चाची अकेली रह गई ....
चाची बहुत ,बहुत ,जल्दी-जल्दी और अस्पष्ट बोलती हैं .... और ... एक ही बात को बहुत बार दोहराती हैं .... इस लिए दूसरे उन्हें झेलना पसंद नहीं करते हैं .... ये बात चाची कहती भी और समझती भी हैं .... लेकिन मेरे पास उनके लिए हमेशा समय रहा .... उनकी बेटी और मैं एक ही उम्र की होने के कारण और प्यार-सम्मान के कारण भी चाची और मेरे बीच ,माँ-बेटी का संबंध बना रहा ....
चाची जब 10 साल की और चाचा 20 साल के थे तो उनकी शादी हुई थी .... चाची की शादी एक बड़े परिवार में हुई थी .... चाचा 12-13 भाई-बहन थे .... चाचा सबसे बड़े थे .... देवर-ननद के साथ ही चाची भी बड़ी हुई .... चाची को एक बेटी और एक बेटा हुआ .... चाचा की जब नौकरी लगी तो चाची साथ रहने लगी .... चाचा की आमदनी साधारण थी .... किसी तरह से जोड़-गाँठ कर अपने बच्चों की परवरिश और बेटी की शादी की .... बेटा ONGC में एक अच्छे पद पर नौकरी करने लगा लेकिन शादी के लिए तैयार नहीं हो रहा था .... क्यूँ कि ना जाने उसकी पत्नी कैसी आये .... उसके माता-पिता का ख़्याल ना रखे तो घर में कलह होगा .... बेटा अपने माता-पिता से बहुत प्यार करता है .... परिवार-समाज के समझाने और दबाब बनाने पर बेटा की शादी हुई .... परंतु बहू और सास-ससुर में ताल-मेल नहीं ही बैठ सका .... बेटा अपनी पत्नी को बहुत समझाने का प्रयास करता .... बहू समझौता करने की कोशिश भी करती .... लेकिन सोच की समस्या थी .... ससुर पुराने विचारों के और बहू नए विचारो की ....
जिंदगी गुजरती रही .... बेटा के साथ जब माँ-बाप रहने के लिए तैयार नहीं हुये तो पटना में ही एक फ्लैट खरीद कर , सब सुख-सुविधा का इंतजाम कर , एक नौकर रख दिया ....लेकिन.... बुढ़ापा तो सुख-सुविधा से नहीं कटती .... वो किसी अपने के देखभाल से कटती है .... करीब 3-4 साल पहले, पटना के घर में ताला लगा कर माँ-बाप को अपने साथ(बरौदा, जहां वो नौकरी करता है)ले गया .... चाची जाते समय मेरे गले लग कर बहुत रोई कि वे अब वापस नहीं आ सकेगी और बहू के साथ वहाँ कैसे रहेंगे ....
लेकिन एक साल के बाद ही वापस आ गए चाची-चाचा .... बेटा के घर में चाची का मन नहीं लगा .... चाचा को अच्छा लगता था ,पोता का साथ था ....
चाची का कहना था कि बहू ध्यान नहीं रखती थी .... वे लोग को रखना नहीं चाहती थी .... यहाँ पटना आने के बाद चाचा-चाची दोनों बीमार रहने लगे .... चाची को ब्रेन-हेमरेज हो गया .... चाचा को बुढ़ापा परेशान करने लगा .... बेटा बार-बार आता ले जाने की जिद करता .... लेकिन चाची जिद पर अड़ी रही .... नहीं जाना था नहीं गई .... इस बीच बहू भी आई .... मेरी बहू से भी बात हुई .... नासमझी का मामला था .... जरूरत तो चाची का था बेटा -बहू का साथ .... एक साल पहले चाचा के बीमारी के कारण चाचा - चाची बेटी के घर (पटना में ही) रहने लगे .... हर महीने होता कि कुछ तबीयत संभल जाता है तो अपने घर लौट आयेंगे .... लेकिन चाचा नहीं आ सके .... आज चाची बेटे बहू के साथ घर लौटीं हैं .... चाचा का श्राद्ध-कर्म बेटे के घर से ही होना चाहिए ....
श्राद्ध-कर्म बेटे के हाथो ही हो सकता है ना ....
चाचा को बेटी के घर अच्छा नहीं लगता था .... वे अपने पोता के साथ रहना चाहते थे .... अब चाची उसी बहू के साथ रहेगी .... क्या मिला चाची को .... ??
samay kay saath khud mey badlav lana jaroori hai....isi mey apni aur sab ki bhalai hai ....
ReplyDeletesach men
ReplyDeleteshukriya
nasamjhi me bahut saare ghar tut rahe hai, meri chachi bhi kuch yahi kar rahi hai............
ReplyDeleteShukriyaa
Deletebadlav lana jaroori hai...
ReplyDeleteदिवंगत आत्मा को ईश्वर शांति प्रदान करें!
ReplyDeleteआज ऐसा ही समय आगया है..समझदार बहू भाग से ही मिलते है..
ReplyDeleteदुःख देती हैं ऐसी बातें...
ReplyDelete:-(
सादर
अनु
आपकी यह पोस्ट आज के (३० जुलाई, २०१३) ब्लॉग बुलेटिन - एक बाज़ार लगा देखा मैंने पर प्रस्तुत की जा रही है | बधाई
ReplyDeleteShukriya aur aabhaar bete ji
Deleteसंबंधों के रंग जितने सहज हों, उतने अच्छे।
ReplyDeleteसहज सम्बन्ध टिकाऊ और अच्छे लगते है
ReplyDeleteRECENT POST: तेरी याद आ गई ...
आपसी समझ ,सम्मान और मान से सम्बन्ध मजबूत और मजबूत हों जाते हैं |
ReplyDeleteवक्त के साथ हमे बदलाव लाने जरुरी होते हैं |
एक शाम संगम पर {नीति कथा -डॉ अजय }
मार्मिक ...पर हमारे ही परिवेश का सच.....
ReplyDeleteहमारे जीवन का सच ,हट नही करनी चाहिए
ReplyDeleteयहाँ भी पधारे
http://shoryamalik.blogspot.in/2013/07/blog-post_29.html
बहुत ही मार्मिक बात... अंदर तक दुख देती है..
ReplyDeleteसमय के साथ बदलना जरूरी है ... पर कई बार ये बहुत मुश्किल हो जाता है ...
ReplyDeleteaapsi samjh jaruri hai nahi to rishte riste rahte hain ....
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