"ओह! मुझसे अनजाने में हुई भूल, बहुत विकराल हो गई दीदी, मैं बहुत बहुत शर्मिन्दा हूँ। आप से, और सब से भी, मैं बेटे की कसम खा कर बोल रही हूँ, मैं जानबूझ ऐसी भयानक भूल कभी नहीं करती..। मेरी अज्ञानतावश की गई भूल पर दी आपको विश्वास है कि नहीं ?" प्रतिमा ने शीतल से रोते हुए कहा।
लेखक के नाम के बिना व्हाट्सएप्प पर घूमती कहानी को अपने नाम से छपवा ली थी प्रतिमा ने। सोशल मीडिया के कारण भेद खुल गया था और असली लेखक व संपादक की नाराजगी की शिकार बन रही थी प्रतिमा।
"बेटे की कसम खाने से बचिए। मेरे अविश्वास का कोई कारण नहीं है। आप मुझे नहीं समझ सकी हैं! किसी को गलत मानना या उसे सजा देने की अधिकारी मैं खुद को कभी नहीं समझती हूँ, लेकिन अभी जो गलती हुई है उसका क्षमा मांगना ही उपाय है। अगर वे लोग पुलिस केस कर दिए तो परिवार की प्रतिष्ठा का क्या होगा यह सोचिए।" शीतल ने कहा जो कहानी भेजने में मध्यस्थता की थी। सम्पादक शीतल को ही जान रहे थे और उन्हें लिखित में क्षमा चाहिए थी.. जो भेजी गई।
"जी! लेखक ने मेरा क्षमा वाला टिप्पणी सही में डिलीट कर दिया है.. जब मैं फेसबुक पर.. असली गुनहगार तो मैं, उनकी हूँ, उनसे क्षमादान मिल गया, फिर संपादक तो मुझे जीते जी मरने जैसी सजा देने में आमादा हैं!"
"जो हो गया उसे भूल जाइए.. आप अपनी गलती की कीमत चुका चुकी हैं... नई शुरुआत कीजिये.. इंसा और ईश के न्याय में कितना फर्क होता है... उसकी प्रतीक्षा कीजिये!"
क्या करें कुछ लोगों को हो-हल्ला करने में बड़ा आनंद आता है
ReplyDeleteजी
Deleteबहुत-बहुत धन्यवाद
सार्थक रचना आदरणीय दीदी | कई बार का मज़ा बहुत बड़ी सज़ा बनकर जिन्दगी की सबसे बड़ी सीख दे जाता है | सादर
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