Thursday 13 June 2024

खाजा — दूरदर्शिता

 6×1=6, 6×2=12, 6×4=24 / १२ : ०६ : २४ —एक दर्जन : आधा दर्जन : दो दर्जन


 “आप नहीं न मानीं! सभी के मना करने के बाद भी आप अपनी बात कह ही डालीं! क्या फ़ायदा हुआ? कोई कुछ भी पहने उससे आपको क्या? क्या वो आपकी बातों का मान रखीं?”
 “चलो ठीक है! कोई कुछ भी पहने! लेकिन वो कोई अपरिचित न…! वो कोई अपने परिचित में हो तो? दायित्व पहले टोक देने का होगा ही! परिणाम भुगतने के बाद अफ़सोस नहीं होता कि टोकना चाहिए था! वैसे भी वो टोकना ख़ुद के लिए था : मेरी माँ कहा करती थीं ‘भला संग रहिए : खहिये बीड़ा पान, बुरा संग रहिए : कटाहिये दुनू कान’ पिछली शाम पथप्रदर्शक/गाइड(guide) बताया था कि मन्दिर में जाने के लिए पोशाक सही होनी चाहिए। विदेशी धरती का मन्दिर था! ‘जैसा देश, वैसा वेश।’ कोई बात हो जाती तो क्या हम किनारा कर सकते थे! पहचानने से इंकार किया जा सकता था क्या…! दूसरों की उठती नज़रों के सामने ख़ुद की नज़रों को झुकानी क्यों…!” 
“मन्दिर जाना और धूप स्नान का अन्तर नहीं पता हो किसी को तो?”
  “कटी पतंग का हश्र तो पता होगा। कैसे अन्य राज्य के गाँव और गोवा में का भेद ना पता हो!” 
“ऐसे कुछ लोग दूसरों को टोपी पहनाने में माहिर होते हैं…”
“जवाहरलाल वाली टोपी न! टोपी की चर्चा क्या चली मुझे टोपी जैसी मिठाई की चाह जग गई” 
“मिठाई और टोपी का क्या सम्बन्ध?” 
“एक किवदंती के अनुसार तत्कालीन नालंदा विश्वविद्यालय के प्राचार्य शीलभद्र ने सिलाव को खाजा (दूकान में खाजा सुनते ही जी भर खा जाओ-खाते जाओ बिना रोकड़ा दिए) नगरी के रूप में विकसित किया था। इस स्थल पर ही भगवान बुद्ध, महापंडित राहुल सांस्कृत्यायन और प्राचार्य शीलभद्र की प्रथम भेंट हुई थी। उस समय शीलभद्र ने भगवान बुद्ध का स्वागत खाजा खिलाकर किया था। तब भगवान बुद्ध ने पुछा था यह क्या है ? इसके जबाव में शीलभद्र ने कहा था कि खा-जा, भगवान बुद्ध ने खाने के बाद काफी प्रशंसा की। उसी समय से इस मिठाई का नाम खाजा प्रचलित हो गया। देश के अलावे विदेशों में भी हुआ था खाजे का प्रदर्शन सिलाव मे बनाये गये खाजा का प्रदर्शन सबसे पहले वर्ष 1986 में अपना महोत्सव नई दिल्ली में हुआ था। कालीसाह के वंशज संजय कुमार को वर्ष 1987 मे मारीशस जाने का मौका मिला। मारीशस में आयोजित सांग महोत्सव में मिठाई में खाजा को सर्वश्रेष्ठ मिठाई का दर्जा मिला। 1990 में दूरदर्शन के लोकप्रिय सांस्कृतिक सीरियल सुरभि, वर्ष 2002 में अंतरराष्ट्रीय पर्यटन व व्यापार मेला नई दिल्ली के अलावे अन्य कई मौके पर खाजे ने धूम मचाई।
जिसको बनाने के लिए सामग्री :- 200 ग्राम मैदा, 100 ग्राम चीनी, 50 ग्राम पिसी हुई चीनी, 2 हरी इलायची आवश्यकतानुसार घी (मोयन के लिए) आवश्यकतानुसार घी तलने के लिए आवश्यकतानुसार पानी
 पकाने की विधि (कुकिंग निर्देश) 1 सबसे पहले मैदा में मोयन का घी इतना डालें कि मुठ्ठी बन जाए। फिर आवश्यकतानुसार गुनगुने पानी से गूंथ लें। 15 मिनट तक ढक कर रख दें।
2. 1 बड़े चम्मच मैदा में थोड़ा सा पिघला घी मिलाकर पतला सा घोल बना लें।
3. अब गूंथे हुए मैदा को एक बार अच्छे से मसलकर बड़ी सी एकदम पतली-लम्बी रोटी बनाकर मैदा का घोल पूरी रोटी पर फैला दें।
4. अब रोटी को मोड़ें (रोल/फोल्ड) करें और एक आकार के कट करें 
5. चीनी में 1/2 कप पानी और इलायची डालकर 7-8 मिनट उबाल लें। जब चिपचिपी चाशनी बन जाए तब गैस बन्द करें। 
6. अब तेल गरम करें। एक एक लोई को हल्का सा बेलें और मध्यम आंच पर सुनहरा तल लें।
7. अब कुछ खाजा चाशनी में लपेट-लपेट कर 2-3 मिनट बाद निकाल लें और कुछ पिसी हुई चीनी में लपेट कर निकाल लें।
8. बहुत ही स्वादिष्ट खाजा मिठाई तैयार है।
“आपकी इन्हीं अदाओं पर मर मिटने का जी करता है! आपसे मोह बढ़ता जाता है! सुनिए न मुझे आपसे और कुछ पूछना है…!”
“हाँ! हाँ! सुन रहे हैं! बिहार की एक परतदार, त्यौहारी मिठाई है सिलाव का खाजा! 
जिसकी सामग्री : 4 कप मैदा और अतिरिक्त आटा छिड़कने के लिए 
2 बड़े चम्मच घी और 2 बड़े चम्मच पिघला हुआ घी
 2 चम्मच इलायची पाउडर
 2 चम्मच काली मिर्च पाउडर
 1 चम्मच दालचीनी पाउडर (वैकल्पिक) 
तलने के लिए घी
 ठंडा पानी
चीनी चाशनी (सिरप) के लिए 2 कप चीनी
1 कप पानी
बनाने की विधि : आटा और पिघला हुआ घी डालें और अच्छी तरह मिलाएँ। चिकना लेकिन सख्त आटा गूंथने के लिए ठंडा पानी डालें। आटे को ढककर कम से कम 15 से 20 मिनिट के लिये रख दीजिये. आटे का पेस्ट बनाने के लिए 2 बड़े चम्मच घी और 2 बड़े चम्मच मैदा मिलाकर पेस्ट बना लीजिए. आटे को आठ बराबर भागों में बाँट लें।
एक गेंद लें और इसे एक आयताकार आकार की शीट में रोल करें। इसी तरह एक और बेल लें. - तैयार आटे के पेस्ट को एक शीट पर फैलाएं और उसके ऊपर दूसरी शीट रखें. दूसरी शीट के ऊपर आटे का पेस्ट फैलाएं और दोनों शीटों को एक साथ कसकर एक लट्ठे की तरह रोल करें। इस आटे की लोई को 1-1 इंच के बराबर आकार के टुकड़ों में काट लीजिये. प्रत्येक टुकड़े को लंबवत रोल करें। एक गहरे फ्राइंग पैन में पर्याप्त तेल गरम करें और उन्हें बैचों में मध्यम आंच पर दोनों तरफ से सुनहरा भूरा होने तक तलें। इन्हें पूरी तरह ठंडा कर लें. 
- इसी बीच एक सॉस पैन में 1 कप पानी में 2 कप चीनी डालकर चाशनी तैयार कर लें. उबाल आने दें और चिपचिपा होने तक पकाएं। - इसमें इलायची पाउडर, काली मिर्च और दालचीनी पाउडर मिलाएं. (मसालों का यह मिश्रण वैकल्पिक है।) एक बड़ी प्लेट में थोड़ा सा मक्खन या घी लगाकर चिकना कर लीजिये. तले हुए खाजा को गर्म होने पर ही तैयार चाशनी में डुबोएं और तुरंत एक चिकनी प्लेट में निकाल लें। तुरंत परोसें या ज़रूरत पड़ने तक किसी एयरटाइट डिब्बे में रखें!”
 “ठीक है! ठीक है! मिठाई बनेगी भी और एयरटाइट डिब्बे में रखी भी जायेगी आगे एक जिज्ञासा है मन में! उसका निदान करें! क्या आपको ऐसी पोशाक पहनने का मन नहीं करता है?”
“पहले का ज़माना था कि बदलते ऋतु-मौसम की तरह पोशाक बदलते थे। जैसे कि कुछ-कुछ दिनों-महीनों के लिए एक पोशाक अनारकली, बैलवॉटम, चूड़ीदार, खालता सलवार, स्लैक्स, सरारा-गरारा इत्यादि चलते थे। मैंने भी जलवा बिखेरे हैं! लेकिन तन उघाड़ू पोशाक कभी पसन्द नहीं आये!

