डरा सताता
जानी दुश्मन जून
गर्मी असुर ।
हाँ ..... जून का पहला हफ्ता बिता कर ही ,बाबुल का आँगन छोड़ी थी पुष्पा दुल्हन बन कर ........ भैया ने पैर पोछे(क्यूँ दस्तूर बना है) उसके ...... गाड़ी कुछ दूर आगे बढ़ी होगी कि पुष्पा को झपकी आने लगी ,सिर उसका ढुलकने वाला ही था कि दूल्हे के स्नेहिल हाथ उसके सिरहाने लग गया ......... सुकून हुआ कि वो सुरक्षित है वो निश्चिंत हो गई ...... पगली
जुलाई होगा ..... एक शाम सब एक जगह बैठे थे ,पुष्पा भी आकर एक कुर्सी पर ज्यों ही बैठने लगी ,उसके देवर ने कुर्सी खीच दिये ,मज़ाक था वो ,दिल्लगी भाभी देवर का लेकिन दूल्हे के संभालने से पुष्पा गिरने से बच गई ,दूल्हा भाई पर चिल्ला पड़ा ,ये कैसा मज़ाक है ,चोट लग सकती थी ...... दूल्हे कि मौसी हँसते हुये बोली ,दुल्हन गिरती तो चोट तुम्हें लगती ,है ना बेटा ..... पुष्पा प्यार मे पड़ गई ....... वैसा वाला प्यार ..... होता है क्या वैसा वाला प्यार ..... बावरी
दो साल तक पुष्पा का दूल्हा राजनीति मे व्यस्त रहा .... तब तक उसके ससुराल मे सब ठीक ठाक रहा .....
.....पति के नौकरी मे आने के बाद ,सास-ननद का व्यवहार बदल गया ....... सास को नौकरानी को , बेटे के नौकरी पर जाने का डर ऐसा सताया कि कान के कच्चे बेटे को बहू के खिलाफ खड़ी कर दी .....
ज़िंदगी चलती रही ...... नौ-दस साल के बाद ......
पुष्प के छोटे देवर की शादी की बात पुष्प के ही रिश्तेदारी में चली.....
लड़की के दादा पुष्पा के पापा से मिल ,पुष्पा के ससुराल वालो के बारे मे जानकारी ले जानना चाहे कि वे अपनी पोती कि शादी ,पुष्पा के देवर से करें या ना करें
पुष्पा के पापा स्पष्ट रूप से बोले कि मैं तो अनजाने मे अपनी बेटी को धसा दिया .... आप जानबूझ कर मेरी गलती ना दोहराएँ ..... उन लोगों को , किसी को अपनी बेटी नहीं देनी चाहिए ..... लेकिन होनी तो हो कर रहता है ..... भले बाद मे अफसोस हो कि बात मान लिए होते .....
पहाड़ पिता क्यूँ विदाई की
पयोधि पीड़ा को जज़्ब कर खारा हुआ
आत्मह्त्या के पहले
निर्झरिणी जार जार रोई जो होगी .....
ज़िंदगी चलती रही ......
kisi kisi ko aise hi jeena padta hai ....marmsprshi
ReplyDeleteप्रभावक रचना , मुझे वास्तविकता में बहुत ही दुख हुआ , कुछ शब्द - पुष्पा रे , धरती की तरह तू दुख सहले , सूरज की तरह तू जलती जा , सिंदूर की लाज निभाने को चुपचाप तू आग में जलती जा - ये एक गीत हैं , लेकिन क्यों लिखा ? हो सकता हैं यही बदा हो और उसके बाद हो सकता हैं कि भगवान जी अपनी शरण में लेलें !
ReplyDeleteबढ़िया रचना आदरणीय धन्यवाद !
I.A.S.I.H - ब्लॉग ( हिंदी में समस्त प्रकार की जानकारियाँ )
ye pushpa kai gharo me apni jindagi se ladai kar rahi hai.......
ReplyDelete'ज़िन्दगी का क्या है, ज़िन्दगी को चलना है' ....,...
ReplyDeleteचलने का नाम ही जिन्दगी है..
ReplyDeleteआभारी हूँ ..... बहुत बहुत धन्यवाद आपका ब्लॉग बुलेटिन
ReplyDeleteहार्दिक शुभकामनायें
जिंदगी का क्या वह तो ऐसे भी चलती रही है और वैसे भी चलती रहेगी, वक्त यूँ ही गुजरता रहेगा..
ReplyDeleteकई पुष्पाएं हैं जो लड रहीं हैं अपने स्तर पर।
ReplyDeleteजीवन चलने का नाम है ... यूँ ही चलता रहता है ...
ReplyDeleteजीवन यूँ ही चलता रहता है ...
ReplyDeleteकटहरे में वैवाहिक परम्पराऐ
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