शुभ प्रभात
फेसबुक के एक ग्रुप
सही या गलत लिखती हूँ
निर्णय आप करें
विरागी ढीठ
श्रृंगारिणी है हठी
निहारे पीठ |
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प्रतीक्षा ढूँढे
विरहा क्षण टूटे
विरागी मुड़े |
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विछोह उष्ण
नारी हुई निस्तेज
आसक्ति ध्वंस |
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उलझने ढेर सारी होने वाली ही थी
समय की गति तेज होने वाली ही थी
जवानी के दिन थे ,मस्तानी रातें थी
बच्चें-रिश्तेदारों की जिम्मेदारी थी
रूत भी आने - जाने वाली ही थी
समयाभाव-शिकवा हमसफर को थी
विरहन जिंदगी मिलने वाली ही थी
सरोष राह बदल जाने वाली ही थी ........
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शुक्रिया और आभार
बहुत सुन्दर.
ReplyDeleteसही
ReplyDeleteआपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (10.01.2014) को " चली लांघने सप्त सिन्धु मैं (चर्चा -1488)" पर लिंक की गयी है,कृपया पधारे.वहाँ आपका स्वागत है,नव वर्ष कि मंगलकामनाएँ,धन्यबाद।
ReplyDeleteआपका बहुत बहुत धन्यवाद और आभार
DeleteGod Bless U
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ReplyDeleteआ० बहुत सुंदर लेखन व शानदार प्रस्तुति , धन्यवाद
ReplyDeleteनया प्रकाशन -: बच्चों के लिये मजेदार लिंक्स - ( Fun links for kids ) New links
कल 10/01/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
ReplyDeleteधन्यवाद!
आपका बहुत बहुत धन्यवाद और आभार
DeleteGod Bless U
बहुत सुन्दर !
ReplyDeleteBohot hi Bhaavpoorn maa! Samay ek puzzle hota hai..har pal aur har rutu ka anand lena hai.. Is choti si zindagi ko uljhaana kyoon! Aagey badte jaana hai samay ke chakravyooh mey!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर......
ReplyDeleteअति सुंदर
ReplyDeleteबहुत अच्छा लिखा है...
ReplyDeleteबहुत मर्मस्पर्शी रचना..!!!!
ReplyDeleteसुन्दर
ReplyDeleteअभिव्यक्ति....