गाये कजरी
मेघ से ले कजरी
भू बाला झूमे।
===
भू को बिखेरे
अति व अनावृष्टि
बिरुए रो ले।
===
भू मनुहार
प्रवाह तो निर्वाह
घटा छकाये
घन दे धोखा
ना क्षति निवारण
है जीव भूखा।
===
ध्यान से सूंघो / सृष्टि नाशक / विध्वंसकारी
बारूद गंध फैली
श्याम घन से।
धरा संवरी
मेघों सी काली साड़ी
बूंदों के बूटे।
बूंदों के बूटे
भुट्टे की धानी साड़ी
भू सज बैठी।
मेघों सी काली साड़ी
बूंदों के बूटे।
बूंदों के बूटे
भुट्टे की धानी साड़ी
भू सज बैठी।
- लू लूट गया
- सूर्य का हठी दूत
- लुटेरा मेघ।
- अंशुक छीने
- सांठ गांठ कर ली
- बूंदें पवन।
लाजवाब हैं दोनों हाइकू ...
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति , आप की ये रचना चर्चामंच के लिए चुनी गई है , सोमवार दिनांक - 21 . 7 . 2014 को आपकी रचना का लिंक चर्चामंच पर होगा , कृपया पधारें धन्यवाद !
ReplyDeleteशुभ संध्या
Deleteस्नेहाशीष .... शुक्रिया .... आभारी हूँ आपकी
स्नेहाशीष ..... आभारी हूँ ..... बहुत बहुत धन्यवाद आपका
ReplyDeleteशुभ संध्या
सुन्दर हाइकू
ReplyDeleteसुंदर हाइकू
ReplyDeleteबहुत बढ़िया हाइकु |
ReplyDeleteकर्मफल |
सुंदर प्रस्तुति...लाजवाब हाइकू ! :)
ReplyDeleteबढ़िया हाइकु |
ReplyDeleteबहुत सुंदर हायकू.
ReplyDeleteनई पोस्ट : प्रतीक चिन्ह कितने पवित्र
बहुत बढ़िया
ReplyDeleteक्या बात है..बहुत खूब....लाजवाब हाइकू ! :)
ReplyDeleteअभी हाल में ही लौट कर आये हैं मानसून में बरसो बाद भींग के. और फिर आपके हाइकु का यह झोका अच्छा लगा.
ReplyDelete