Thursday, 9 January 2014

बोलती तस्वीर


शुभ प्रभात 


फेसबुक के एक ग्रुप 


सही या गलत लिखती हूँ
निर्णय आप करें 


विरागी ढीठ 
श्रृंगारिणी है हठी 
निहारे पीठ |
~~
प्रतीक्षा ढूँढे
विरहा क्षण टूटे 
विरागी मुड़े |
~~
विछोह उष्ण 
नारी हुई निस्तेज 
आसक्ति ध्वंस |
____________

उलझने ढेर सारी होने वाली ही थी 
समय की गति तेज होने वाली ही थी 
जवानी के दिन थे ,मस्तानी रातें थी 
बच्चें-रिश्तेदारों की जिम्मेदारी थी 
रूत भी आने - जाने वाली ही थी 
समयाभाव-शिकवा हमसफर को थी 
विरहन जिंदगी मिलने वाली ही थी 
सरोष राह बदल जाने वाली ही थी ........
~~~~

शुक्रिया और आभार 

16 comments:

  1. आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (10.01.2014) को " चली लांघने सप्त सिन्धु मैं (चर्चा -1488)" पर लिंक की गयी है,कृपया पधारे.वहाँ आपका स्वागत है,नव वर्ष कि मंगलकामनाएँ,धन्यबाद।

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    1. आपका बहुत बहुत धन्यवाद और आभार
      God Bless U

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  3. आ० बहुत सुंदर लेखन व शानदार प्रस्तुति , धन्यवाद
    नया प्रकाशन -: बच्चों के लिये मजेदार लिंक्स - ( Fun links for kids ) New links

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  4. कल 10/01/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
    धन्यवाद!

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    1. आपका बहुत बहुत धन्यवाद और आभार
      God Bless U

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  5. Bohot hi Bhaavpoorn maa! Samay ek puzzle hota hai..har pal aur har rutu ka anand lena hai.. Is choti si zindagi ko uljhaana kyoon! Aagey badte jaana hai samay ke chakravyooh mey!

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  6. बहुत सुन्दर...

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  7. बहुत अच्छा लिखा है...

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  8. बहुत मर्मस्पर्शी रचना..!!!!

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  9. सुन्दर
    अभिव्यक्ति....

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आपको कैसा लगा ... यह तो आप ही बताएगें .... !!
आपके आलोचना की बेहद जरुरत है.... ! निसंकोच लिखिए.... !!

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