बड़े और मझले दो भाईयों की शादी छः महीने के अंतराल पर हुई थी। बड़ी बहू को सजने-सँवरने का कोई शौक़ नहीं था। विद्यालय-महाविद्यालय में लिपस्टिक लगाकर जाने का चलन नहीं मिला था और घर में उसके पिता को नापसंद था बेटी-बहू का लिपस्टिक लगाना। लेकिन मझली बहू का साथ मिलने के कारण सजना शुरू की थी। बड़ी बहू छ महीने की पुरानी दुल्हन और मझली बहू दस-पंद्रह दिनों की दुल्हन। एक शाम पूरे परिवार को कहीं जाना था जिसमें दोनों बहुओं को घर पर ही रहना था। शाम के नाश्ते के लिए खुरमा बनाकर रखने का आदेश मिला। ०१. खुरमा बनाने की सामग्री :- 2 कप मैदा 2 चम्मच घी 250 ग्राम चीनी 1/2 नींबू का रस 1/2 चम्मच इलायची पाउडर 200 ग्राम तलने के लिए घी
पकाने का निर्देश :- 1 सबसे पहले एक बड़े बाउल में मैदा डालें और इसमें घी डालकर और अच्छी तरह हथेलियों के बीच में आटे को अच्छी तरह रगड़-रगड़ कर मिलाए.. इससे खुरमा खास्ता बनेगा… 2 फिर इसमें थोड़ा-थोड़ा करके पानी डाल कर मैदा को सान लें गुँथा मैदा न तो ज्यादा सख्त होना चाहिए और नहीं ज्यादा मुलायम… मैदा गूंदने के बाद इसे ढककर 10-15 मिनट के रख दें। 15 मिनट के बाद मैदा को फिर से अच्छे से गूंद लें और दो लोइयों में बांट लें. 3 फिर एक लोई को बेलन से मोटी रोटी के आकार में बेल लीजिए… इस रोटी को चाकू के सहारे मनचाहे शेप के टुकड़े काट लीजिए. (सबसे पहले रोटी पर सीधे-सीधे चाकू चला लें फिर इस पर तिरछा चाकू चला लें… ऐसा करने से आटे के डायमंड शेप के टुकड़े काटे जा सकते हैं.) इसी तरह दूसरी लोई से छोटे-छोटे टुकड़े काट लें… 4 कड़ाही में घी डालकर मध्यम आँच में गरम होने के लिए रख दें… घी गरम हो जाये तो थोड़ा-थोड़ा कर मैदे के टुकड़े डालकर चलाते हुए तलें. ध्यान रखें इस दौरान आँच धीमी रखें और हल्के आँच पर खुरमा को लाल-लाल तल लें। 5 अब पैन में चीनी और 1/4 कप पानी डालकर मध्यम आँच पर चाशनी बनाने के लिए रख दें। चाशनी को बीच-बीच में चलाते रहें. इसमें इलायची पाउडर और नींबू डालें। 8-10मिनट बाद चाशनी की एक बूँदएक चम्मच में लेकर उंगली अंगूठे के बीच रखकर देखें. अगर यह इसमें मोटी तार बन रही है तो समझिए चाशनी तैयार है…। 6 अब चाशनी में खुरमा डाल कर अच्छे से मिलाते जाइए। 1-2 मिनट बाद आँच बंद कर दें और खुरमा और चाशनी को चलाते रहें…। पैन को चूल्हे से हटा लें और इसे अच्छी तरह से चलाते हुए ठंडा कर लें। आप पाएंगे कि एक समय के बाद चाशनी ठंडी हो जाएगी खुरमा पर चीनी की कोटिंग चढ़ जायेगा। खुरमा तैयार हैं, ठंडा होने के बाद खाएं और खिलाएं…
दोनों बहुओं को बेहद ख़ुशी हुई यह तो बेहद आसान नाश्ता है दोनों मिलकर बना लेंगी। सभी के जाने के बाद आज़ादी से ड्योढ़ी के बाहर निकलने का मौका मिला। (तभी बेहद पर्दे का काल था। खिड़की के पर्दे में काँटी ठोकी जाती थी कि पलंग पर बैठी कमरे में चलती बहू को बाहर के लोग देख ना लें।) सहायक की सहायता से बाहर मेज-कुर्सी लगवाकर, फूल-फल सजवाया गया। लोहे वाले झूला को समीप लाया गया। शीतल पेय (उपलब्ध नहीं था सुरा) के बोतल-गिलास सजे। दोनों बहुएँ जितना सज सकती थी उससे थोड़ा अधिक ही सज लीं। वैसे भी दोनों को हर पल सजे ही रहने का हुक्म था। दिनभर में तीन-चार बार साड़ी बदलना और परत-दर-परत पाउडर-क्रीम-लिपस्टिक चढ़ाते रहना हो रहा था। थोड़ी देर मस्ती करने के बाद ध्यान आया दोनों बहुओं को कि उन्हें खुरमा बनाना है।
