्तर देने पर उनका प्रश्न पत्नी से हुआ “का हो! बड़को! पास भईली कि ना?”
    बढ़िया
    सादर वंदन

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  2. वाह गुजिया में पिरो दी आप तो रिश्ते की कहानी :)

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