रविवार 04 नवम्बर 2017 (देवदीवाली)
अखिल भारतीय प्रगतिशील लघुकथा मंच का दो दिवसीय 29 वां लघुकथा सम्मेलन होने जा रहा है ... ज्यों लघुकथा सम्मेलन का दिन करीब आता जा रहा है , त्यों त्यों एक नई लघुकथा जन्म ले रही है
एक महोदय ने आयोजनकर्त्ताओं में से किसी एक को फोन किया
-हैलो!"
-मैं xyz बोल रहा हूँ।"
-जी पहचान रहा हूँ बोला जाए कैसे हैं?"
-मैं तो ठीक हूँ... सुनिए न ! लघुकथा सम्मेलन में सम्मान देने की भी बात होगी ?"
-जी बिल्कुल होगी"
-लिस्ट तैयार हो गया क्या?"
-हाँ ! हाँ... लिस्ट बिलकुल तैयार है"
-आप बता सकते हैं क्या कि उस लिस्ट में मेरा नाम है कि नहीं
-क्या गज़ब की बात करते हैं!? आपने लघुकथा कब लिखी!? मेरी जानकारी में तो आप अबतक एक भी लघुकथा लिखने का प्रयास भी नहीं किये हैं..."
-उससे क्या होता है... आपलोगों से सवाल करने कौन आएगा..."
-हमारा ज़मीर..."
-अजी समय से लाभ उठाना चाहिए... जितना खर्च करने के लिए बोलिये , मैं तैयार हूँ..."
-लानत है जी ऐसे पैसों पर... पैसों से लेखन करवाये 2000 लोग भी जमा हो तो उसमें आपका नाम नहीं आएगा"
-आप भी कैसी बात कर रहे हैं.... सरकारी सम्मान पाए लोगों में भी हमारे जैसे लोग आराम से मिलेंगे..."
मिलते हैं
ReplyDeleteऔर....
मिलते रहेंगे...
दीदी...
चरण स्पर्श...
मिलते हैं
ReplyDeleteऔर....
मिलते रहेंगे...
दीदी...
चरण स्पर्श...
पता नहीं कब समाप्त होगें ,ये कोढ़ ...
ReplyDeleteबहुत अच्छी रचना आशा जी ।
पैसों से सम्मान खरीदना चाहते हैं,सच है ऐसे लोग ना सिर्फ साहित्य के क्षेत्र में बल्कि वास्तविकता में समाज के भी कोड़ होते हैं
ReplyDeleteइनकी नाम कमाने की उत्कृष्ट उत्कंठा साहित्य के क्षेत्र में घातक होती है, (ऐसे लोगों के लिए जो आपकी कहानी के मुख्य पात्र हैं...आप बधाई के पात्र हो अच्छी लधु कथा रची आपने)