बिहार की यह मिठाई नहीं खाई तो कुछ नहीं खाया यूँ तो बिहार में क्षेत्र अनुसार अनेकों मिठाई बनते रहे हैं काफी वर्षों से। जैसे बालूशाही , लाई , अनरसा , खाजा , तिलकुट आदि। जो अपने स्वाद से सबको लुभाते रहे हैं और लोग भी उन्हें बड़े चाव से खाते रहे हैं। मगर उन में से एक मिठाई धीरे धीरे ही सही मगर अपनी पहचान अब देश पटल पर बना लिया और लोग खाए तो काफी पसंद भी करने लगे इस मिठाई को। जी हाँ! हम बात कर रहे हैं उस मिठाई की इसको बिहार में ही कई नामों से पुकारा जाता है। कोई इसे छेना का टिकिया ( बिहार में पनीर को छेना भी कहा जाता है ) तो कोई बेलग्रामी और ०२-खुरमा भी कहता है। मूलतः भोजपुर के उदवंतनगर को इस मिठाई का जन्म स्थल माना जाता है। वहीं से यह मिठाई बनना शुरू हुआ था और फिर देखते ही देखते , जगह , जिला और फिर अब प्रदेश पार कर गया। इसे बनाने में सिर्फ पनीर ही इस्तेमाल किया जाता है जिसके वजह से लोग इसे उपवास के दौरान फलाहार के रूप में भी इस्तेमाल करते हैं। पनीर की टिकिया को शक्कर की चाशनी में एक बराबर मध्यम आंच पर खौलाया जाता है और पनीर टिकिया इस चाशनी में धीरे धीरे ऊपर से लेकर अंदर तक सिंझ कर एक रंग ( हल्का लाल , भूरा ) का हो जाता है। इतना ही नही अंदर के भाग में जाला जैसा बन जाता है ( जिसे आप जब तोड़ कर खाते हैं तब देख सकते हैं )। तब इसे आंच से नीचे उतार कर रख दिया जाता है ठंडा होने के लिए और जब ठंडा हो जाता है तो उसे निकाल कर बाहर रख दिया जाता है। इस मिठाई को आप बिना फ्रिज में रखे हुए भी कई दिनों तक इस्तेमाल कर सकते हैं क्योंकि ये जल्दी खराब नही होती है और सूखा जैसा होता है जिसकी वजह से ज्यादा दिनों तक चलता है। अपनी अनोखी स्वाद और शुद्धता ( मिलावट रहित रहने की वजह से ) की वजह से अब इस मिठाई की मांग सालों रहने लगी है। इतना ही नही , जो बिहार से जुड़े लोगों के मित्र गण बाहर रहते हैं वे अपने बिहारी दोस्तों से कहना नही बुलते , बिहार से वापस आना तो मिठाई जरूर लाना भाई क्योंकि उस स्वाद , सोनाहपन को जीभ भूल नही पाती है। बड़ी बहू को खुरमा तो बनाना आता था लेकिन जो अलग तरीक़े का खुरमा उसके ससुराल में बनाया जाता था उसे बनाते कभी देखी नहीं थी! मझली बहू को किसी प्रकार का खुरमा बनाना नहीं आता था। मैदा में मोयन और खाने वाला सोडा और चीनी के घोल से सानकर, मोटा गोल बड़ी रोटी बेलकर खुरमे के आकार में काटकर घी में तल लिया जाता है। सुनी तो कई बार थी। अति आत्मविश्वास था कि बना लेगी और बड़े भैया का कहा शब्द (लड़की वाला एको गुण नईखे, दूसरा के घरे जाये के बा, बसीहें कईसे!) आँचल के खूँटे में बाँधकर आयी थी कि कभी असफल नहीं होना है ताकि बसने-ना-बसने पर प्रश्न उठे! लगभग पंद्रह लोगों के ०३-खुरमा नाश्ते कर लेने के अनुपात में मैदा लिया गया, मोयन में घी डालकर मेहँदी लगे युवा हाथों से मसल-मसल कर खुरमा कुरकुरा बनने योग्य तैयार कर खाने वाला सोडा मिला लिया गया। चीनी को पानी में घोलकर मैदा सानकर तैयार किया गया! पहने गहने और परतदार मेकअप से ज़्यादा चमकीली उनदोनों बहुओं की मुस्कान थी। तभी के अपने क्रियाओं पर अपनी सफलता और शाबासी पाने का अति विश्वास से उपजी। मध्यम आँच पर कड़ाही में घी गरम हो गया। और यह क्या घी में डाले मैदा के टुकड़े जिन्हें कुरकुरे खुरमा के रूप में उपर तैरने से वे तो घी में घुलकर हलुआ बनने के लिए मचल रहे थे! मानों ज़िद्दी बच्चा! घी बदला गया दूसरा खेप डाला गया। फिर से खुरमा घुल गया। दोनों बहुओं के पसीने छूट गए! हाथ-पाँव फूल गए। सहायक को सहायता के लिए पुकारीं। सहायक खुरमा बनाया क्योंकि हमेशा तो वही बनाता था! बहुओं को तब नहीं पता चल पाया था कि उनसे ऐसी कारस्तानी क्यों हुई? और उस दिन किसी रिश्तेदार को पता नहीं चल पाया कि बहुओं द्वारा खुरमा नहीं बनाया गया! मीठा पसंद करने वाले मीठा ही बोलें या व्यंग्य मीठा ही लगे स्वाभाविक तो नहीं! अति का भला न बोलना, अति की भली न चूप, अति का भला न बरसना, अति की भली न धूप : मैदा में अत्यधिक खाने वाले सोडा का करिश्मा रहा हो शायद…!
वाह
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर और सार्थक सृजन
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
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