ट्रेन में दो-तीन किन्नरों ने प्रवेश किया और यात्रियों से पैसे वसूलने लगे। माँगते-माँगते वो एक बर्थ के पास आकर सब रुक गये अपने-अपने भाव मुद्राओं में ताली बजाने लगे। उस बर्थ पर पति-पत्नी और लगभग बारह/तेरह वर्ष का बच्चा भी बैठा हुआ था। किन्नरों को ताली बजाते देखकर बच्चे में भी हलचल होने लगी मानों वह भी किन्नरों की तरह ताली पीटना और लटके-झटके दिखलाना चाह रहा हो ,लेकिन किसी दबाव में (मानों उसकी माँ द्वारा बराबर दी जाने वाली हिदायतें याद हो रही हो) वह खुद पर नियंत्रण रखकर शांत रखने की कोशिश भी कर रहा हो.., लेकिन एक किन्नर को संदेह हो गया कि वह बच्चा हमारे जेंडर का है। उसने अपने अन्य साथियों से भी कहा और वो सब ताली बजा-बजा कमर लचकाने लगे। एक किन्नर जो उनके दल का मुखिया था ने उस दम्पति से कहा, "ये बच्चा हमारे बिरादरी का हमारी नई पीढ़ी है , इसे हमें दे दो।"
"माँ ने कहा,"इसे जन्म मैंने दिया है, लालन-पालन मैं कर रही हूँ, तुमलोगों को क्यों दे दूँ?"
"यही परम्परा है.. इसलिए...।"
"मैं नहीं मानती ऐसी किसी परम्परा को.. अपनी जान दे-दूँगी ,मगर अपना बच्चा किसी भी कीमत पर नहीं दूँगी.. नहीं की नहीं दूँगी...।"
सब नोक-झोंक सुनकर बच्चा घबराकर रोने लगा और अपनी माँ के पीठ से चिपक गया,"मैं अपनी माँ को छोड़कर किसी के साथ भी नहीं जाऊंगा...।"
किन्नर का दिल बच्चे एवं माँ के मध्य वात्सल्य भाव देखकर पिघल गया। माँ उन्हें सौ रुपये का नोट देना चाहा मगर वेलोग नहीं लिया.. और जाते-जाते कहते गए,"माँ इसे खूब पढ़ाना.. अब तो सरकार हमलोगों को भी नौकरी देने लगी है...।"
"हाँ! हाँ! इसे पढ़ा रही हूँ । कुशाग्र है पढ़ाई में... मेरे परिचित में कई ऐसे हैं जो बड़े ऑफिसर बन चुके हैं...।"
वे खुश होते हुए बोले,"जुग-जुग जिए तेरा लाल... काश ऐसे जन्मे सभी मानव जीव के माँ-बाप तुमलोगों जैसे पढ़े-लिखे होते...।"
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