हम सोच सकते हैं कि विकट परिस्थितियाँ ही पैदा ना हो जिससे किसी प्रकार की विकृति को पनपने का अवसर मिले .... ऐसा बस सोचा जा सकता है , पर ऐसा हो नहीं सकता , हो ही नहीं सकता .... यदि ऐसी परिस्थिति पैदा ही ना हो तो ,हमें परखने की कसौटी का क्या होगा .... किसी प्रतिकूल परिस्थिति में घबराहट हो जाये तो साधना कैसी होगी ....
साधना ....
कबीर के शब्दों में :- ज्यों की त्यों धर दीन्हीं चदरिया ; जिस उज्जवल चादर को ओढा ,उसे उतनी ही उज्जवलता की स्थिति में उतार कर रख देना ....
जबतक शरीर है ,पग-पग पर बीमारी की संभावना बनी रहती है …. पर उससे भयभीत होकर हताश हो जाए तो जीना कठिन हो जाता है ….
कौन है जो बीमार नहीं होता ,बल्कि आज के दौर में कम ही लोग हैं ,जो स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं नहीं झेल रहे होते हैं .... लेकिन क्या कोई है जो सार्वजनिक तौर पर बीमार आदमी कहलाना पसंद कर पता है .... वैसे कुछ लोग ऐसे भी होते हैं ,जिन्हे ऐसे पात्र बन कर रहना अच्छा लगता है .... अपनी बीमारियों को बढ़ा-चढ़ा कर जिन्हे प्रचार करने की आदत हो जाती है …. जिम्मेदारी वहन करने में अपनी हर विफलता का ठीकरा वे बीमारी पर ही फोड़ते हैं …. लेकिन दुनिया में ऐसे लोगो की संख्या ज्यादा है …. जो अपनी बीमारियों को दरकिनार करके नई राह बनाते हैं ....
शिंडलर कहते हैं कि डॉक्टर के पास केवल इसलिए पहुंचते हैं कुछ कि उन्हें अपने भावनाओं पर काबू रखने की कला नहीं मालूम होती है ....
आस्तिक का अर्थ यह नहीं कि जो भगवान में विश्वास करता है ….
नास्तिक वह है जो भगवान में विश्वास नहीं करता .... ये अर्थ गलत है ....
जो जीवन को पूरी तरह से स्वीकार करता है वह आस्तिक है .... जीवन के नियमों को अस्वीकार करना नास्तिकता है ....
इस अर्थ में ,हर मांग हर चाह नास्तिक है .... जब भी हम अस्तित्व(ईश्वर)के सामने अपनी चाह रखते हैं ,उसी वक़्त हम उस अस्तित्व के विपरीत हो जाते हैं .... चाह उठती ही है इसलिए कि जो है ,पसंद नहीं है …. और उससे कुछ अलग चाहिए ....
अस्तित्व(ईश्वर)की मर्ज़ी के खिलाफ हम जब भी करेंगे ,तो उसमें हारेंगे भी ,और टूटेंगे भी …… तो सभी चाह , हमें ईश्वर के खिलाफ करती है ….. हम तो परमपिता परमेश्वर से भी उसके खिलाफ ही प्रार्थना करते हैं , उस परमेश्वर के दर-मंदिर में भी ……..
घर में कोई बीमार है तो प्रार्थना करते हैं , हे ईश्वर ! मेरे अपने बहुत कष्ट में हैं, इसे ठीक कर दो ….
अगर परमात्मा ही सब कुछ करता है तो यह बीमारी भी उसके द्वारा ही प्रदत्त है ….
जब हम कहते हैं, इसे ठीक कर दो, तो हम यह कह रहे हैं कि हम तुझसे ज्यादा समझदार हैं और तूने हमसे सलाह क्यों नहीं ले ली ,इस आदमी को बीमार करने के पहले ?
हमारी पूरी जिंदगी ऐसी ही घटनाओं से भरी हुई है …. सच में .... सुख चाहते हैं लेकिन दुख मिलता है …. सफलता चाहते हैं ,पर विफलता हांथ लग जाती है …. जीतना चाहते हैं ,परंतु हर के सिवाय कुछ नहीं मिलता ….
फिर हम सब रोते रहते हैं कि ना जाने कौन से कर्मों का फल है ….. पिछले जन्म का पाप-पुण्य का हिसाब करना चाहते हैं …..
