Thursday 20 June 2024

धोखा : चोखा : नज़रिए का फेर

“आस्तीन का साँप कह देना कुछ ज़रूरत से ज़्यादा नहीं हो गया?”

“कार्यक्रम के दो दिन पहले बीस दिन के मेहनत पर पानी फिर जाता है…! संदेश आता है बहुत बीमार हैं। अस्पताल में हैं। दवा पानी चढ़ रहा है।अपने सहयोग के लिए दूसरे को तैयार कर लीजिए! ठीक कार्यक्रम के दूसरे दिन अन्य दूसरे कार्यक्रम में शामिल की तस्वीरों से जलाने का प्रयास किया जाता है। तस्वीरों को देखकर लगता ही नहीं कि यही व्यक्ति दो दिन पहले अस्पताल में भर्ती होगा। जितना संसाधन (प्राकृतिक और सांस्कृतिक) उपलब्ध है और बूते से बाहर अत्यधिक समय, श्रम, साधना लगाकर कोई योजना बनाया जाता है उसको नेस्तनाबूत कर देने का प्रयास कर लेना, हालाँकि मेरे रहते ऐसा कर पाना असंभव नहीं तो कठिन तो है ही।”

“नेस्तनाबूत कैसे कोई करेगा? आप कहती हैं मन संचालक को समय नहीं खाने को! ऐसा मंच संचालन तो आकस्मिक भी किसी पर आए तो कोई भी कर लेगा!”

“अत्यधिक खाने के लिए मना करते हैं, भूखे रहने के लिए तो थोड़े न कहते हैं, ह न त! काव्य-पाठ, मुशायरा में मंच संचालक प्रतिभागी को बुलाने के पहले चार पंक्ति और पाठ का बाद विदा करने में चार पंक्ति, कुछ अपनी, कुछ भानुमति के पिटारे से यानी आयोजन सत्र का आधा नहीं तो दो तिहाई समय अपने को प्रदर्शित करने में खाते रहते हैं-खाते-खाते मंच पर छाये रहने का प्रयास करते हैं…! लेकिन किसी परिसंवाद, परिचर्चा, पुस्तक पर चर्चा में समय खाने के लिए मंच संचालक को विषय का ज्ञाता, पुस्तक पढ़ा होना होगा जो आकस्मिक नहीं किया जा सकता।”

“स्वास्थ्यप्रद है अधिक ग़म खाना -कम खाना खाना। लेकिन फिर भी…, हो सकता है वो किसी अन्य के बहकावे में हो?”

“अच्छा! दूध पीता बच्चा है! फिर भी क्या! इसी से न कहे आस्तीन का साँप—नियत समझने में देरी कैसी! बिना प्रमाण कुछ नहीं कहा जाता।”

“हाँ! एक-दो बार ऐसा हो तो शक नहीं होता है। अनेक बार हो जाता है तो शक कर लेना स्वाभाविक है।”

“ऐसे धोखा करने वाले का कीमा बना देने का जी करता है। कूट-कूट कर बुकनी बना दिया जाये। भूसा भरके किसी कोने में खड़ा कर दिया जाये, बतौर उदाहरण!”

“कीमा कि चोखा? चोखा खा के धोखा मत करिह कहा जाता है! बिहारी चोखा बनाने में माहिर भी होते हैं। खिचड़ी के संग चोखा, लिट्टी के संग चोखा।”

“बिहारियों का क्या हुनर चोखा बनाने में। आलू उबाल लो टमाटर, बैंगन भून लो। जी भर मसल-मसल कर उसमें कच्चा प्याज, हरी मिर्च-लहसुन (बैंगन के पेट में घुसाकर पकाया सोंधा-सोंधा स्वाद लगता है) थोड़ा सा सरसों का तेल स्वादानुसार नमक मिला लो।”

“छौंक-बघार कर सभी चीज को भून-भानकर भी तो चोखा बनाया जाता है।”

“बिलकुल! लेकिन जो जीभ को रुचता है वह पेट को नहीं जँचता है। रूचना, पचना, जुड़ना-एक साथ नहीं होता है! जानते हो मेरे एक परिचित हैं। बैंगन की सब्ज़ी को चलाये छोलनी से अगर चावल या अन्य दूसरी सब्जी चला दिया जाये तो वे उस चावल या अन्य दूसरी सब्जी नहीं खा सकते हैं…! बैंगन की सब्जी तो नहीं ही खाते हैं। किसी भी सब्जी में टमाटर पड़ जाये तो सब्जी नहीं खाते हैं। आज के दौर में किसी होटल की किसी तरह की सब्जी उनके घर के लोगों का साथ नहीं दे सकते हैं। शायद स्वाद अच्छे नहीं लगते हों या स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से…! लेकिन-लेकिन सिर्फ बैंगन का चोखा, बैंगन-आलू-टमाटर का मिश्रित चोखा, टमाटर की मीठी चटनी बड़े शौक़ से चाट-चाट /चाट-पोंछकर खाते हैं…! 

गुड़ खाए गुलगुले से परहेज करें!

