किश्त-मुश्त के फेर में जनाब
बही जोह हो रहा हिसाब
क्या-क्या बदल जायेगा
बदलते तिथि दिन माह के साथ
उलझे जीवन को सुलझाते
सब तो यही कहते वाह के साथ
अंत के गर्भ में आरंभ है
मोह तृष्णा नाश स्तंभ है
कल इतिहास कल रहस्य में
धन्यमन्य जुदा पारिहास्य में
जुड़ाव प्राप्य के रंग-मध्य
भ्रान्तचित्त मांगे सायुज्य
बेहतरीन शब्द चयन
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर जी।
हार्दिक आभार
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