Monday, 11 June 2012

* धरा का आलिंगन *






वसंत के मोहक

वातावरण में ,

धरती हंसती ,

खेलती जवान हुई ,

ग्रीष्म की आहट के

साथ-साथ धरा का

यौवन तपना शुरू हुआ ,

जेठ का महीना

जलाता-तड़पाता

उर्वर एवं

उपजाऊ बना जाता ,

बादल आषाढ़ का

उमड़ता - घुमड़ता

प्यार जता जाता ,

प्रकृति के सारे

बंधनों को तोड़ता ,

पृथ्वी को सुहागन

बना जाता ....

नए - नए

कोपलों का

इन्तजार होता ....

मॉनसून जब
धरा का 

आलिंगन

करने आता ....

5 comments:

  1. लिखा न गज्जब :) भाव जब हो तो कौन रुकेगा कौन रोकेगा

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    1. आपकी छत्रछाया जिसे मिल जाए वो तो कुछ न कुछ लिख ही लेगा.... कहते हैं, न पारस के संपर्क में आते पत्थर भी सोना हो जाता है .... सोना न सही कोई धातु बनने का प्रयास जारी है .... !!

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  2. बहुत खूब आंटी!


    सादर

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