Monday, 18 June 2012

ऐतिहासिक वृत्तान्त



ऐतिहासिक वृत्तान्त को कविता का रूप देती ,  

मैं गुनगुनाती-मतवाली बुलबुल बन जाती .... 

इधर डोलती उधर डोलती सबका मन मोह लेती ....

स्तब्ध निगाहें ,नि:शब्द जुबां नहीं देख  पाती ,

एक भूखे आदमी के हाथ का कौर ,

चीरती है सारे जहां की ख़ामोशी ....

दिल के भीतर मनोभावों का , 

तहलका मचता ,

हलचल का शोर होता ....

कैसे ढूढ़ें नित - नित ,

नयी - नयी सुगम राहें ....

सुनहला प्रीत की सुनहली सी आहट ,

सदा जीवन को दमकाती रहे ....

सलोना मौसम मेघ के आने से होगा ....

मानसून के आते रुत बदल जायेगी ....

तप्त दिन हसीन मादक चाँदनी रात में ढल जायेगी ....

स्वप्न की स्मृतियाँ श्रृंगार कर लेगीं ....

गुदगुदाती कविता की मृदंग बजेगें ....    

मधुर सुहावन अति मनभावन ,

मन मयूर का नृत्य होगा ....

समय की पथरीली पृष्ठभूमि भी खिंचति हैं ,थोड़ी सी चिंता की लकीरें ....


काल्पनिक चमत्कृति  हो .... धरा पर पानी की क्षणिक निशानी न हो ....

7 comments:

  1. ऐतिहासिक वृतांत
    वर्तमान जिजीविषा
    और ......... अचंभित हूँ , पर विश्वास था

    ReplyDelete
    Replies
    1. शुभप्रभात .... !!
      पारस भी अचंभित होता है .... ??

      Delete
  2. स्वप्न की स्मृतियाँ श्रृंगार कर लेगीं,,,,,

    RECENT POST ,,,,,पर याद छोड़ जायेगें,,,,, .

    ReplyDelete
  3. बहुत खूब आंटी !


    सादर

    ReplyDelete
  4. नि:शब्द करती रचना..

    ReplyDelete

आपको कैसा लगा ... यह तो आप ही बताएगें .... !!
आपके आलोचना की बेहद जरुरत है.... ! निसंकोच लिखिए.... !!

स्फुरदीप्ति

 क्या शीर्षक : ‘पूत का पाँव पालने में’ या ‘भंवर’ ज़्यादा सटीक होता? “ज्येष्ठ में शादी के लिए मैं इसलिए तैयार हुआ था कि ‘एक पंथ -दो लक्ष्य’ ब...