Monday 3 June 2024

दूध पिट्ठी : कीमियागिरी


“तहरआ रफू करे आवेला काआ?” सास के पूछे जाने का जवाब चार दिन की आई बहू दे ही पाती कि उसके पहले

“अरे! अइसन काअ रफू करे के हो गइल?” ससुर की सीली आवाज निकली।
“मेरा पतलून! छोटा सा कट लग गया है।” बड़ा देवर भी आजमाइश करने की पंक्ति में अपनी माँ के संग खड़ा था।
“जी लाइए पतलून प्रयास करती हूँ रफ़ू कर देने की।” बहू के लिए परीक्षा की घड़ी, उसके घबराहट का पसीना रीढ़ पर, पिंडली में स्केटिंग कर रहा था।
“अरे वाह! बहुत ही सुन्दर। पता ही नहीं चल रहा है कि पतलून पर कट भी था। इतनी सुगढ़ता!” लेकिन ससुर जी की वाणी का असर सासु जी पर नहीं दिखलायी पड़ रहा था। वे एक साड़ी बहू को थमाते हुए बोलीं कि “एकेरा के सुधार त जानीं (इसे सुधार दो तो जानें!)” चुनौती इस कदर दीं कि बहू की हार सुनिश्चित!
“ई त ज़ुलूम बा! एकेरा त कोई महारथ भी ना सुधार सके!” अब ससुर जी तपना शुरू कर दिए थे।
“ईहे त इनकर परीक्षा के घड़ी बा! बड़ बहू के राउर पसंद पिट्ठी गढ़े में धीरज के ज़रूरत पड़ी नु?”
“रफ़ू और अउरी पिट्ठी के काअ कनेक्शन? ई हमरा त बुझाते नइखे!”
बहू के सास-ससुर दूध पीठी की बात कर रहे थे
इस मीठी, मलाईदार मिठाई का एक चम्मच आपको पुरानी यादों की गलियों में ले जाएगा, आपके लापरवाह बचपन के दिनों में। स्वतंत्रता-पूर्व काल में दूध पिठी एक लोकप्रिय मिठाई थी। माताओं के लिए अपने विस्तारित परिवारों को खिलाने के लिए बड़ी मात्रा में दूध आधारित व्यंजन पकाना आम बात थी, जहाँ अकेले बच्चे आसानी से पूरी फुटबॉल टीम पर भारी पड़ सकते थे।
समय के साथ, इलायची और बादाम जैसे स्वादों को शामिल करके इस व्यंजन में सुधार किया गया, लेकिन आज भी, इसका सार छोटे हाथ से बने आटे के गोले ही हैं, जिन्हें बाद में गाढ़े दूध /दूध के मिश्रण में पकाया जाता है। कुछ लोग कह सकते हैं कि दूध पीठी, दाल पीठा का एक मीठा संस्करण है, जो मॉरीशस का एक प्रसिद्ध मुख्य व्यंजन है, जहाँ आटे के आकार को काटा जाता है और दाल और मसालों की गाढ़ी ग्रेवी में भिगोया जाता है। दोनों इस नीरस सर्दी के मौसम में पुरानी यादों की एक चुटकी के साथ आरामदायक भोजन विकल्प प्रदान करते हैं। लेकिन बिहार की दूध पीठी में महीन गढ़ने की कुशलता शामिल है...
सामग्री :-

1 कप मैदा

5-6 बड़े चम्मच ठंडा पानी

(पसन्द होने पर : 1/4 कप साबूदाना)

1/3 कप कैस्टर शुगर

4 कप फुल क्रीम दूध

5 इलायची की फली

1/4 कप सूखा नारियल

2 बड़े चम्मच किशमिश, भीगी हुई

2 बड़े चम्मच बादाम के टुकड़े

1 चम्मच वेनिला अर्क

एक मिक्सिंग बाउल में आटा छान लें.. धीरे-धीरे ठंडा पानी मिलाएं और मुलायम गूँथना है।

आटे के मटर के आकार के हिस्से को चुटकी में लें और उन्हें उंगलियों के बीच रोल करके छोटी बारीक अंडाकार आकार की बना लें।

आकार को एक साथ चिपकने से रोकने के लिए हल्के आटे या ग्रीसप्रूफ सतह पर रखें।

एक बड़े सॉस पैन में, दूध को धीमी आंच पर तब तक उबालें जब तक कि यह अपनी मूल मात्रा के 2/3 तक कम न हो जाए।