11 comments:

  1. वाह | पर कोफी एक और पीने वाले चार ? :)

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    1. तीन पहले पी चुके थे :)
      मैं पीती नहीं सो दिखाने...

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  2. दी,मुँह में पानी आ गया । दोनों ही रेसिपी जरूर ट्राय करेंगे।
    संवाद की सीख और रोचकता के साथ स्वाद का मेल ऐसा लग रहा मानो मीठे में हल्का सा नमक।
    दी,रेसिपी की सामग्री और विवरण पिछले ब्लॉग की तरह लिखिए न कृपया। ऐसे लिखने से सब मिक्स हो गया है।
    प्रणाम दी।
    सादर।
    -----
    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार १४ जून २०२४ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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    1. शुभकामनाओं के संग हार्दिक आभार आपका छुटकी
      दिसम्बर में मोबाईल बदल गया जिस से ब्लॉग पर टिप्पणी करना नहीं हो पा रहा है .... जुलाई में बेटे से भेंट होगी तो शायद पहले सी स्थिति बन जाए...

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  4. व्वाहहहहह
    लगता है तुरंत खा जाएं
    सादर वंदन

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  5. बहुत बहुत सुन्दर

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  6. वाह रेसिपी प्रस्तुत करने के आपके अन्दाज़ का जवाब नहीं

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  7. वाह! बहुत सुन्दर प्रस्तुतिकरण...

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  8. टोपी जैसी मिठाई।
    क्या उपमा दिया है मैम आपने।
    बचपन में मैं भी बिल्कुल ऐसा ही सोचता था। और बाल मन के खुरापाती करामात के वशीभूत इस मिठाई को माथे पर रख लेता था।
    स्वाद और सुगंध में अपराजेय इस मिष्ठान को तो निःसंदेह सिर का ताज होना चाहिए।
    काफी चीज़ें जैसे कि बनाने की विधि और कुछ सामग्रियाँ आज़ पता चली हैं मुझे। अप्रतिम लेख।🙏🏻👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻🙏🏻

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