दिवसाद्यन्त सवाल बेधता है
चुप्पी उकबुलाहट सालता है
तू तड़ाक तड़ाग करता नहीं
कोई निदान नहीं मिलता है
मिट्टी ज्यादा सहती है या चाक?
भट्टी में कलश को
होना चाहिए दर्प ज्यादा
रंग दिए जाने का प्रकल्प ज्यादा
नासूर मत पलने तो गहरा इतना
तम गहन होता दर्द सहरा इतना
परस्पर प्यार इश्क मोहब्बत विश्वास
सबमें का कोई-न-कोई आधा वर्ण
एहसास कराता है मुकम्मल नहीं है
क्या पहचान लेना इतना आसान हैहर पल तो सब बदल जाता है
बदल जाती है इच्छाएं परिस्थति बदलते
तब तक साथ कौन निभाता है
जब तक स्वार्थ नहीं सधता है
बस सोच में अटकता है
हार्दिक आभार बहना
ReplyDeleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना शुक्रवार १ जुलाई २०२२ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
परस्पर प्यार इश्क मोहब्बत विश्वास
ReplyDeleteसबमें का कोई-न-कोई आधा वर्ण
एहसास कराता है मुकम्मल नहीं है
सटीक अभिव्यक्ति ।
सादर नमन
ReplyDeleteवाह , क्या बात कही है कि आधा वर्ण कभी मुक्कमल नहीं होने देता प्यार , इश्क़ या मुहब्बत की परिभाषा को । बहुत खूब ।
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ReplyDeleteक्या पहचान लेना इतना आसान है
ReplyDeleteहर पल तो सब बदल जाता है
बदल जाती है इच्छाएं परिस्थति बदलते
सही कहा, बहुत ही सुन्दर सृजन आदरणीया दी,🙏
परस्पर प्यार इश्क मोहब्बत विश्वास
ReplyDeleteसबमें का कोई-न-कोई आधा वर्ण
एहसास कराता है मुकम्मल नहीं है
बहुत सटीक एवं लाजवाब
वाह!!!