"क्या सुधीर तुम खुद अपनी शादी कब करोगे?" छठवीं बहन की शादी का निमंत्रण कार्ड देने आए सुधीर से संजय ने सवाल किया...।
आठ साल पहले संजय और सुधीर एक साथ नौकरी जॉइन किया था... लगभग हम उम्र थे... संजय की शादी का दस साल गुजर चुका था तथा उसका बेटा पाँच साल का था...
"बस इनके बाद एक और दीदी की शादी बाकी है... उनकी शादी के बाद खुद की ही शादी होनी है मित्र...। मेरी जो पत्नी आये वो मेरे घर में कोई सवाल ना करे... शांति से जीवन गुजरे।"
"बेटे के चाह में सात बेटियों का जन्म देना.. कहाँ की बुद्धिमानी थी, आपके माता-पिता की?" संजय की पत्नी ने सवाल किया।
"हमें सवाल करने का हक़ नहीं है नीता... वो समय ऐसा था कि सबकी सोच थी, जिनके बेटे होंगे उनका वंश चलेगा, तर्पण बेटा ही करेगा...,"
"सुधीर जी तर्पण ही तो कर रहे हैं... आठ बच्चों को जन्म देकर परलोक सिधार गए खुद... सात बेटियों का बोझ लटका गए सबसे छोटे बेटे पर... कुछ धन भी तो नहीं छोड़े... उनकी नाक ऊँची रह गई... ऐसा सपूत पाकर...।"
बहुत ही बेहतरीन
ReplyDeleteदिव्य प्रभात...
ReplyDeleteतर्पण..
सवाल नाक का है...
सात बेटियों का बोझ
लटका गए सबसे छोटे बेटे पर...
कुछ धन भी तो नहीं छोड़े.
.. उनकी नाक ऊँची रह गई...
सादर...