तब शिखर ने बाँधा ,
नभ का साफ़ा ...
जब क्षितिज पर छाता ,
भाष्कर भष्म होता ,
लगता मानो किसी
घरनी ने घरवाले के लिए ,
चिलम पर फूँक मार ,
आग की आँच तेज की है ....
घरनी को चूल्हे की भी है चिंता ,
जीवन की जंजाल बनी है ,
गीली जलावन ,जी जला रही है.....
लौटे परिंदों ने पता बता दी है ....
किसान ,किस्मत के खेतो में ,
खाद-पानी पटा घर लौट रहा है ....
बैलों के गले में बंधी घंटी ,
हलों के साथ सुर में सुर मिला
संदेसा भेज रहे हैं .... !!
मेघ अकसर उलझन में होता है
किस की बात सुने और माने
वो सिकुड़ा लाज से पानी पानी
कहीं जलावन गीली
कहीं कच्चे मिट्टी-बर्तन के गिले
साजन बिन सावन से गिला
तो मेघ को सब कोसे
बेचारा मेघ उसके हिस्से बस गिला
वो तो ऐसे ही है गीला गीला
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वाह बहुत ही सुन्दर लिखा दी
ReplyDeleteवाह बहुत सुन्दर
ReplyDeleteमन को छूती हुई
संवेदनाओं को व्यक्त करती कविता---