गुलगुले की सामग्री

2 1/2 कप आटा

1 1/4 कप गुड़1”

1 बड़ा चम्मच सौंफ

3 बड़ा चम्मच घी 

स्वादानुसार नमक

आधा छोटा चम्मच बेकिंग सोडा

तलने के लिए घी

गुलगुले बनाने की वि​धि

1.गर्म पानी में गुड़ डाले और उसे पूरी तरह घुल तक हिलाएं।

2.एक दूसरे बाउल में आटा, घी, नमक और बेकिंग पाउडर डालें।

3.तैयार किए गए मिश्रण में अब गुड़ वाला पानी डालें और एक बैटर तैयार कर लें।4.इसमें सौंफ डालें।

5.एक पैन में तेल गर्म करें और एक बड़े चम्मच से बराबर मात्रा में बैटर डालें, आंच को तेज रखें।

6.आंच को धीमा कर दें और गुलगुले को मीडियम आंच पर पकाएं।

7.छलनी वाले चम्मच से जले हुए टुकड़े निकाल लें।

8.फिर से आंच तेज करें और इसमें बैटर डालें इससे सभी गुलगले एक-दूसरे चिपकेंगे नहीं।

9.आंच धीमी करें और पकाएं, गुलगुलों को एक-दो बार पलटें ताकि वे ब्राउन हो जाए।

10.बचें हुए बैटर से इसी तरह गुलगुले बना लें।“

“इसे क्या कहेंगी? विरोध में कशीदे कढ़े जाते हैं। लम्बे-लम्बे लेख लिखे जाते हैं और ऐसा क्या मिलने वाला होता है कि विरोध का स्वर फेंके गये आकर्षक दाने चुगने लगता है?”

“खुलकर स्पष्ट कहो तो बात समझकर उचित उत्तर देने का प्रयास कर सकूँ!”

“बाबा गुरु लघुकथा दिवस सितम्बर में मनाने की बात करते थे और उनके सामने उनके कहे को मानने वाले जून में ही अलग राग में शामिल हो जा रहे हैं?”

“चलो! छल-धोखा-चोखा पर पहले ही बहुत बात हो चुकी है आगे मटन-करी पर बात करते हैं!

चंपारण मटन करी की सामग्री

 एक किलो मीट

पौन किलो प्याज,

कटा हुआ2 लहसुन

छ बड़ा चम्मच अदरक-लहसुन का पेस्ट

एक बड़ा चम्मच धनिया पाउडर

एक बड़ा चम्मच हल्दी पाउडर

दो बड़ा चम्मच देगी मिर्च

दो बड़ा चम्मच कश्मीरी मिर्च

दो बड़ा चम्मच नींबू का रस150 gms दही

आधा कप सरसों का तेल

एक छोटा चम्मच सौंफ पाउडर

एक छोटा चम्मच गरम मसाला पाउडर10 लौंग8 काली मिर्च2 इंच की दालचीनी छड़ें1 तेज पत्ता4 छोटा चम्मच जीरा1 छोटा चम्मच जीरा पाउडर, साना हुआ गेहूँ का आटा (बर्तन को सील करने के लिए) स्वादानुसार नमक

चंपारण मटन करी बनाने की वि​धि

1.तीन या चौथाई कप सरसों के तेल और बाकी बची सामग्री के साथ मिलाएं मटन को मैरिनेट करें. इसे 20 मिनट के लिए एक तरफ रख दें।

2.एक बड़े मिट्टी के बर्तन या एक भारी तली वाला सॉस पैन लें, बचा हुआ तेल और मैरीनेट किया हुआ मटन डालें। ढक्कन रखें, और किनारों को आटे से सील करें।

3.धीमी आंच पर पकाएं। फिर धीरे-धीरे आंच को मध्यम तक बढ़ाएं और मटन को 45-50 मिनट तक पकने दें।

4.सील को 45 मिनट के बाद बाहर निकालें, देखें कि तेल ऊपर आ गया है या नहीं।

5.धनिया पत्ती से गार्निश करें और गर्मागर्म सर्व करें।

और कम्बल ओढ़ के घी पीने वालों को उनके हाल पर छोड़ देते हैं…!”

“लगे हाथ बिहार में बनने वाले ‘मीट का ताश’ को बनाने की भी सामग्री और विधा बता देतीं।”

“ज़िन्दगी बस आज भर नहीं न है!”

5 comments:

  1. ज़िन्दगी बस आज भर नहीं न है
    सुंदर चिंतन
    आभार
    सादर वंदन

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  2. संवाद और स्वाद के तालमेल का अनूठा संग्रह तैयार हो रहा है दी।
    वेजिटेरियन लोगों को आपत्ति हो सकती है नानवेज रेसिपी से:)
    लिखती रहें दी।
    प्रणाम दी।
    सादर।
    -----
    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार २१ जून २०२४ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    ReplyDelete
    Replies
    1. हार्दिक आभार आपका
      अब क्या करूँ -ब्लॉग को गंगाजल से पाक किया जा सकता है क्या!

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  3. कम खाना अच्छा है चल भी रहा है पर खाना बनाते देखना और सूंघना मना जो क्या है :)

    ReplyDelete

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