गर्म तरल मिश्रण को फैलने से रोकने का ध्यान रखते हुए धीरे-धीरे आटे की गोलियां और साबूदाना (अगर पसंद हो) डालें।

किशमिश, बादाम के टुकड़े, सूखा नारियल और वेनिला अर्क डालने से पहले लगभग 15 मिनट तक धीमी आंच पर पकाएं।

मिश्रण के गाढ़ा होने तक 5 मिनट और पकाएं। चम्मच से कटोरे में डालें और ऊपर से अतिरिक्त नारियल डालें। अब आगे बढ़ाते हुए परोसना है।

“पीठी गढ़े अउरी रफ़ू इ दुनु के अपने आप में कवनों कनेक्शन नइखे! लेकिन दुनु काम में जवन धीरज चाहीं उ ई साड़ी सुधर जाए के बाद तय हो जाई!”
“ई ज़बरदस्ती के ही ज़िद बा तहार मालिकाइन!”
“चलीं राउवा ई बुझात बा त इहे सही!”
शादी में एक रस्म होती है इमली घोटाना लेकिन इमली का प्रयोग नहीं होता है। आम के पल्लव का प्रयोग होता है। उस रस्म में मामा माँ को साड़ी देते हैं। रस्म में मिली साड़ी को सासु जी ऐसी जगह रख देती हैं जहाँ चूहा का भोजन बन जाती है साड़ी। नयी साड़ी और भाई का मान। शुभ-अशुभ मानने की विवशता अलग से परेशान किए हुए। ना रखने योग्य रह गयी थी और ना फेकना बन रहा था सासु जी से। बहू को हराने का एक मौक़ा अलग से हाथ लग गया था! बिहार की सास भी महारथ हासिल किए होती हैं।
बहू के लिए ग़नीमत यह था कि पूरी साड़ी में एक लकीर में छेद मिला था। बहू आँचल के विपरीत हिस्से से साड़ी का टुकड़ा काट लेती है और सारे छेद पर बेहद खूबसूरत से पैच वर्क कर देती है।
तैयार साड़ी देखकर ससुर के चेहरे पर अपने जीत की ख़ुशी दिखलायी पड़ती है तो सास के चेहरे पर हार की रंगत देखने की उम्मीद भी नहीं थी, जो देखकर सीली आवाज़ तपी आवाज़ में बदल जाती है!
“जिओ बहुरिया जिओ! कइसन लागल हे मलकाइन! कइसन!”
“हम त ई जाँचत रहनी हा कि बहुरिया केतना रिश्ता रफ़ू कईके चले में निपुण बाड़ी! रउवा भी त इ कहावत सुनले होखेम “आवते बहुरिया जनमते लईकवा जवन लौ लगावे तवन लौ लागे!”
कालांतर में बहू दूध पीठी के लिये जीरे के समान आटे की पीठी गढ़ती है और दूध पीठी बनाती है तो सभी बेहद खुश होते हैं और सास भी खुले दिल से प्रशंसा करती है। इसी बढ़ते क्रम की ख़ुशी में एक दिन बहू कहती है “चलिए आप मेरी कुशलता ही जाँच रही थीं तो एक और मीठा व्यंजन बनाने का प्रयास करती हूँ! वो बनाती है:-
चावल की बुजबुजी
चावल के आटे का घोल (ना बहुत गाढ़ा और ना बहुत पतला)
चूल्हा के मध्यम आँच पर मिट्टी के गरम बर्तन में छोटी रोटी के आकार का पकाकर (एकतरफा सेंका जाता है रोटी में चलनी सा बड़ा-बड़ा छेद-छेद बन जाता है) 
 गाढ़े दूध में चीनी इलायची मिलाकर रखा रहता है, उसी में एक-एक कर डालते जाना है.. 
 रफ़ूगिरी से सारे रिश्ते निभाते-निभाते ननद की शादी तय हो जाती है! शादी का सारा खर्च बड़े बेटे पर डालकर पितृऋण उतारने का मौक़ा दिया जाता है… एक ही स्टेशन पर खड़ी रह जाने वाली गाड़ी जीवन नहीं होता है..।

4 comments:

  1. सारा देश ४०० पार में लगा है और आप रसोई की तरफ ध्यान लगवा रही हैं :)

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  2. स्वाद.आ गया दी:) लज़ीज़ संवाद और लुप्त होते पारंपरिक पकवान की सोंधी सुगंध से मन तृप्त.हो गया दी। लिखते रहें ।
    प्रणाम दी
    सादर।
    -----
    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना मंगलवार ४जून २०२४ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    ReplyDelete

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