जो जैसा हैं ,उसे जब तक उसी रूप में हम स्वीकार नहीं करेंगे , तब तक जो भी हम चाहेंगे ,उससे उल्टा ही होगा …सभी मांग-चाह को छोड़ लें और जो हो रहा हैं ,उसे स्वीकार कर लें तो हमें आस्तिकता का अनुभव होगा …….
कितने सहमत हैं आप उपर्युक्त आलेख से ..... ??
आपका आलेख हंड्रेड परसेंट सही है.. होता वही है जो होना होता है... अच्छी आलेख !!
ReplyDeleteभगवान एक अच्छी अवधारणा है
ReplyDeleteखूब हाथ पैर मार लेने के बाद स्वीकारने के सिवा कोई चारा भी तो नहीं है :)
ReplyDeleteसहमत !!! बहुत उम्दा आलेख ,,,
ReplyDeleteRECENT POST: गुजारिश,
बिलकुल सहमत हूँ. मन विकांक्ष कभी हो नहीं पाता और वही सतत दर्द का सबब है. जीवन एक मुक्तधारा है..जैसे मर्ज़ी हो बहने दीजिये..जब मर्ज़ी हो ठहरने दीजिये...बस सोचिये मत.
ReplyDeleteआपका आलेख सही है..
ReplyDeleteयह संसार एक पाठशाला है और यहाँ निरंतर एक परीक्षा चल रही है। ईश्वर/परमात्मा पर्यवेक्षक-इनविजिलेटर की हैसियत से सब कुछ देखते हुये भी हस्तक्षेप नहीं करता है किन्तु एक परीक्षक की हैसियत से आत्मा द्वारा किए गए कर्मों-सदकर्म,दुष्कर्म और अकर्म के आधार पर परिणाम देता है। हम मनन करने के कारण ही मनुष्य हैं अतः कष्टों के निवारणार्थ मनन द्वारा उपाय/स्तुति/औषद्धि के द्वारा उनसे छुटकारा पाना ही बुद्धिमत्ता है न की ईश्वर/परमात्मा की कृपा की आड़ में अपनी 'कायरता' को छिपाना। 'आस्तिक' वह है जिसका अपने ऊपर विश्वास है और जो अपने अतिरिक्त किसी बाहरी शक्ति पर विश्वास करता है वह 'नास्तिक' है।
ReplyDelete@जब हम कहते हैं, इसे ठीक कर दो, तो हम यह कह रहे हैं कि हम तुझसे ज्यादा समझदार हैं और तूने हमसे सलाह क्यों नहीं ले ली ,इस आदमी को बीमार करने के पहले ?
ReplyDelete#जो जैसा हैं ,उसे जब तक उसी रूप में हम स्वीकार नहीं करेंगे , तब तक जो भी हम चाहेंगे ,उससे उल्टा ही होगा …सभी मांग-चाह को छोड़ लें और जो हो रहा हैं ,उसे स्वीकार कर लें
Main is kathan se sahmat huhn
latest post मेरी माँ ने कहा !
latest post झुमझुम कर तू बरस जा बादल।।(बाल कविता )
मात्र ईश्वर ही नहीं, वरन ईश्वर से अपने संबंधों को भी स्पष्ट कर ले हम।
ReplyDeletepuri tarah sehmat hun didi....sab jante hue bhi hum sach mey yahi sab karte rehtay hain...roz bhagwan say ek nayi mang
ReplyDeleteबिल्कुल सही...जो जीवन में मिले उसे स्वीकार करते हुए आगे बढ़ते जाओ...
ReplyDeleteहोत वही जो राम रचि राखा...
ReplyDeleteजो जीवन को पूरी तरह से स्वीकार करता है वह आस्तिक है .... जीवन के नियमों को अस्वीकार करना नास्तिकता है ....
ReplyDeleteसच कहा आपने
हर मांग हर चाह नास्तिक है ....सच कहा आपने पर जो होना है वो हो कर रहेगा !
ReplyDeleteसहमत हूँ। स्वस्थ रहना दैनिकचर्या पर निर्भर है .. बाकी यदा-कदा कुछ बीमारियाँ होना कोई रोक नहीं सकता।
ReplyDeleteआस्तिक का मतलब सही समझाया आपने
ReplyDeleteहो सकता है कि मैं आपके विचारों से पूर्णत्या सहमत न होऊं पर भविष्य में इस पर जरुर गौर किया जायेगा।
बिल्कुल सही.
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